लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

हल्द्वानीः घर से बेघर पर रोक

भारत का संविधान मानवीय मूल्यों पर आधारित दुनिया का ऐसा जीवन्त दस्तावेज है जिसमें नागरिकों को केन्द्र में रखकर राष्ट्र की परिकल्पना की गई है।

भारत का संविधान मानवीय मूल्यों पर आधारित दुनिया का ऐसा जीवन्त दस्तावेज है जिसमें नागरिकों को केन्द्र में रखकर राष्ट्र की परिकल्पना की गई है। इनके अधिकारों के प्रति सम्पूर्ण संविधान पूरी संवेदना के साथ वे शक्तियां प्रदान करता है जिससे प्रत्येक नागरिक अपने जीवन जीने के अधिकार का प्रयोग करते हुए अपने व्यवसाय व निवास स्थल का चयन भी कानून सम्मत तरीके से कर सके। नागरिकों का स्वतन्त्र भारत में सम्पत्ति का मौलिक अधिकार भी दिया गया जिसे बाद में 1978 में संवैधानिक अधिकार में बदल दिया गया। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी मनपसन्द जगह पर बसने का अधिकार भी देता है मगर शर्त यह है कि इसका तरीका पूर्ण रुपेण वैधानिक हो। भारत का इसीलिए कोई मजहब नहीं है क्योंकि इस राष्ट्र की पूरी परिकल्पना ही मानवीय रिश्तों के उन समीकरणों पर की गई है जिसमें मनुष्यता का भाव सर्वोपरि है। अतः संविधान ने सभी धर्मों, वर्गोंं, सम्प्रदायों, स्त्री-पुरुषों व भाषा-भाषी लोगों को एकसमान मानते हुए उन्हें बराबर के अधिकार दिये और तय किया कि राज सत्ता  के समक्ष मानवीय पक्ष ही नागरिकों को न्याय देने का मूल मन्त्र होगा।
 उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर की रेलवे की कथित भू-सम्पत्ति पर बसे हुए लोगों को बेघर करने के नैनीताल उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगन आदेश जारी करते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है वह भारत के संविधान के मानवीय पक्ष की ही पैरवी करता है और कहता है कि वर्षों से कहीं बसे हुए लोगों को एक झटके में उजाड़ना न्याय की किसी भी परिभाषा से मेल नहीं खाता है। यहां असली सवाल यह है कि जो लोग पिछले 60 वर्षों से अधिक समय से अपना आशियाना इस विवादित जमीन पर बसाये बैठे हैं उनका कसूर क्या है? सवाल यह है क्या इन्होंने बाजाब्ता हुकूमत के साये में इस जमीन पर जबरन कब्जा किया या फिर हुकूमत ने ही इन्हें इस जमीन पर बसने की इजाजत दी? अगर हुकूमत की बिना मर्जी के ये पचास हजार से ज्यादा लोग इस जमीन पर अपने चार हजार से अधिक पक्के मकान बनाकर रह रहे होते तो उन्हें खुद हुकूमत ही बिजली, पानी से लेकर दूसरी जरूरी सुविधाएं क्यों मुहैया करा रही होती।
जाहिर है कि हुकूमत इन लोगों को इस जमीन के मालिकाना हकों से लैस मानती थी तभी तो उसने सरकारी स्कूल से लेकर बैंक तक खुलवाये और इन बाशिन्दों को भारत के सामान्य नागरिकों की तरह सारी सुविधाएं दीं। इनमें से बहुत से नागरिकों ने जमीन नीलामी में खरीदी है और बहुतों के पास जमीनी पट्टे हैं । क्या ये सारी कार्रवाई अवैध तरीके से हुकूमत की नाक के नीचे की गई? अगर यह रेलवे की जमीन थी तो यह विभाग अपने सामने ही पिछले साठ सालों से अपनी जमीन पर कब्जा होते कैसे देखता रहा और वहां उसने पक्के मकान बन जाने दिये। मगर सबसे ऊपर सवाल यह है कि भारत में क्या गरीबों को अपने ​िसर पर पक्की छत डालने का हक है या नहीं? 
भारत का संविधान कहता है कि प्रत्येक नागरिक को रहने-बसने का अधिकार है और यदि किसी कारणवश किसी रिहायशी इलाके के लोगों को कानूनी तौर पर वहां से उठाया जाता है तो उनके पुनर्वास की व्यवस्था करना भी सरकार का दायित्व है। इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के ही कई पिछले आदेश हैं जिनका सरकार को पालन करना पड़ा है। अतः बहुत स्पष्ट है कि नैनीताल उच्च न्यायालय का फैसला सर्वोच्च न्यायालय को न्यायोचित नहीं लगा और उसने उसके खिलाफ स्थगन आदेश देते हुए रेलवे विभाग व सरकार को निर्देश दिया कि वह हल्द्वानी के पचास हजार लोगों के लिए पहले व्यावहारिक पुनर्वास योजना तैयार करें और उसके बाद जमीन खाली कराने के बारे में सोचे। पूरे मामले का एक और व्यावहारिक पक्ष यह है कि भारत में जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है उसे देखते हुए प्रत्येक परिवार के लिए घर की व्यवस्था करना भी लोक कल्याणकारी सरकार का दायित्व हो जाता है। बेशक सम्पत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है, मगर जन कल्याण के लिए जमीन अधिग्रहित करना भी सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। सरकारी विकास परियोजनाओं के लिए जब सरकार जमीन अधिग्रहण करती है तो वहां बसे लोगों के पुनर्वास की जिम्मेदारी भी उसकी होती है। जो लोग पीढ़ियों से किसी जमीन पर बसे होते हैं उनके कुछ वाजिब हक भी उस इलाके पर हो जाते हैं। 
भारत के संविधान की सबसे बड़ी खूबी भी यही है कि इसके हर प्रावधान में मानवीय पक्ष को प्रमुख रखा गया है, वरना क्या जरूरत थी सर्वोच्च न्यायालय को कि वह निर्देश देता कि पहले हल्द्वानी के पचास हजार लोगों को दूसरी जगह बसाने की कोई स्कीम तो सामने लाओ उसके बाद आगे की बात सोचो? भारत केवल कोठी-बंगले और बड़े-बड़े आलीशान मकानों का देश ही नहीं है बल्कि यहां आज भी 80 प्रतिशत लोग घरौंदों में ही रहते हैं। इनके घरौंदों को उजाड़ कर सम्पन्न भारत का सपना कैसे पूरा किया जा सकता है। जिन लोगों ने जीवन भर भारी मेहनत-मशक्कत करके अपने सर के ऊपर टूटी-फूटी छत बनाई है उन्हें एक ही झटके में केवल सात दिनों के नोटिस पर बेघर  किया जा सकता है? एक घर बनाने में पूरी जिन्दगी लग जाती है फिर चाहे वह घर किसी हिन्दू का हो या मुसलमान का। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

six − 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।