हाय सर्दी-उफ सर्दी! आज यही सबके मुंह से निकल रहा है, क्या गजब की सर्दी है। कोई भी मिलने आता है चाहे वो कितने कपड़ों से ढका हो, हाथ मलता, मुंह से धुआं, कान से धुआं, बस एक ही बात कहर की सर्दी, कमाल है। इतनी सर्दी कभी नहीं पड़ी। कोई कहता है सौ साल बाद ऐसी सर्दी, कोई कहता है 22 साल बाद ऐसी सर्दी। जैसे कि आप सबको मालूम है कि मैं बुजुर्गों के लिए काम करती हूं तो मेरे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के सभी सदस्य जिद पकड़ कर बैठ गए कि हमें छुट्टियां नहीं चाहिए।
मैं भी उनकी बात मानने वाली थी कि इतनी सर्दी देखकर छुट्टी करनी पड़ी। यही नहीं जब जरूरतमंद बुजुर्गों को सर्दी का सामान और राशन बांटना था तो मेरी पीएस यानी पर्सनल सैक्रेटरी राधिका, जिसको मैं सैक्रेटरी कम छोटी बहन ज्यादा मानती हूं, तो उसने मुझे कहा, मैडम इतनी ठंड है, क्यों न इस बार रजाइयां बांटी जाएं, कम्बल तो हर बार बांटते हैं। मैंने उसे कहा बुजुर्ग इतनी मोटी रजाई को कैसे घर लेकर जाएंगे तो उसने कहा इतनी सर्दी है कि वह बहुत खुश होकर लेकर जाएंगे।
वही हुआ, रजाइयां देखकर वे बहुत खुश हुए और जब मैं सर्दी देख रही हूं तो मुझे खुद बहुत अच्छा महसूस हो रहा है कि राधिका की वजह से अच्छा निर्णय हुआ और दानी नंदा अग्रवाल के सहयोग से यह काम सफल हुआ। सर्दी विदेशों में भी बहुत होती है। पिछले साल इस समय हम अमेरिका में थे जिस दिन हमारी फ्लाइट थी पहली बर्फ गिरी, ऐसे लग रहा था कि हम फ्लाइट नहीं पकड़ पाएंगे क्योंकि सड़कें एकदम बर्फ से ढक गई थीं। ट्रैफिक बहुत था परन्तु उनका सिस्टम कमाल का था। एकदम सड़क साथ-साथ साफ हो रही थी।
इंडियन एम्बैसी वाले हमारी बहुत मदद कर रहे थे। बहुत से इंडियन और हमारे रिश्तेदार हमें सीऑफ करने आए थे और जिस अपार्टमैंट में हम रह रहे थे वो भी हमारी मदद कर रहे थे, क्योंकि अश्विनी जी ठीक नहीं थे परन्तु सबके सहयोग से काम सरल हो गया। कहने का भाव है अगर हम भी अपने इंडिया के हालात देखते हुए एक-दूसरे का सहयोग करें तो काम बन सकता है क्योंकि अगर हम एक-एक गर्म कपड़ा या कम्बल या रजाई निकालें तो बहुत से लोग सर्दी से बच जाएंगे।दिल्ली में इस बार कड़ाके की ठंड पड़ रही है।
अमीर वर्ग तो सुविधाओं के चलते अपनी जिंदगी आराम से गुजर-बसर कर लेता है लेकिन दिल्ली में नीले आकाश के नीचे गर्मियों में जीवन बिताने वाले लाखों लोग सर्दियों के शुरू होते ही बेहद मुश्किलों में घिर जाते हैं। बिच्छु की तरह डंक मारने वाली आजकल की ठंड से बचाने के लिए दिल्ली सरकार का दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड बहुत सक्रिय रहता है। सरकार की योजना के मुताबिक निराश्रित लोगों को शीतकाल में जब सहारा दिया जाता है तो यह एक पुण्य का काम है। यह मानवता काे समर्पित एक काम है जिसको करने के लिए सैंकड़ों एनजीओ की तरह लाखों लोग दान-पुण्य का भी काम करते हैं।
हमारा मानना है कि अनेक रैन बसेरों में जीवन यापन सहजता से तो कइयाें में बड़ी कठिनाइयों से गुजरता है। बेघर लोग इन रैन बसेरों में रात को शरण लेते हैं। उदाहरण के तौर पर मोतीबाग और एम्स के पास तो कुछ रैन बसेरे ऐसे हैं जहां एम्स में इलाज कराने आए लोेग बिस्तर, कम्बल, सार्वजनिक प्रसाधन और अन्य आधारभूत सुविधाएं पाते हैं। इससे लोगों को सहारा मिल जाता है। दूर-दराज से आने वाले लोगों के लिए यह काम सचमुच प्रशंसनीय है लेकिन इस कड़ी में हमारा यह भी कहना है कि अनेक रैन बसेरे ऐसे हैं जहां भिखारियों और अन्य नशा करने वाले लोगों ने स्थायी ठिकाने बना लिए हैं।
चाहे वे फ्लाइओवराें के नीचे हों या कहीं और लेकिन उनकी पहचान जरूर की जानी चाहिए। अनेक लोग सैंकड़ाें बेघर लोगों को सर्दियों में कम्बल, रजाइयां व अन्य गर्म वस्त्र वितरित करते हैं। ठंड से दिल्ली में प्रतिदिन औसतन पांच लोगों के मरने की खबरें आती हैं। चौराहों पर कितने ही विकलांग लोग ठंड में कपड़ों के अभाव में हाथ फैलाकर पैसे की गुहार लगाते रहते हैं। लोग उनकी मदद करते हैं। मानवता का तकाजा भी यही है परंतुु किसी भी सूरत में ठंड से लोगों की मौत नहीं होनी चाहिए।
अनेक एनजीओ गर्म कपड़े और कम्बल लोगों से इकट्ठे करके जरूरतमंदों को बांटते हैं। सच बात तो यह है कि बेघर लोगों की दिल्ली में अपनी ही एक अलग दुनिया है और अपने ही अलग ठिकाने हैं। हम सरकार से अनुरोध करेंगे कि अनेक मददगार लोग ऐसे लोगों के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। यद्यपि इस समय दिल्ली में 221 रैन बसेरे हैं और सरकार इनकी संख्या 270 करने जा रही है। खुले आसमान के नीचे सड़कों के किनारे ठिठुरते हुए लोगों के लिए आगे आना एक महान कार्य है। हमारा भारत महान है परन्तु ईश्वर हमें जाे देता है छप्पर फाड़ कर देता है। सर्दी, गर्मी, बरसात में हम सब इस ईश्वर की नियति से मिलकर सामना कर सकते हैं।