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वो एक रिपोर्टर नहीं एक मसीहा था...

हमारा पंजाब केसरी कार्यालय एक परिवार की तरह काम करता है। हमारे हर कार्यकर्ता की अपनी पहचान अपना स्थान है इसलिए जो कर्मठ अधिकारी या कर्मचारी होते हैं उनको रिटायर भी नहीं किया जाता और कईयों की तो दूसरी, तिसरी पीढ़ी भी काम में है जैसे कि हमारे पॉल्टिकल स्वर्गीय संपादक श्री खन्ना जी का युवा पोता जो पहले जे.आर मीडिया इंस्टीट्यूट में लाला जगत नारायण स्कॉलरशिप पर पढ़ा और अब मैन डेस्क पर काम कर रहा हैं।

बहुत होनहार बच्चा है और आगे चलकर बहुत बड़ा भी बनेगा। कोरोना के कारण बहुत ही कठिनाईयां आ रही है परंतु हमारा अखबार कभी रूका नहीं, यह वफादार कर्मचारियों के वजह से है जो दिन-रात नहीं देखते। इसलिए हमारा कोई भी कर्मचारी जाता है इस संसार से विदाई लेता है तो हमें वैसे ही दुख होता है जैसे हमारे परिवार का सदस्य जाने पर दु:ख होता है।

दो दिन पहले हमारे कर्मठ पत्रकार क्राइम रिपोर्टर के.के शर्मा का बीमारी की वजह से निधन हो गया। अभी रिपोर्ट आनी बाकी है कि उनका लिवर डेमेज, होने से या दमा या किसी और कारण से क्योंकि आजकल जो भी जाता है उसके सारे टेस्ट होते हैं।

परंतु उनका जाना हमारे लिए बहुत बड़ा आघात है, वो महज एक क्राइम रिपोर्टर नहीं थे वह हमारे बुजुर्गों के लिए मसीहा थे। उनकी समस्याएं सुनना उन्हें सुलझाना और जो बुजुर्गों के पुलिस केस होते हैं, उन्हें दिल्ली पुलिस से मिलकर सोल्व भी करते थे।

मेरे काम में मुझे बहुत सहायता करते थे, सुबह-शाम मेरे पांवों को हाथ लगाते और आशीर्वाद मांगते थे और मैं उन्हें हमेशा कहती थी कि मेरा आशीर्वाद मेरे हर एम्पलॉयी के साथ है, चाहे वे 22, 23 साल का हो या 50,60 साल का हो मेरे लिए सारे बच्चे हैं और मैंने हमेशा उन सबको एक मां की तरह देखा है और हमेशा हंस के जवाब देते थे मैडम जी आप सबके लिए मां तो हो ही पर मेरे लिए मेरी ब्राह्मण बहन भी हो क्योंकि आप भी शर्मा परिवार से हो।

मुझे आज भी याद है लगभग 1 साल पहले वो लिवर की बिमारी से बहुत सख्त बीमारी हो गए डॉक्टर ने जवाब दे दिया तो सारे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के सदस्यों ने उनके लिए पूजा-पाठ किया और जब वह स्वस्थ होकर ऑफिस आए तो उनके मन में बुजुर्गों के प्रति और भी श्रद्धा और कर्तव्य का एहसास था वो खुद बुजुर्गों के घर जाकर उनकी सेवा करते और जब मुझे मालूम पड़ा कि उसे लिवर की प्रॉब्लम किस कारण हुई तो मैंने उसके डांट लगाई तो उसने कान पकड़ कर माफी मांगी और फिर उसने उस चीज का परहेज किया था कभी नहीं छुआ मुझे उस पर बहुत गर्व था।

कोई भी काम कहती तो कभी उनके मुंह से न नहीं सुनी और हर काम को करके आते थे। हर बुजुर्ग की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते थे। यही नहीं जे.आर के स्टूडेंट्स जो ट्रेनिंग करते थे। उनकी सहायता करना। स्टोरी कैसे लिखते है, न्यूज कैसे लिखते हैं। इस तरह से वह जे.आर के स्टूडेंटस के साथ भी जुड़े रहे।

उनसे किसी को कोई शिकायत नहीं होती थी, मुझे अक्सर यही मालूम पड़ता था वह अपने से छोटों को प्यार और अपने सिनियर को बड़ी रिस्पेक्ट देते थे। पिछले दिनों कई कर्मचारियों को कोई रैड जोन में थे, बड़ी उम्र के थे या कोई बिमारी थी तो उन्हें घर बैठने के लिए कहा गया तो उन्हें भी कहा गया कि तुम बिमार रह चुके हो। इस समय हमने कर्मचारियों को राशन भी बांटा तो जब मैं बांट रही थी तो मैंने उन्हें देखा तो कहा के.के तुम्हें नहीं आना चाहिए।

तुम लिवर से पिछले साल बिमार रह चुके हो तो झट से कहा- मैडम जी खाली रहकर तो मैं वैसे ही बिमार पड़ जाऊंगा। काम करने से कुछ नहीं होता। ऐसे थे के.के उन्हें काम करने का जुनून था। इतने सालों से वे बुजुर्गों की सेवा कर रहे थे। वाक्य वो मेरे पंजाब केसरी परिवार तथा सारे कर्मचारियों के नजर में मसीहा थे। सभी रिपोर्टर तथा भावी रिपोर्टरों के लिए एक इंस्पीरेशन रहे। यह मेरा संदेश है, श्रद्घांजलि है एक सच्चे सिपाही,  कर्मचारी, एक बेटे एक भाई को। जहां भी रहो सलामत रहो मेरे भाई।