जापान के ओसाका में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ एक मंच पर दिखाई दिए। उनकी मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ हुई। प्रधानमंत्री अन्य कई राष्ट्राध्यक्षों से मिले। जी-20 बड़ी और तेज रफ्तार अर्थव्यवस्थाओं और आर्थिक संगठनों का समूह है। भारत के लिए यह सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण रहा। यह सम्मेलन ऐसे समय में हुआ जब अमेरिका और ईरान में परमाणु कार्यक्रम को लेकर जबर्दस्त टकराव चल रहा है। दोनों ही देश अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए युद्ध तक जाने को तैयार हैं।
दूसरी तरफ अमेरिका और चीन में ट्रेडवार दिन-प्रतिदिन गहरा रहा है। भारत और अमेरिका में भी कई मुद्दों पर विवाद गहरा रहा था। दोनों देशों के बीच टैरिफ वार शुरू हो चुकी है। अमेरिका ने ईरान से तेल नहीं खरीदने के लिए भारत को सहमत तो कर लिया है लेकिन भारत की चिन्ताएं वाजिब हैं कि अगर वह ईरान से तेल नहीं खरीदता तो उसकी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए अमेरिका क्या करेगा। अमेरिका ने हमें रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम नहीं खरीदने के लिए चेताया भी है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि भारत अपने हितों की रक्षा कैसे करेगा? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब वैश्विक शक्तियों से आंख से आंख मिलाकर बात करता है न कि आंख झुकाकर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात कर अपनी चिन्ताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है।
उन्होंने भारत की ऊर्जा जरूरतों पर बात की। उन्होंने साफ कहा कि अमेरिका ने भारत को अहमियत देना कम किया है। अगर अमेरिका भारतीय उत्पादों पर टैक्स लगाएगा तो भारत ने ऐसा ही किया है। ताली एक हाथ से बजेगी नहीं। फिलहाल दोनों की बातचीत काफी सकारात्मक रही और दोनों ही देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने और कई अन्य क्षेत्रों में मिलकर काम करने का संकल्प दोहराया। फिलहाल अमेरिका भारत टैरिफ विवाद आैर अन्य मुद्दों को सुलझाने के लिए आगे बातचीत जारी रखने पर सहमत हुए हैं। जी-20 सम्मेलन से इत्तर महत्वपूर्ण रही जापान, भारत और अमेरिका की त्रिपक्षीय बैठक और दूसरी बैठक भारत, रूस और चीन की हुई। जापान, अमेरिका भारत बैठक को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘जय’ यानी जीत बताया।
इस बैठक में जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और मंदी का मुद्दा उठाया गया। प्रधानमंत्री ने इनसे निपटने के लिए अपने सुझाव दिए। रूस, भारत, चीन की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद को एक वैश्विक चुनौती बताया और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से सामूहिक रूप से मुकाबला करने का संदेश दिया। तीनों देशों ने वाणिज्य के क्षेत्र में संरक्षणवाद का विरोध करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया और विकासशील और विकसित राष्ट्रों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विश्व व्यापार संगठन में सुधार पर बल दिया। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते भारत, रूस और चीन परेशान हैं इसलिए तीनों देशों के नेता इस बात पर सहमत थे कि बदले हुए आर्थिक और वैश्विक माहौल के युग में वैश्वीकरण, मुक्त व्यापार की प्रवृत्ति को बनाए रखना और संरक्षणवाद की प्रवृत्ति का विरोध करना जरूरी है।
बहुपक्षवाद, अन्तर्राष्ट्रीय कानून और अन्तर्राष्ट्रीय नियम की रक्षा करना भारत, चीन और रूस तीनों देशों के समान हितों से मेल खाता है। कूटनीतिक क्षेत्रों की यह धारणा बहुत पहले से ही है कि यदि चीन, रूस, भारत त्रिकोण अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाएं तो अमेरिकी दादागिरी कहीं देखने को नहीं मिलेगी। भारत की राजनीति तो हमेशा सम्बन्धों में संतुलन बनाने की रही है। वैश्विक शक्तियां भारत को कभी बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में नहीं देखना चाहतीं। भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति में स्थाई सदस्यता का प्रबल दावेदार है। आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भयंकर भूल की थी जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता की पेशकश को ठुकराकर चीन को सदस्य बनाने की वकालत कर दी। उसके बाद भारत को कभी मौका ही नहीं मिला।
जहां तक जापान का सवाल है औद्योगिक विकास में जापान भारत का बड़ा सहयोगी बनकर उभरा है। भारत और जापान के कई साझा उपक्रम चल रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में दोनों देशों के बीच विकास की कई परियोजनाओं पर समझौते हुए हैं, इनमें सबसे बड़ी परियोजना तो बुलेट ट्रेन की है। भारत के मेक-इन-इंडिया को भी जापान का पूरा सहयोग मिल रहा है। जी-20 सम्मेलन में भारत ने भगौड़े अपराधियों से निपटने, तकनीकी सहयोग बढ़ाने, हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर बेबाक बातचीत आज समय की जरूरत है। अब विश्व भारत की सुनने लगा है, यही भारत की जय है।