सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में अनेक यात्राएं करते हुए भूले भटके लोगों को सही मार्ग दिखाया, अनेक लोगों का कल्याण किया। मगर अपने जीवन के आखिरी दौर में 18 साल के करीब करतारपुर की धरती पर रहकर खेती की। इसके पीछे उनका मकसद मानव जाति को समझाना था कि सभी को अपने हाथों से मेहनत करनी चाहिए। जो कि गुरु जी के सन्देश में भी आता है ''किरत करो, नाम जपो, वंड छको। उसके बाद इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित हो गया। यहां पर आज भी गुरु नानक देव जी के नाम से 64 एकड़ के करीब खेती वाली जमीन है जहां पर खेती होती है। उसी से पैदा अनाज से गुरुद्वारा साहिब में लंगर तैयार होता है और बाकी जो बच जाता है उसे जरुरतमंदों में बांट दिया जाता है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय यह स्थान पाकिस्तान में चले जाने से सिख समुदाय के लोग केवल दूरबीन के माध्यम से भारत वाले क्षेत्र डेरा बाबा नानक से करतारपुर साहिब के दर्शन किया करते थे। 1984 के काले दौर से पहले यहां से लोग चोरी छिपे इधर उधर चले जाया करते मगर उसके बाद से सरकारों द्वारा की गई सख्ती के चलते वह भी बंद हो गया। सिख समुदाय दिन में जितनी बार भी अरदास करता है बिछुड़े गुरुद्वारांे के खुले दर्शन दीदार की अरदास अवश्य करता है। देश में मोदी सरकार आने के बाद जैसे प्रमात्मा ने सुन ली और श्री करतारपुर साहिब के दर्शनों के लिए बकायदा कोरीडोर बनाकर संगत को सुपुर्द कर दिया जिसके चलते अब संगत श्री करतारपुर साहिब के दर्शन आसानी से कर सकती हैं। करतारपुर साहिब में देश के बंटवारे के बाद पहली बार वैशाखी पर्व को सरकारी स्तर पर मनाया गया और पाकिस्तान वाले पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज स्वयं इस स्थान पर पहुंची और भारत से दर्शनों के लिए पहुंची संगत के साथ मिलकर शबद कीर्तन सुना, लंगर प्रशादि ग्रहण किया और खेतों मेें गेहूं की तैयार फसल को संगत के साथ मिलकर अपने हाथों से काटा। भारत से भी श्रद्धालुओं का जत्था इस दिन करतारपुर साहिब के दर्शनों के लिए पहुंचा हुआ था। मरियम नवाज ने इस मौके पर समूचे पंजाब के स्कूलों में पंजाबी भाषा को हर बच्चे को पढ़ना यकीनी बनाने के ऐलान के साथ ही भारत से रिश्ते बेहतर बनाने के हर संभव प्रयास किए जाने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि उनके पिता नवाज शरीफ हमेशा कहा करते हैं कि पड़ौसियों से रिश्ते बेहतर होने चाहिए। इससे एक बात तो तय हो जाती है जिसे हम लहंदा पंजाब कहते हैं वहां पर आज भी पंजाबी भाषा से प्रेम करने वाले मिल जायेंगे मगर अपने देश के पंजाबियों में भाषा के प्रति प्रेम दिन प्रतिदिन कम होता चला जा रहा है जो कि बेहद चिन्ता का विषय है।
ननकाणा साहिब के दर्शन बिना वीजा के होने चाहिए
गुरु नानक देव जी का जन्म ननकाणा साहिब की पवित्र धरती पर हुआ जो कि आज पाकिस्तान में है। सिख समुदाय की अब मांग उठने लगी है कि करतारपुर साहिब की भान्ति ननकाणा साहिब के दर्शन भी बिना वीजा के होने चाहिए। सिख समुदाय को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पर भी गौर फरमायेंगे और जैसे करतारपुर साहिब के दर्शनों के लिए रास्ता निकाला है उसी प्रकार ननकाणा साहिब के लिए आने वाले समय में श्रद्धालु बिना वीजा के दर्शन कर सकेंगे। पाकिस्तान की सरकार के द्वारा साल में चार बार सिख श्रद्धलुओं के जत्थों को दर्शनों की मंजूरी दी जाती है जिसमें वैशाखी, महाराजा रणजीत सिंह की बरसी, गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी पर्व और गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व शामिल है। पिछले कुछ सालों से जब से पाकिस्तान गुरुद्वारा कमेटी के द्वारा गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी पर्व श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा तय तारीख के हिसाब से नहीं मनाया जाता, इसलिए अब इस मौके पर सिख श्रद्धालुओं का जत्था नहीं जाता। गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व मौके देशभर से 5793 श्रद्धालुओं ने पासपोर्ट दिये थे जिसमें से केवल 3000 के करीब श्रद्धालुओं को ही वीजा दिया गया। इस बार वैशाखी के मौके पर 2800 श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान गया। देखा जाए तो जब भारत और पाकिस्तान की सरकारों में श्रद्धालुओं के जत्थों पर समझौता हुआ होगा उस समय सिखों की आबादी मौजूदा समय की तुलना में काफी कम होगी इसलिए सिखों की आबादी के हिसाब से श्रद्धालुओं की गिनती में भी इजाफा होना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु गुरधामों के दर्शन कर सकें।
सिरोपा की बेकदरी कब तक?
