सोशल मीडिया पर लोग मोटर वाहन एक्ट को लेकर मजे ले रहे हैं। पुलिस का जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। कहा जा रहा है-
आम लोगों का भारी भरकम चालान
मंत्री के बेटे को पुलिस करती सलाम।
ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियमों का उल्लंघन करने वालों से भारी-भरकम चालान वसूल किए जा रहे हैं लेकिन वीआईपी गाड़ियों को अनदेखा किया जा रहा है। केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे की कार को पुलिस वालों ने बिना पेपर चैक किए जाने दिया। अश्विनी चौबे के बेटे की गाड़ी पर काले शीशे चढ़े थे। जब इस पर सवाल उठे तो तीन पुलिसकर्मी निलम्बित कर दिए गए।
चांद पर तो लैंडर विक्रम की हार्ड लैंडिंग हो चुकी है लेकिन सड़कों पर भी वाहनों की हार्ड लैंडिंग हो रही है। पुलिस तो फिर पुलिस है। पुलिस चालान काटने में इतनी व्यस्त है कि कार और बाइक में फर्क ही नहीं समझ रही। ऑन लाइन सिस्टम हाथ में आने के बाद पुलिस की ज्यादतियां शुरू हो चुकी हैं। एक कार चालक का हैलमेट न पहनने पर चालान काट दिया गया। नोएडा में वाहन चैकिंग के दौरान पुलिस से नोकझोंक में एक युवक की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। कई जगह तो पुलिस वाले थाने के बाहर कुर्सियां डाल कर बैठ गए हैं। व्यापारी चालान के नाम पर पुलिस पर उत्पीड़न का आरोप लगाने लगे हैं।
यद्यपि केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि नियम सबके लिए समान है और मुम्बई के बांद्रा वर्ली सी लिंक पर ओवर स्पीडिंग के लिए उन्हें भी जुर्माना देना पड़ा था। उन्होंने दावा किया है कि यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए भारी जुर्माने से पारदर्शिता आएगी, भ्रष्टाचार खत्म होगा लेकिन उनके दावे पर आम लोगों का संदेह बढ़ गया है। आम लोगों का कहना है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा। अमीर लोग तो जुर्माना चुका देंगे लेकिन आम आदमी भारी भरकम जुर्माना कैसे चुका पाएगा। डर इस बात का है कि यह रकम उगाही का हथकंडा न बन जाए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं देश की बड़ी समस्या है, उन पर काबू पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। अब सवाल यह है कि क्या भारी जुर्माने के डर से लोग यातायात नियमों का पालन करने लगेंगे? क्या उनमें सुरक्षित वाहन चलाने की आदत विकसित होगी? एक पहलू तो यह है कि लोगों में ट्रैफिक सेंस पैदा होगी, दूसरा पहलू यह है कि जब भी किसी भी क्षेत्र में नियमों को तोड़ने पर भारी भरकम जुर्माने का प्रावधान किया गया, तब-तब इंस्पैक्टरी राज को बढ़ावा मिला। केवल दंड और जुर्माने के डर से लोगों में कानून तोड़ने की प्रवृत्ति खत्म करने का दावा नहीं किया जा सकता। सड़कों पर हर समय अफरा-तफरी का माहौल भी अच्छा नहीं होगा। ट्रैफिक पुलिस को भी जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
इंस्पैक्टरी राज की प्रवृत्ति तो अभी से ही सामने आने लगी है। कुछ छोटे शहरों में पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है, पार्किंग की सुविधा का तो बड़े शहरों में भी अभाव है लेकिन ट्रैफिक पुलिस अवैध पार्किंग करने वालों की गाडि़यां उठा ले जाती है और गाड़ी छुड़ाने में ही पूरा दिन लग जाता है। नियम भी तब टूटने शुरू होते हैं जब सुविधाएं नहीं होतीं।
यद्यपि सोशल मीडिया पर खूब मजे लिए जा रहे हैं, मीम्स बनाए जा रहे हैं, शेयर किए जा रहे हैं और वायरल हो रहे हैं। ऐसा सिर्फ आम लोग ही नहीं कर रहे बल्कि पुलिस भी इसमें शामिल है।
विदेशों में भी ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर भारी भरकम जुर्माना लगाया जाता है। भारत में समस्या यह है कि हमने कभी ट्रैफिक नियमों को गम्भीरता से लिया ही नहीं। कुछ लोगों को अब भी यही लगता है कि हरी बत्ती होने के चार सैकेंड पहले ही गाड़ी बढ़ा लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसी मानसिकता जाते-जाते ही जाएगी। भारत में पहली कक्षा से बच्चों को ट्रैफिक नियमों की जानकारी देनी शुरू करनी चाहिए। एबीसीडी के साथ ट्रैफिक सिग्नल की जानकारी दी जानी चाहिए ताकि बच्चों को प्राइमरी स्तर से ही जागरूक बनाया जा सके।
एक अध्ययन कहता है कि हमारे देश में 2017 में आतंकवाद के चलते मरने वालों की संख्या करीब 766 थी जबकि सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या एक लाख 48 हजार थी। यह आंकड़े आंखें खोल देने वाले हैं। सवाल यह है कि अगर लोग अब भी नहीं सुधरे तो फिर कब सुधरेंगे। सुरक्षित जीवन के लिए हमें ट्रैफिक नियमों का पालन करना होगा और अपनी गलत आदतों को बदलना होगा।