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अमेरिका में गन तंत्र

अमेरिका में गोलीबारी की घटनाएं नियमित रूप से हैडलाइन्स का विषय बनती रहती हैं। अब तो लगातार या कुछ दिनों के अंतराल के बाद ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। अमेरिका दुनिया भर में शांति का संदेश देता है।

अमेरिका में गोलीबारी की घटनाएं नियमित रूप से हैडलाइन्स का विषय बनती रहती हैं। अब तो लगातार या कुछ दिनों के अंतराल के बाद ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। अमेरिका दुनिया भर में शांति का संदेश देता है। मानवाधिकारों की रक्षा का राग अलापता रहता है। सुरक्षा प्रबंध ऐसे कि चिड़िया भी पंख नहीं फैला सकती लेकिन गोलीबारी की घटनाओं में आम लोगों का मारा जाना एक आम बात हो गई है। 
न्यायार्क में ब्रुकलिन के 36 स्ट्रीट मैट्रो स्टेशन पर गोलीबारी की घटना में 16 लोग घायल हो गए। गोलीबारी केे बाद कई बिना विस्फोट वाले बम बरामद किए गए। पुलिस ने इस घटना काे आतंकवादी वारदात होने से इंकार नहीं किया है। न्यायार्क पुलिस ने संदिग्ध हमलावर फ्रेंक आर जेम्स का फोटो जारी कर उसकी जानकारी देने वाले को 50 हजार डालर का ईनाम देने का ऐलान भी कर दिया है। नववर्ष के पहले महीने जनवरी में वाशिंगटन के होटल में गोलीबारी की घटना में एक महिला की मौत हो गई थी और चार लोग घायल हुए थे। इसी माह तीन अप्रैल रविवार को कैलिफोर्निया स्थित सेक्रामेंटाे में हुई गोलीबारी में छह लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा भी इस वर्ष के चार माह में गोलीबारी की 290 घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि 2021 में जनवरी से अप्रैल तक 269 घटनाएं हुई थीं।
न्यूयार्क की घटना में हमलावर कंस्ट्रक्शन वर्कर की ड्रेस में दिखा और उसके हाथ में गन भी थी। जिस इलाके में फायरिंग हुई, वहां की ज्यादातर आबादी अश्वेत है। यहां प्यूर्टोरिको, इक्वाडोर और सैंट्रल अमेरिका के नागरिक रहते हैं। 
अमेरिका में बीते दो वर्षों में बंदूकों के जरिये हिंसा में काफी तेजी देखी जा रही है जो वहां की बंदूक संस्कृति पर सवाल खड़े करती है। हर बड़ी वारदात के बाद इस मुद्दे पर बहस होती है लेकिन फिर शांत हो जाती है। अमेरिका में बंदूक रखना उतना ही आसान है जैसे भारत में लाठी-डंडा रखना। यहां 88.8 फीसदी लोगों के पास बंदूकें हैं जो दुनिया के प्रति व्यक्ति बंदूकों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा आंकड़ा है। अमेरिकी समाज में बंदूक संस्कृति गहरे जम चुकी है, उसका इलाज सम्भव नहीं​ दिखाई देता।
अमेरिका में बंदूक संस्कृति की जड़ें इसके ओपनिवेशिक इतिहास, संवैधानिक प्रावधानों और यहां की राजनीति में देखी जा सकती हैं। कभी ब्रिटेन के उपनिवेश रहे अमेरिका का इतिहास आजादी के लिए लड़ने वाले सशस्त्र योद्धाओं की कहानी रहा है। बंदूक अमेरिका के स्वतंत्रता सैनानियों के लिए आंदोलन का सबसे बड़ा औजार रही है इसलिए वहां बंदूक रखना गौरव और नायकत्व की निशानी बन चुकी है। 