अप्रैल माह में सूर्य के तेवर इतने तल्ख हो चुके हैं कि घरों से बाहर निकलते ही लू जैसे प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। उससे इस वास्तविकता को स्वीकार कर लेना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन ने हमारे जीवन पर घातक प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। मौसम वैज्ञानिकों ने पहले ही दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में लू की चेतावनी दे दी थी लेकिन बीच-बीच में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि राहत जरूर देती रही लेकिन इससे फसलों काे नुक्सान हो चुका है। अब जबकि मंडियों में सरकारी खरीद के लिए गेहूं पहुंच रहा है। ऐसे में अगले कुछ दिनों में बारिश की भविष्यवाणी खुले में पड़ी फसल के लिए नुक्सानदेह ही साबित होगी। भीषण गर्मी पड़ने से गेहूं का दाना सिकुड़ जाता है और बारिश होने से फसल तबाह हो जाती है। मौसम में बदलाव प्रकृति का नियम है लेकिन यह प्रश्न विचारणीय है कि सूर्य के तेवर तो हमेशा से ही ऐसे रहे हैं लेकिन मनुष्य ने जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपने जीवन को सहज बनाने के लिए किया है उसी का खामियाजा आज हमें भुगतना पड़ रहा है। इस साल फरवरी में 122 साल बाद इतनी गर्मी पड़ी है। यह भविष्यवाणी तो काफी पहले से ही कर दी गई थी कि इस बार औसत तापमान से 5 डिग्री ज्यादा तापमान रहने वाला है। मुम्बई में तीन दिन पहले एक कार्यक्रम में इकट्ठे हुए लोगों में से 12 लोगों की मौत भीषण गर्मी के चलते ही हुई है। कुछ लोग अभी भी अस्पताल में हैं। गर्मी के प्रकोप के चलते एकाएक अचानक लोग गिरने लगे हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि लोग इतनी भयंकर गर्मी को झेल पाने में सक्षम नहीं हैं। प्रशांत महासागर में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहा जाता है। इसकी उपस्थिति पर मौसम का मिजाज निर्भर करता है। प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाता है। इस बार ऐसी ही स्थिति के आसार दिख रहे हैं।
अगर इतिहास की बात करें कि किस साल में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ी थी तो इसका स्पष्ट जवाब देना काफी मुश्किल है। वैसे तो हर साल गर्मी के रिकॉर्ड टूटते ही जा रहे हैं। भारत के हिसाब से देखें तो पिछले कुछ सालों में साल 2015 को सबसे गर्म साल माना जाता है। इसके पीछे दावा ये है कि इस साल देश के कई शहरों में तापमान 48 डिग्री तक चला गया था और लू का भारी आक्रमण था। माना जाता है कि दुनिया की सबसे खतरनाक लू में इस वक्त की लू का पांचवां स्थान था। इसके अलावा कई िरपोर्ट में 2010 को सबसे गर्म सालों में से माना जाता है। इसके पीछे दावा ये है कि इस साल करीब 30 दिन दिल्ली में 42 डिग्री पारा रहा था, इसे 1951 के बाद से सबसे गर्म माना जाता है। वहीं 2012 में 30 तक इतना पारा रहा था। इसके अलावा 2019 में 16, 2018 में 19, 2017 में 15, 2014 में 15, 2015 में 18 दिन पारा काफी ज्यादा रहा था। वहीं कुछ रिपोर्ट में 2019 को सबसे गर्म साल माना जाता है। दरअसल इस साल राजस्थान के चुरू जैसे इलाकों में 50 से ज्यादा पारा पहुंच गया था। वहीं राजस्थान के कई शहरों में लम्बे समय तक पारा 45 डिग्री तक रहा था।
एक शोध रिपोर्ट के अनुसार अब यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि 1870 से लेकर आज तक भारतीय समुद्र के औसत तापमान में 1.4 डिग्री की बढ़ौतरी हो चुकी है। समुद्र का तेजी से बढ़ता तापमान और लम्बे समय तक चलने वाली समुद्री लू चलने की वजह से देश के समुद्र तटीय राज्यों में बारिश की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसका सामना कई राज्य कर रहे हैं। सन् 2000 से पहले कोई भी गर्मी की लहर लगभग 50 दिनों के भीतर खत्म हो जाती थी लेकिन अब इसका समय बढ़कर करीब 250 दिन हो चुका है। बीते साल कार्बनडाईआक्साइड उत्सर्जन में दुनिया ने रिकार्ड बनाया है।
मैदानी क्षेत्रों में गर्मी की लहर तब आती है जब तापमान 40 डिग्री पार कर जाता है। पर्वतीय इलाकों में जब तापमान 30 डिग्री हो जाता है, रात का तापमान 40 से अधिक हो और तटीय इलाकों में 37 डिग्री से अधिक होता है तब गर्मी की लहर की स्थिति होती है। वर्तमान में उत्तर भारत में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक है। पहाड़ी राज्यों के निचले इलाकों में अधिकतम तापमान वृद्धि की दर 10 से 11 डिग्री दर्ज की गई है। असलियत यह है कि देश के बहुतेरे हिस्से 100 फीसदी तक बारिश के अभाव में सूखे ही रह गए। करीब आठ राज्य दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में तापमान में तेजी से बढ़ेगा। तापमान में यह बढ़ौतरी अल-नीनो की वापसी का नतीजा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की मानें तो अल-नीनाे के तीन साल तक लगातार सक्रिय रहने के कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तापमान बढ़ौतरी और बारिश के चक्र की पद्धति में असाधारण रूप से बदलाव आया है।
जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। इसका समाधान मनुष्य के हाथ में है। मौसम के मिजाज का असर मानव के व्यवहार पर ही पड़ता है। अगर मनुष्य मौसम के तल्ख तेवरों से बचना चाहता है तो उसे विलासिता की वस्तुएं छोड़ कर कार्बनडाईआक्साइड उत्सर्जन को कम करना होगा। उसे
प्रकृति के करीब जाना होगा और पेड़ों का संरक्षण करना होगा। मनुष्य प्रकृति प्रेमी बने इससे ही जलवायु परिवर्तन का सामना किया जा सकता है। मनुष्य को चाहिए कि वह भारतीय परम्परागत जीवनशैली को अपनाए और प्रकृति के साथ जीवन जीना सीखे। अगर मनुष्य अब भी नहीं सम्भला तो फिर उसे प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना ही पड़ेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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