ज्ञानवापी मस्जिद मामले में चल रही कानूनी लड़ाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से हिन्दू पक्ष को काफी संतोष मिला है। हाईकाेर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका समेत मुस्लिम पक्ष की सभी याचिकाओं को ठुकरा दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए 1991 के वाराणसी कोर्ट में दायर मुकदमे को सुनवाई योग्य मानते हुए वाराणसी की अदालत को 6 माह के भीतर फैसला देने का निर्देश दिया है। वर्ष 1991 में एक केस फाइल किया गया था। इस याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई थी। यह केस सोमनाथ व्यास, रामनारायण शर्मा और हरिहर पांडे की ओर से दाखिल किए गए थे। इस केस में दावा किया गया था कि मस्जिद जहां बनी है वो काशी विश्वनाथ की जमीन है। इसलिए मुस्लिम धर्मस्थल को हटाकर उसका कब्जा हिन्दुओं को सौंपा जाए। मस्जिद को लेकर पहला विवाद 1809 में हुआ था जो साम्प्रदाियक दंगों में तब्दील हो गया था। अदालत में एक मुकदमा 1936 में भी दायर हुआ था जिसका निर्णय 1937 में आया। फैसले में पहले निचले कोर्ट और फिर हाईकोर्ट ने मस्जिद को वक्फ प्रोपर्टी माना।
12 सितम्बर, 2022 को वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में देवी-देवताओं की पूजा की मांग को लेकर दायर की गई पांच महिलाओं की याचिका काे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, साथ ही मुस्लिम पक्ष की याचिकाएं खारिज कर दीं। जब 1991 में ज्ञानवापी मामले में पहला मुकदमा दायर हुआ तो उसके कुछ महीने बाद सितम्बर 1991 में तत्कालीन पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार ने उपासना स्थल कानून बना दिया। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल की जेल और जुर्माना हो सकता है।
अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था लेकिन ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी। उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा। इसी आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। 2021 में वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी। आदेश में एक कमीशन नियुक्त किया गया और इस कमीशन को 6 और 7 मई को दोनों पक्षों की मौजूदगी में शृंगार गौरी की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए। 10 मई तक अदालत ने इसे लेकर पूरी जानकारी मांगी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अब 32 वर्ष बाद मुकदमे की सुनवाई का आदेश दिया है और कहा है कि 1991 का उपासना स्थल कानून इस सिविल वाद में बाधित नहीं है। अब जबकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट अदालत में जमा कराई जा चुकी है और उसी के आधार पर स्वामित्व विवाद का हल निकल सकेगा और करोड़ों हिन्दुओं की आस्था जीवंत हो उठेगी। अब वाराणसी कोर्ट 6 माह में अपना फैसला सुनाएगा। हिन्दू पक्ष के वकीलों को उम्मीद है कि अब वजुखाने का सर्वे भी होगा।
मेरा अभी भी यह दृढ़ मत है कि काशी विश्वनाथ धाम परिसर में स्थित ज्ञानवापी क्षेत्र को मुस्लिम बन्धुओं को हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए और स्वतन्त्र भारत की एकता व 'गंगा-जमुनी' तहजीब में इजाफा करने के लिए अपना बड़ा दिल दिखाना चाहिए। काशी या बनारस हिन्दू मान्यता के अनुसार स्वयं भगवान शंकर द्वारा बसाया गया वह स्थान है जिसमें शहनाई वादन के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने अपनी धुनों से भोलेनाथ को मनाया और शंकर शंभू जैसे महान कव्वालों ने "हजरत मोहम्मद सलै-अल्लाह-अले-वसल्लम" की शान में 'नात' गाया। काशी के विश्वनाथ धाम के बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज आज भी संग्रहालय में सुरक्षित हैं कि 1669 में औरंगजेब ने इसका विध्वंस करने का फरमान जारी किया था। इसी प्रकार उसने मथुरा के केशवदेव मन्दिर को भी क्षति पहुंचाने का आदेश दिया था। बेशक यह उस दौर की राजनीति में राजशक्ति दिखाने की कोई रणनीति रही होगा जबकि औरंगजेब के शासन में पूरे मुगल सम्राटों के शासन के मुकाबले सर्वाधिक 'हिन्दू मनसबदार' थे। मगर यह इतिहास का सच तो है ही अतः मुसलमानों को इसे स्वीकार करना चाहिए और भारतीय संस्कृति का सम्मान करते हुए फराखदिली दिखानी चाहिए।
ज्ञानवापी की दरो दीवार यही कहती है कि एक मंदिर के ऊपर मस्जिद खड़ी कर दी गई तो इस्लाम की नजर में भी नाजायज है। अंजुमन इंतजामिया कमेटी ने कहा है कि वह कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और अंतिम सांस तक लड़ेंगे। कमेटी ने यह भी कहा है कि मस्जिद को आसानी से तश्तरी में सजा कर नहीं देंगे। अब जबकि इंसाफ नहीं हो रहा तो सड़कों पर उतरने के हालात भी बन सकते हैं। अभी भी समय है कि दोनों सम्प्रदाय बैठकर मुद्दे काे सुलझाएं। अयोध्या की तर्ज पर मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए कहीं ओर भूमि भी दी जा सकती है।