सिख पंथ आज तक सिरोपा का महत्व ही नहीं समझ पाया है। ज्यादातर सिखों के लिए तो यह दो गज का कपड़ा मात्र ही है जिस मर्जी के गले में इसे पहना दिया जाता है। मगर नहीं इसका असल में अर्थ है सिर से लेकर पांव तक सम्मान देना और यह सम्मान हर किसी को नहीं दिया जा सकता। केवल वही इन्सान सिरोपा लेने का हकदार है जिसने अपने जीवन में कोई विशेष कार्य किया हो, उसे भी गुरु साहिब की हजूरी में पूरे सम्मान के साथ सिरोपा दिया जाना चाहिए। अगर किसी गैर सिख को भी सिरोपा दिया जाता है तो पहले उसका सिर ढकवाना चाहिए। मगर आए दिन सोशल मीडिया पर ऐसी फोटो वायरल होती रहती हैं जिनमें सिखों के नेता बने लोग जिन्हें ना तो सिख मर्यादा का ज्ञान है और ना ही सिरोपा के महत्व को समझते हैं वह हर किसी को सिरोपा बांटते फिरते हैं।
ऐसा भी देखने में आता है जब सिंह सभाओं में कोई कीर्तन दरबार, नगर कीर्तन या समागम होता है तो प्रबन्धकों के द्वारा सिरोपा देने वालों की लाईन ही लगा दी जाती है यां यह कहा जाए कि अपने क्षेत्र में अपने नम्बर बनाने के लिए हर किसी के गले में सिरोपा डाल दिया जाता है। सिख प्रचारकों, ग्रन्थी साहिबान का भी फर्ज बनता है कि प्रबन्धकों की जी हजूरी छोड़कर सिरोपा की महत्वता के बारे में समय-समय पर जानकारी देते रहें। इससे हो सकता है कि कभी ना कभी इन नेताओं को सिरोपा की कदर का पता चल जाए।
गुरविन्दर सिंह को पदम श्री
भाई कन्हैया जी आश्रम के संचालक गुरविन्दर सिंह को पदम श्री सम्मान मिलना समूचे सिख पंथ ही नहीं बल्कि समाज सेवा से जुड़े सभी लोगों के लिए गर्व की बात है। गुरविंदर सिंह बेघरों, निराश्रितों, महिलाओं, अनाथों और दिव्यांगजनों की भलाई का कार्य करते हैं। 1 जनवरी 2005 में उन्होंने सिरसा के एक अस्पताल में जरुरतमंद मरीजों को 250 ग्राम दूध की सेवा से अपने सफर की शुरुआत की और सेवा कार्यों में आगे बढ़ते चले गये। आज उनके साथ एक टीम खड़ी है। 2008 में पहली एम्बूलेंस तैयार की गई जो कि दुर्घटना ग्रस्त लोगों और गर्भवती महिलाओं के लिए बिना किसी शुल्क के कार्य करती आ रही है अब तक 11 हजार ऐसे लोग इस सुविधा का लाभ ले चुके हैं। 2011 में उन्हें एक ऐसी महिला सड़क पर दिखी जिसे आश्रय की आवश्यकता थी जिसे देखते हुए 2012 में उन्होंने एक आश्रय स्थल खोला और 2016 में बड़ा आश्रय स्थल बनाया जहां आज 425 के करीब ऐसे लोग जिनका कोई सहारा नहीं होता वह रह रहे हैं। 2023 में बेसहारा बच्चों के लिए भाई कन्हैया जी शिक्षण संस्थान खोला गया जिसमें आज 300 के करीब बच्चे बिना किसी शुल्क के शिक्षा ले रहे हैं। इसमें 50 बच्चों का होस्टल भी है जिसमें 30 बच्चे मौजूदा समय में हैं। गुरविंदर सिंह चलने में असमर्थ होने के कारण व्हीलचेयर पर हैं। गुरविन्दर सिंह की सेवाओं को देखते हुए सरकार ने उन्हें पदम श्री अवार्ड से नवाजा है।
देश की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पदमश्री अवार्ड पाकर वह खासे प्रसन्न दिखे और उनका मानना है कि पहले से भी और ज्यादा अच्छे से वह अपनी सेवाओं को जारी रखेंगे। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो के द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया। गुरविन्दर सिंह सभी युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं जो कि शरीरिक तौर पर अस्वस्थ होेने के बावजूद समाज में सेवाएं देते आ रहे हैं।
– सुदीप सिंह