15 दिसम्बर, 1791 को अमेरिकी संविधान में दूसरा संशोधन हुआ तो उसमें बंदूक रखने को एक बुनियादी अधिकार मान लिया गया। अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का भी यही कहना था कि बंदूक अमेरिकी नागरिक की आत्मरक्षा और उसे राज्य के उत्पीड़न से बचाने के​ लिए जरूरी है। यही कारण है कि जब भी बंदूकों पर लगाम कसने की जरूरत होती है तो इससे एक तरह से संविधान पर मंडरा रहे खतरे की तरह पेश किया जाता है। जब भी गोलीबारी  की घटनाएं होती हैं तो एक ही जुमला सामने आता है कि बंदूकें किसी को नहीं मारती लोग एक-दूसरे को मारते हैं। फरवरी 2018 में फ्लोरिडा के एक हाई स्कूल में एक पूर्व छात्र द्वारा की गई अंधाधुंध फायरिंग में 17 लोग मारे गए थे। इससे पहले अक्तूबर 2017 में लॉस वेगास में हुई गोलीबारी की एक घटना में 58 लोगों की मौत हो गई थी। जून 2016 में आरलैंडो में हुई गोलीबारी में 50 लोग मारे गए थे। पाठकों को याद होगा कि 5 अगस्त, 2012 को विसकॉन्सिन के एक गुरुद्वारे में की गई अंधाधुंध फायरिंग में 7 सिखों की मौत हो गई थी और 20 घायल हुए थे। 9/11 हमले के बाद भी सिखों को निशाना बनाया गया था। यह हमले हेट क्राइम से संबंध रखते थे। अमेरिका में रंगभेद और नस्लभेद को लेकर भी हमले हाेते रहे हैं। न्यूयार्क में 2 सिखों पर हमले की खबर ने एक बार फिर सबको चिंता में डाल दिया है। मानवाधिकारों के मसले पर भारत को बार-बार निशाना बनाने वाला अमेरिका अपने भीतर झांक कर क्यों नहीं देखता कि उसकी अपनी हालत क्या है? 
बड़ी घटनाओं के बाद ही अमेरिकी संसद में शस्त्र नियंत्रण के लिए लाए गए चारों प्रस्ताव बुरी तरह से गिर गए थे। चारों ही प्रस्ताव सीनेट में आगे बढ़ाए जाने के लिए जरूरी न्यूनतम 60 वोट भी हासिल नहीं कर पाए थे। इनमें से एक प्रस्ताव यह भी था कि किसी व्यक्ति को बंदूक बेचे जाने से पहले उसकी पृष्ठभूमि की गहराई से जांच की जाए लेकिन इसे भी नकार दिया गया। यह सवाल पूरी दु​​निया के सामने है ​कि दुनियाभर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने वाले अमेरिका में निर्दोष लोगों का खून बहाने वाली घटनाओं के बावजूद अमेरिका में बंदूकों पर नियंत्रण होने वाली चर्चा नाकाम क्यों हो जाती है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को अमेरिका में हथियार कानूनों को सख्त बनाने का प्रबल समर्थक माना जाता रहा है लेकिन राष्ट्रपति होने के बावजूद उनकी इस मुद्दे पर कुछ चल नहीं पाई। दरअसल इस काम में बड़ी बाधा अमेरिका की शक्तिशाली हथियार लॉबी भी है। इसमें नैशनल राइफल एसोसिएशन की भूमिका काफी बड़ी है। यह एसोसिएशन हथियार कानूनों को सख्त बनाने की कोशिशों को रोकने के​ लिए हथियार समर्थक जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी लॉबी तैयार कर रखी है। रिपब्लिकन पार्टी के नेता हथियार कानूनों को सख्त बनाने के खिलाफ हैं। वह भी मानते हैं कि बंदूक रखना और आत्मरक्षा के लिए इसे लेकर चलना जरूरी है। भौतिकवाद की इस दुनिया में व्यक्ति का अकेलापन उसे गुस्सैल और खूंखार बनाने के साथ-साथ असुरक्षित भी बना रहा है। अमेरिका का लोकतंत्र एक तरह से खोखला हो चुका है। पता नहीं गन तंत्र का अंत कब होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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