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दरकने लगीं नफरत की दीवारें

परमाणु हथियारों की होड़ के बीच और तनाव से भरी दुनिया में कभी-कभी अच्छी खबरें आती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे भीषण गर्मी में शीतल हवा का झोंका-सा आ गया है।

परमाणु हथियारों की होड़ के बीच और तनाव से भरी दुनिया में कभी-कभी अच्छी खबरें आती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे भीषण गर्मी में शीतल हवा का झोंका-सा आ गया है। कोरियाई प्रायद्वीप के लिए एक और अच्छी खबर है कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया ने कोरियाई युद्ध के दौरान बिछड़े परिवारों को मिलाने की प्रक्रिया फिर से शुरू करने का फैसला किया है। उधर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दिल पिघल गया है। ट्रंप ने अमरीका-सीमा पर प्रवासी परिवारों को अलग करने की कार्रवाई पर रोक लगाने वाले एक शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। अमरीका में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले प्रवासी परिवारों के बच्चों को बाड़े में रखने की तस्वीरें सामने आने के बाद दुनियाभर में ट्रंप के फैसले के प्रति रोष देखने को मिल रहा था। चौतरफा आलोचना और पत्नी के विरोध के चलते ट्रंप को फैसला बदलना पड़ा। यह भी उन प्रवासी परिवारों के लिए सुखद खबर है जिनके बच्चों को अलग कर दिया गया था। अमरीका में आव्रजन की समस्या काफी वर्षों से है। आव्रजन रोधी एजैंडा लागू करने के लिए बच्चों का फायदा उठाना अकथनीय रूप से अमरीका के लिए बेहद अनैतिक था। अच्छा ही हुआ ट्रंप का हृदय परिवर्तन हो गया।

उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह ने भी काफी नरम दिली दिखाते हुए दक्षिण कोरिया की तरफ मैत्री का हाथ बढ़ाया है। दोनों देशों के बीच युद्ध पीडि़त परिवारों के रीयूनियन को लेकर सहमति बनी है। 2015 के बाद इस तरह की यह पहली रीयूनियन है। दोनों देशों के सौ-सौ लोग तीन दिन तक साथ रहेंगे। कितना सुखद होगा बिछुड़े परिवारों के सदस्यों का आपस में मिलना। रीयूनियन की पहली पहल वर्ष 2000 में कोरियन समिट से हुई परन्तु दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने के कारण यह आगे नहीं बढ़ सकी। तब उत्तर कोरिया ने शर्त रखी थी कि वह पारिवारिक मिलन के ​लिए तब तक तैयार नहीं होगा, जब तक कि दक्षिण कोरिया उसके नागरिकों को वापिस नहीं भेजता। दरअसल बड़ी संख्या में उत्तर कोरिया के लोग उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया चले गए थे।

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया की दुश्मनी 70 साल पुरानी है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया दो अलग देश बने। इस विभाजन के बाद दोनों देशों ने अपनी अलग-अलग राहें चुनीं। कोरिया पर 1910 में जापान का शासन रहा जब तक 1945 के दूसरे विश्वयुद्ध में जापानियों ने हथियार नहीं डाल दिए। इसके बाद सोवियत संघ की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्जे में ले लिया और दक्षिण हिस्से को अमरीका ने कब्जा लिया।इसके बाद उत्तरी और दक्षिणी क​ाेरिया में साम्यवाद और लोकतंत्र के बीच संघर्ष शुरू हुआ। दक्षिण कोरिया ने लोकतांत्रिक राह अपनाई जबकि उत्तर कोरिया किम राजवंश के शासन में दुनिया से अलग-थलग पड़ता गया।

दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनीतिक विरोधाभास बना रहा। यह संघर्ष पूंजीवाद बनाम साम्यवाद के रूप में भी दिखा। परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच युद्ध 1950 में शुरू हुआ जो 1953 में जाकर खत्म हुआ। तब अमरीका और 15 अन्य देशों ने दक्षिण कोरिया का साथ दिया था जबकि रूस और चीनी सेनाओं ने उत्तर कोरिया का। दक्षिण कोरिया ने अमरीकी मदद से उद्योग को बढ़ाया और आज की तारीख में वह एक सम्पन्न राष्ट्र है। 1988 में उसने ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी की। दूसरी तरफ उत्तर कोरियाई किम राजवंश के शासन में गरीबी और अकाल का शिकार हो गया ले​िकन विभाजन की दरार खत्म नहीं हुई।

दोनों देशों में टकराव चलता रहा। किम जोंग उन पर परमाणु हथियारों की सनक सवार हुई तो अमरीका से टकराव हुआ। अंततः किम और ट्रंप सिंगापुर में मिले तो पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली। इसी बीच नाटकीय ढंग से किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। किम जोंग ने सालों बाद दक्षिण कोरिया की जमीन पर कदम रखे। उच्च स्तरीय बैठक हुई। दोनों देश बातचीत जारी रखने पर सहमत हुए। सीमाओं पर तनाव कम हुआ। ऐसे लगा जैसे दोनों देशों में नफरत की दीवार दरकने लगी है। किम जोंग ने परमाणु निरस्त्रीकरण का वायदा किया है। उत्तर कोरिया की आर्थिक स्थिति इस समय अच्छी नहीं। बेहतर यही होगा कि किम जोंग दक्षिण कोरिया से नफरत खत्म कर शान्ति और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करें। कोरियाई प्रायद्वीप में शान्ति में ही वैश्विक शान्ति निहित है। जब बर्लिन की दीवार गिर सकती है और जर्मनी एक हो सकता है तो फिर ये दोनों देश क्यों नहीं ?

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