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ज्ञानवापी : शिव ही सत्य है

काशी की ज्ञानवापी मस्जिद से मिले हिन्दू मन्दिरों के धर्म चिन्हों, प्रतीकों, मूर्तियों व चित्रों के साक्ष्यों को देख कर पहली नजर में ही यह समझा जा सकता है कि भारत में आक्रान्ता बन कर आये मुस्लिम व मुगल शासकों के भीतर इस देश की मूल संस्कृति और इसे मानने वाले लोगों के प्रति किस कदर नफरत भरी हुई थी।

काशी की ज्ञानवापी मस्जिद से मिले हिन्दू मन्दिरों के धर्म चिन्हों, प्रतीकों, मूर्तियों व चित्रों के साक्ष्यों को देख कर पहली नजर में ही यह समझा जा सकता है कि भारत में आक्रान्ता बन कर आये मुस्लिम व मुगल शासकों के भीतर इस देश की मूल संस्कृति और इसे मानने वाले लोगों के प्रति किस कदर नफरत भरी हुई थी। 1192 में सम्राट पृथ्वी राज को धोखे से हराने वाले मोहम्मद गौरी के शासन के बाद से शुरू हुए इस्लामी शासकों ने इस देश की न केवल धन सम्पत्ति को लूटा बल्कि इसे सांस्कृतिक रूप से भी जिस तरह कंगाल बनाने का ‘जेहाद’ छेड़ा उसे मानवीय इतिहास में ‘असभ्यता’ का नंगा नाच कहे जाने के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। एबक वंश से लेकर खिलजी वंश तक और उसके बाद गुलाम वंश से लेकर मुगल वंश तक (केवल अकबर को छोड़ कर) जिस प्रकार चुन-चुन कर हिन्दुओं के पूजा स्थलों व उनके सांस्कृतिक श्रद्धा स्थलों व संस्थानों को ‘इस्लामी जेहाद’ के नजर किया गया और बाद में हिन्दू व सिखों दोनों को ही इस्लामी निजाम का निवाला बनाया गया उसने हिन्दोस्तान की अजमत को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी मगर यह हिन्दू संस्कृति की अन्तर्निहित सहिष्णु व सहनशील विचारधारा की ही ताकत थी कि मुस्लिम शासक लाख कोशिशों के बावजूद इसे मिटा नहीं सके और 1857 तक पूरे भारत में मुसलमानों की जनसंख्या केवल 20 प्रतिशत के आसपास ही सिमटी रही। लेकिन काशी के बाबा विश्वनाथ धाम के भीतर जिस तरह 1669 के आसपास दुराचारी औरंगजेब ने ‘इस्लामी जेहाद’ का अजाब नाजिल करते हुए इसके एक भाग में बने ज्ञानवापी कूप के निकट देवाधिदेव भगवान शंकर के ‘पवित्र’ स्थान को ‘गलीज’ करते हुए वहां मन्दिर के ऊपर मस्जिद की मीनारें तामीर करा कर हिन्दुओं को अपमानित करने का काम किया उसके प्रमाण अब लगभग चार सौ साल बाद सामने आ गये हैं।
है कोई माई का लाल इ​तिहासकार जो ज्ञानवापी मस्जिद से मिले इन हिन्दू साक्ष्यों को झुठला सके और मुगल शासकों को ग्रेट (महान) बताने की हिमाकत कर सके। क्या कयामत है कि आजाद हिन्दोस्तान में नागरिक प्रशासन की सर्वोच्च परीक्षा ‘आई ए एस’ में ‘द ग्रेट मुगल्स’ के अध्याय में से प्रश्न पूछा जाना आवश्यक बना दिया गया था। भारत की आज की युवा पीढ़ी औरंगजेब को किस श्रेणी में रखना चाहेगी, मुझे नहीं मालूम मगर इतना निश्चित है कि इस देश की पुरानी पीढि़यों ने आंखों में आंसू भर कर जरूर जीवन काटा होगा। उन्हीं पीढि़यों के आंसुओं का कर्ज चुकाने का वक्त अब आ गया है और भगवान शंकर के पवित्र स्थान को गलीज बनाने वालों के कब्जे से ज्ञानवापी को छुड़ा कर वहां काशी के रचयिता भगवान शंकर की स्तुति में पूरी नगरी को गुंजायमान करने का भी समय भी आ पहुंचा है। बेशक भारत संविधान से चलने वाला देश है और जो भी फैसला होगा वह इस देश की विश्व प्रतिष्ठित न्याय प्रणाली की कलम से ही आयेगा मगर जब तक यह मामला न्यायालय के विचाराधीन रहता है तब तक कम से कम ज्ञानवापी क्षेत्र में मिले भगवान शंकर के लिंग की पूजा-आराधना का अधिकार हिन्दुओं को मिलना चाहिए। सवाल यह नहीं है कि यह काम एक और ऐसे बादशाह ने किया था जो इस्लाम का अनुयायी था बल्कि मूल सवाल यह है कि वह उस भारत का शासक था जिसके लोग देव प्रतिमाओं के पूजने वाले थे। औरंगजेब व अन्य मुस्लिम शासक इन्हीं प्रतिमाओं को खंडित करके और इनके स्थानों को अपवित्र करके अपने मजहब का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे अतः मूलतः वे शासक नहीं बल्कि लुटेरे और डाकू थे।
धर्म के नाम पर तास्सुब फैलाने में माहिर इन लोगों को भारत की धर्मनिरपेक्षता की इज्जत करते हुए खुद ही आगे आकर यह एेलान करना चाहिए कि ज्ञानवापी हिन्दुओं की है और औरंगजेब ने जो मन्दिर को मस्जिद बना कर जो कुफ्र किया था उसकी हम ‘तलाफी’ करते हैं। मगर यह हिम्मत कौन करेगा ?
पैगम्बरे इस्लाम ‘हजरत मुहम्मद सलै अल्लाह अलैह वसल्लम’ का कुछ साल पहले डेनमार्क में कार्टून बनाने वाले पत्रकार का सिर कलम करने का तो ये फतवा दे सकते हैं मगर भगवान शंकर की प्रतिमा के ज्ञानवापी परिसर को ‘वुजू खाना’ बनाने पर ये सच से आंखें चुराते हुए झूठ की पैरवी में उल्टी दलीलें देने लगते हैं। देश के सर्वोच्च न्यायलय ने ज्ञानवापी का मुकदमा अब काशी के जिला जज की अदालत में स्थानान्तरित करके दो महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का हुक्म दिया है और कथित मस्जिद में वुजू का इंतजाम करने का भी आदेश दिया है क्योंकि न्यायालय पहले ही ज्ञानवापी के भोले के स्थान को सीलबन्द करके उसकी सुरक्षा का आदेश दे चुका है। मगर भारत मे औंरंगजेबी नंगे नाच का अकेला मामला काशी नहीं है बल्कि मथुरा का श्रीकृष्ण जन्म स्थान भी है और मेरठ के पुरानी तहसील इलाके के कृष्ण पाड़ा क्षेत्र में खड़ा हुआ व बौद्ध मठ भी है जिसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था। इसके अलावा पूरे भारत में न जाने कितनी मस्जिदें हैं जो मन्दिरों व बौद्ध मठों के ऊपर बनाई गई हैं।
दिखाऊंगा तमाशा, दी अगर फुर्सत जमाने ने 
मेरा हर दागे दिल इक तुख्म है सर्वे चरागां का 

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