जीएसटी को लेकर हमने बड़े सपने बुने थे। इसे लेकर अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की सम्भावनाएं जताई गई थीं। अब राजस्व से जुड़ी चिंताओं के बढ़ने के बीच सरकार ने पहली बार टैक्स वसूली पर दबाव बढ़ने की बात स्वीकार की है। इसके अलावा राज्यों को राजस्व में हो रहे नुक्सान की भरपाई को लेकर भी केन्द्र ने अक्षमता जाहिर की है। जीएसटी काउंसिल ने राज्यों को लिखा है कि पिछले कुछ महीनों में जीएसटी और कम्पनसेशन सेस कलेक्शन चिंता का विषय बन गए हैं और राज्यों के राजस्व की भरपाई किया जाना मुश्किल लगता है। इससे स्पष्ट है कि जीएसटी काउंसिल ने हाथ खड़े कर दिए हैं इससे न केवल केन्द्र सरकार की बल्कि राज्य सरकारों की चिंता भी बढ़ गई है।
कम से कम पांच विपक्ष शासित राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों केरल, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, दिल्ली और पंजाब ने पिछले माह संयुक्त बयान जारी कर इस विषय पर चिंता जाहिर की थी। पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल तो पहले ही कह चुके हैं कि राज्य को जीएसटी का हिस्सा मिलने में देरी हुई तो राज्य सरकार के कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल हो जाएगा। केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने उम्मीद जताई है कि राज्यों का जो कुछ भी बकाया है वह उन्हें दिया जाना चाहिए। अगस्त और सितम्बर में राज्यों के जीएसटी राजस्व में कमी के लिए केन्द्र सरकार की ओर से होने वाली भरपाई में पहले ही विलम्ब हो चुका है। इस मद में भुगतान अक्तूबर में किया जाना था।
जीएस एक्ट के तहत राज्यों की 14 फीसदी की ग्रोथ के नीचे किसी भी तरह की राजस्व में कमी की स्थिति में केन्द्र की ओर से निश्चित मुआवजा मिलता है। इसके लिए बेस ईयर 2015-16 को माना गया है जबकि इसकी डेडलाइन 2022 तक है। जीएसटी कम्पनसेशन हर दूसरे महीने केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को दिया जाता है। केन्द्र सरकार ने कम्पनसेशन सेस के मद में अप्रैल महीने में 64.528 करोड़ रुपए जुटाए थे। इसमें से अप्रैल-जुलाई की समयावधि में राज्यों को 45,744 करोड़ रुपए चुकाए गए। राज्यों को फिलहाल अगस्त-सितम्बर को भुगतान प्राप्त नहीं हुआ। टैक्स वसूली में कमी की आशंकाओं और इससे सरकार के राजकोषीय घाटे पर पड़ने वाले प्रभाव के दृष्टिगत राज्यों का भुगतान रोका गया है।
जीएसटी काउंसिल ने राज्यों से राजस्व बढ़ाने के लिए सुझाव मांगे हैं। काउंसिल की 18 दिसम्बर को होने वाली बैठक में जीएसटी की समीक्षा की जाएगी और इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर और कम्पलायंस के नए उपायों पर विचार किया जाएगा।
जीएसटी का ढांचा इतना उलझा हुआ है कि छोटे व्यापारियों और छोटे दुकानदारों को अब तक इसे समझ पाना टेढ़ी खीर है। बड़े व्यापारी तो सीए की मदद लेकर काम कर लेते हैं। अब तो जीएसटी में घोटाले भी सामने आने लगे हैं। कुछ दिन पहले ही चेन्नई में लगभग 440 करोड़ के सामान की वास्तविक आपूर्ति के बिना नकली चालान जारी करने के रैकेट के लगभग 79 करोड़ रुपए फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट उपयोग करने का खुलासा हुआ है।
सारा काम फर्जी यूनिट बनाकर किया गया। इस गोरख धंधे में कुछ प्राइवेट बैंक भी शामिल हैं। जटिल जीएसटी को जटिल लेन-देन में उलझाया गया है। फर्जी फर्मों के जरिये जीएसटी में चोरी के कई घपले सामने आ रहे हैं। अर्थव्यवस्था की िवकास की रफ्तार पहले ही धीमी है। जीडीपी दर 4.5 फीसदी रह गई है। बाजार में मंदी है। ऐसी स्थिति में राजस्व वसूली का घटना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वयं कहा था कि जीएसटी के ढांचे को सरल बनाने पर विचार किया जा रहा है, जहां तक कराधान को तर्कसंगत बनाने का संबंध है तो इस बारे में राज्यों से बातचीत की जा रही है।
सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि जरूरी वस्तुओं को जीएसटी से छूट न मिले मगर कम से कम इन्हें सबसे निचले रेट के दायरे में रखा जाए। जीएसटी ढांचे को सरल और सहज बनाने के अलावा जरूरी वस्तुएं एक ही स्लैब के दायरे में रहनी चाहिए। जीएसटी काउंसिल एक संवैधानिक निकाय है जिसका नेतृत्व केन्द्रीय वित्त मंत्री सीतारमण करती हैं। इनमें केन्द्रीय वित्त, वाणिज्य राज्य मंत्रियों के अलावा राज्यों के वित्त मंत्री भी शामिल होते हैं। देखना होगा कि जीएस काउंसिल की अगली बैठक में पिटारे से क्या निकलता है। इस बैठक पर सभी की नजरें लगी हुई हैं। आर्थिक और कर सुधार निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और यह होते रहने चाहिएं।