‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ समूची मानवता के लिए सम्मानजनक

‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ समूची मानवता के लिए सम्मानजनक
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संसार भर में बसते सिखों के लिए गुरु ग्रन्थ साहिब जीवित गुरु हैं पर साथ ही दूसरे धर्मों के लिए भी यह सम्मानजनक ग्रन्थ है क्योंकि गुरु ग्रन्थ साहिब में जहां सिख गुरु साहिबान की बाणी दर्ज है वहीं गैर सिख भक्तों, संत महापुरुषों, की बाणी भी है इसलिए हिन्दू-मुस्लिम सभी लोग इसका पूर्ण सम्मान करते हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब का कोई अपमान करे यह किसी सिख को बर्दाश्त नहीं होता। बीते दिनों एक अनोखी घटना सामाने आई जब कतर के दोहा की जेल में गुरु ग्रन्थ साहिब के 2 स्वरूप कैद करके रखे गये थे। इस पर सिख समाज ने तुरन्त एक्शन लिया और भारत के विदेश मंत्रालय की मदद से उन्हें वहां से रिहा करवाकर शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सुपुर्द कर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि इस तरह की घटनाएं होती ही क्यों हैं।
गुरु ग्रन्थ साहिब अन्य धर्म ग्रन्थों से इसलिए भी भिन्न है क्योंकि स्वयं गुरु साहिबान ने अपने जीवनकाल के दौरान लिखा है, अन्य ग्रन्थों की रचना देवी, देवता, पैगम्बरों के संसार से जाने के बाद उनके अनुयाईयों के द्वारा की गई है। इसमें ज्ञान की वह बातें दर्ज हंै जिन्हें वैज्ञानिक आज मानते हैं, गुरु साहिबान ने सैकड़ों वर्ष पूर्व ही लिख दिया था। इस ग्रन्थ का सही मायने में अध्यन करने के बाद इन्सान का जीवन बदल सकता है मगर अफसोस कि राजनीतिक लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए आवाम को भ्रमित कर इसे केवल सिखों का ग्रन्थ साबित करते आए हैं। आज स्थिति ऐसी बन चुकी है सिखों के बड़े बुजुर्गों को छोड़ दें तो अन्य सिख गुरु ग्रन्थ साहिब को केवल माथा टेकने तक सीमित रह गये हैं, बहुत कम सिख हैं जो कि इसे सही मायने में गुरु मानकर इसमें दर्ज बाणी का पाठ करते हैं, उसे समझकर अपने जीवन को बाणी के अनुसार जीने का प्रयत्न करते हैं।
ट्रेन की बोगी में गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश
देश की आजादी के 77 सालों में पहली बार ऐसा हुआ जब सिखों के पांच तख्तों के लिए कोई विषेश ट्रेन चलाई गई हो। इस ट्रेन की खासियत यह है कि 1300 के करीब यात्रियों के अलावा अत्याधुनिक सहूलतों के साथ लैस एक विशेष कोच जिसे बताया जाता है कि रेलवे के बड़़े अधिकारी के अलावा कोई दूसरा इस्तेमाल नहीं कर सकता उसमें गुरु ग्रन्थ साहिब का ना केवल प्रकाश किया गया बल्कि तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड के वरिय ग्रन्थी ज्ञानी गुरमीत सिंह एवं अन्य सिंह साहिबान की संरक्षता़ में अमृतवेले गुरु साहिब के प्रकाश, आसा दी वार का कीर्तन, सुखमनी साहिब का पाठ, शाम को रहरास साहिब, आरती, कथा अरदास के पश्चात् कढ़ाह प्रशादि की देग आदि सभी रस्में पूर्णतः मर्यादापूर्वक इसमें की जाती है। शहीद बाबा भुजंग सिंह चैरीटेबल ट्रस्ट के मुखिया रविन्दर सिंह बुंगई जिनकी माता जी का सपना था कि पूरी ट्रेन के माध्यम से संगत को सिखों के पांच तख्त साहिबान के दर्शन करवाए जायें, वह तो अब इस संसार में नहीं है पर एक पुत्र ने अपनी माता की इच्छा पूर्ति हेतु ऐसा कार्यक्रम तैयार किया जिसमें गुरु गोबिन्द सिंह जी के आखिरी समय व्यतीत करने वाले तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड़ से इसका शुभारंभ करते हुए उनके जन्म स्थान तख्त श्री पटना साहिब लेजाया गया और बाद में अन्य 3 तख्तों के साथ साथ दिल्ली के इतिहासिक गुरुद्वारों के दर्शन भी करवाए गए। केन्द्रीय रेल राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने भी इससे बड़ी भूमिका निभाई है।
