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कानूनी शिकंजे में ‘हेट स्पीच’

नफरती बयानबाजी या ‘हेट स्पीच’ के खिलाफ पुलिस द्वारा स्वयं संज्ञान लेते हुए मुकदमा कायम करने का पहला मामला प्रकाश में आया है।

नफरती बयानबाजी या ‘हेट स्पीच’ के खिलाफ पुलिस द्वारा स्वयं संज्ञान लेते हुए मुकदमा कायम करने का पहला मामला प्रकाश में आया है। यह मामला गुजरात के ‘ऊना’ कस्बे का है जहां रामनवमी के अवसर पर विगत दिनों एक महिला काजल हिन्दुस्तानी ने एक जनसभा में घृणा मूलक वक्तव्य दिया था जिसके बाद वहां साम्प्रदायिक विद्वेश का माहौल बन गया और बाद में कुछ हिंसक वारदातें भी हुईं। विगत 30 मार्च की इस घटना के बाद काजल हिन्दुस्तानी को गत रविवार को गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद न्यायालय से उसे रिमांड पर भेज दिया गया। लगभग कुछ महीने पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नफरती बयानों के खिलाफ राज्य सरकारों को स्वयं संज्ञान लेकर कार्रवाई करने के निर्देश के बाद यह पहला मौका है जब किसी राज्य की पुलिस ने अपनी तरफ से ‘हेट स्पीच’ के मामले में कानूनी कार्रवाई की है और खतावार के खिलाफ जरूरी दफाओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
काजल हिन्दुस्तानी का असली नाम काजल शिंगला है जो मूल रूप से राजस्थान की रहने वाली है मगर जामनगर (गुजरात) में 20 वर्ष पहले यहां के एक व्यापारी के साथ उसका विवाह होने के बाद उसका उपनाम त्रिवेदी से शिंगला हो गया। ऊना पुलिस के अनुसार 30 मार्च को श्री रामकृष्ण जन्मोत्सव समिति द्वारा आयोजित एक समारोह सभा को काजल द्वारा सम्बोधित करने के बाद इलाके की फिजां में तनाव व्याप्त हो गया जिसे खत्म करने के लिए पुलिस ने अगले दिन 1 अप्रैल को दोनों प्रमुख समुदाय के मौजिज लोगों की एक बैठक भी बुलाई परन्तु यह बैठक पुलिस की मौजदगी में होने के बावजूद दोनों सम्प्रदायों के लोगों के बीच गरमागरम बहस के माहौल में निपट गई। बाद में लगभग दो सौ लोगों की एक भीड़ ने कुछ लोगों के घरों पर पत्थर व कांच की बोतलें फेंकनी शुरू कर दीं जिससे हिंसा का वातावरण बन गया। इस भीड़ ने सड़कों पर आने-जाने वाले वाहनों को भी अपना निशाना बनाया। इस पूरी घटना और वाकये की शिकायत ऊना पुलिस के ही एक सब इंस्पेक्टर आर.आर. गलचर ने दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने अल्पसंख्यक समुदाय के 76 लोगों व 200 के लगभग अन्य लोगों के खिलाफ गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने और तोड़फोड़ करने व बलवा करने आदि के मामले में मुकदमें दर्ज किये।
इसके अगले दिन ऊना पुलिस के ही दूसरे सहायक सब-इंस्पेक्टर कान्ति परमार द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर काजल हिन्दुस्तानी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 195-ए, 153-ए और 505 के तहत मुकदमा दायर किया गया। ये धाराएं किसी भी मजहब के धार्मिक विश्वासों की तौहीन करते हुए भावनाएं भड़काने से लेकर दो सम्प्रदायों के बीच दुश्मनी व रंजिश पैदा करने से सम्बधित होती हैं जो किसी के मजहब या जन्म अथवा स्थान या भाषा को लेकर भी पैदा की जा सकती हैं। साथ ही जनता को गुमराह करने वाली बयानबाजी भी होती है। पुलिस ने इन सब धाराओं काे काजल हिन्दुस्तानी या काजल शिंगला के खिलाफ लगा कर साफ कर दिया है कि नफरती बयान कितने संगीन होते हैं और उनसे समाज व देश का कितना अहित हो सकता है। नफरती बयानबाजी को भारतीय दंड संहिता में जब इतना गंभीर अपराध माना गया है तो सवाल उठना लाजिमी है कि विभिन्न राज्यों की पुलिस किस प्रकार नफरती बोल बोलकर समाज व राष्ट्र का नुक्सान करने वालों से आंखें मूंद सकती है। हमारा संविधान साफ हिदायत देता है कि पुलिस सिर्फ कानून की भाषा ही समझती है क्योंकि कानून का राज स्थापित करने में वह राजनैतिक शासन का प्रमुख अस्त्र होती है। अतः पुलिस के राजनीतिकरण का मुद्दा भारत में समय- समय पर गरमाता रहता है। इसके साथ ही राजनीति पर भी लगाम रखने के लिए भारत में चाक-चौबन्द व्यवस्था चुनाव आयोग के माध्यम से की गई है।
चुनाव आयोग का गठन ही हमारे संविधान निर्माताओं ने देश में संवैधानिक या इसके अनुसार राजनीति चलाने के लिए किया था। भारत में केवल वही राजनैतिक दल चुनाव लड़ सकता है जिसका संविधान में पूरा विश्वास हो और जो जाति या मजहब का उपयोग वोट लेने के लिए नहीं करता है। हालांकि पिछले तीस वर्षों के दौरान भारत खासकर उत्तर भारत की राजनीति में जिस तरह जातिवाद का वर्चस्व स्थापित हुआ है और सार्वजनिक बयानों में भी जिस प्रकार सम्प्रदाय से लेकर जाति सूचक उपमानों व प्रतीकों का इस्तेमाल हुआ है वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के विभिन्न उपबन्धों की अवहेलना करता है परन्तु इसकी जिम्मेदारी मूल रूप से चुनाव आयोग पर ही डाली जा सकती है। मगर वर्तमान सन्दर्भों में जिस प्रकार ‘हेट स्पीच’ के बयान बहादुरों की बाढ़ आयी हुई है और उनके कारनामों से समूचा भारतीय समाज जिस तरह विषैला होता जा रहा है उसी का संज्ञान सर्वोच्च न्यायालय ने लिया था और राज्य सरकारों को दिशा- निर्देश देने के साथ ही पुलिस को भी रास्ता दिखाया था। प्रसन्नता की बात है कि गुजरात पुलिस ने इस तरफ पहल करके अन्य राज्यों की पुलिस के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है लेकिन एक समाज के रूप में आम भारतीय नागरिकों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे नफरती बयान देने वाले हिन्दू व मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदायों के लोगों के नफरत का नशा बांटने के कृत्यों से सावधान रहें।

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