इस यात्रा को लेकर सभी में एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिला। सिख जत्थेबंदीयों, कमेटियों ने तो स्वाभाविक ही यात्रा का स्वागत करना था मगर सरकारी स्तर पर भी यात्रा का स्वागत किया गया। तख्त पटना साहिब में सिंह साहिब ज्ञानी बलदेव सिंह के साथ अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही सहित समूची कमेटी और संगत ने शानदार स्वागत किया तो वहीं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी ने भी हरमीत सिंह कालका और जगदीप सिंह काहलो के द्वारा सदस्यों के साथ मिलकर संगत की पूरी आव भग्त की। दिल्ली की केजरीवाल सरकार की ओर से भी विधायक जरनैल सिंह, संजय सिंह दिलीप पाण्डेय आदि ने सफदरजंग स्टेशन पर पहुंचकर यात्रा का स्वागत किया। शायद इसलिए ही कहा जाता है कि सरकारों में सिख नुमाईंदे जरुर होने चाहिए जो सिखों की भावनाओं को समझते हों।
पंजाबीयत का प्रचार
आम तौर पर देखा जाता है कि कई संस्थाओं के द्वारा पंजाबीयत प्रचार के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाई जाती है, लोगों से समय-समय पर प्रचार के नाम पर धन भी एकत्र कर लिया जाता है मगर प्रचार सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जाता है क्योंकि असल में इन संस्थाओं का उद्देश्य प्रचार करने का होता ही नहीं है इन्हंे सिर्फ सुर्खियों में आकर झूठी शोहरत बटोरनी होती है। पंजाबी भाषा पर इस समय चौतरफा हमला हो रहा है मगर बहुत कम लोग हैं जो सही मायने में इसे बचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। स्कूलों में बच्चे पंजाबी भाषा का चयन ही ना करें इस तरह की कोशिशें की जा रही हैं। ज्यादातर घरों में पंजाबी भाषा का इस्तेमाल लिखना तो दूर बोलने में भी नहीं किया जा रहा जिसके चलते ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाली पीढ़ी कहीं अपनी मातृभाषा से पूरी तरह से ही दूर ना हो जाए। पंजाबी भाषा को सिखों की भाषा बताया जाता है जिससे कई गैर सिख सिर्फ इसलिए ही इससे दूर होते चले जा रहे हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। अन्य राज्यों की भान्ति पंजाब में रहने वाले सभी लोगों के लिए भले ही वह किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखते हों उनकी भाषा पंजाबी ही होनी चाहिए मगर अब तो पंजाब में भी लोग हिन्दी यां अन्य भाषाओं को पंजाबी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। बालीवुड में बनने वाली फिल्मों में यहां तक कि कई फिल्मों में तो किरदार भी सिख यां पंजाबी होते हैं मगर उनके टाईटल हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दु में ही प्रदर्शित किए जाते हैं यहां भी पंजाबी के साथ सौतेल व्यवहार किया जाता है। आज तक किसी ने भी इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठाई जबकि सभी लोग रोजाना फिल्में देखा करते हैं। सिख ब्रदर्सहुड संस्था के अध्यक्ष अमनजीत सिंह बख्शी एवं प्रधान महासचिव गुणजीत सिंह बख्शी के द्वारा इस मसले का संज्ञान लेते हुए सैंसर बोर्ड सहित सभी विभागीय कार्यालयों, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में भी पत्र लिखकर माग की है कि अन्य भाषाओं की भान्ति पंजाबी भाषा में भी टाईटल्स लिखे जाएं और सोशल मी​िडया प्लेटफार्म पर सबटाईटल्स पंजाबी भाषा में भी चयन करने का विकल्प होना चाहिए।

– सुदीप सिंह

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