भारतीय जेलों में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और उनकी जरूरतें पूरी करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं की रिपोर्ट में कहा गया है कि जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या दुनियाभर के अन्य लोकतांत्रिक देशों में काफी ज्यादा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जेलों में बंद हर चार में से तीन कैदी ऐसे हैं जिन्हें विचाराधीन कैदी के तौर पर जाना जाता है। इन कैदियों पर जो आरोप लगे हैं उनकी सुनवाई अदालत में चल रही है लेकिन उन पर आरोप साबित नहीं हुए हैं। देश की जिला जेलों में जहां 100 कैदियों को रखने की जगह है वहां 136-150 कैदी रह रहे हैं। मानवाधिकार संगठन न्यायिक प्रक्रिया में सुधारों की मांग करते आ रहे हैं ताकि मुकदमों को निपटाने में लगने वाले समय को कम किया जा सके। साथ ही जेल में रह रहे कैदियों की संख्या घटे। विचाराधीन कैदियों में अधिकांश लोग गरीब होते हैं जो जुर्माना या जमानत राशि वहन करने में असमर्थ होते हैं। उन्हें गरीबी के कारण वर्षों तक जेल में बंद रहना पड़ता है। कानूनी प्रक्रियाओं का महंगा होना निर्धन वर्ग के साथ अन्याय ही है।
जेल के भीतर ऐसे कैदियों की दर्द भरी कहानियां आप को मिल जाएंगी जो अपने लिए जमानत राशि का प्रबंध न करने के चलते जेलों में सड़ रहे हैं। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगने के बाद सुप्रीम काेर्ट ने जेलों में भीड़ कम करने के लिए हर राज्य में समितियों का गठन करने का निर्देश दिया था। हालांकि उस समय अस्थायी रूप से कई कैदियों को रिहा भी किया गया लेकिन अब उन्हें फिर से जेलों में बंद किया जा रहा है। न्यायपालिका से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि अदालतों को जमानत की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए नए मानदंड निर्धारित करने के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए। खासकर उन मामलों में जहां मुकदमें लम्बे समय तक चलते हैं और आरोपी वर्षों से जेल में हैं।
हमारे पास कोई ऐसा तंत्र या संस्था नहीं है जिसके जरिये कैदियों की बात सुनी जाए। तकनीकी तौर पर जेल में बंद कैदी इस बात के हकदार हैं कि उन्हें कानूनों के मुताबिक सम्मान और अधिकार मिले लेकिन भारतीय संविधान के तहत मिले अधिकार जेलों के दरवाजों तक ही सीमित रह जाते हैं। भारतीय जेलों की हालत अब किसी से छिपी नहीं है। नामी-गिरामी गैंगस्टरों को जेल में हर सुख-सुविधा मिल जाती है। उन्हें मोबाइल फोन, ड्रग्स और अन्य जरूरत की वस्तुएं सहज उपलब्ध हो जाती हैं। जेलें नामवर अपराधियों के लिए सुरक्षित आरामगाह बन चुकी हैं और वे जेल के भीतर रह कर भी बाहर की दुनिया में आपराधिक वारदातें कर रहे हैं। जेलों में बंद गैंगस्टर मीडिया चैनलों को न केवल इंटरव्यू देते हैं बल्कि अपनी बनाई गई हिट लिस्ट में शामिल लोगों को खुलेआम धमकियां भी देते हैं। ड्रग्स की दुनिया के बादशाहों की जेल के भीतर और बाहर बादशाहत आज भी कायम है।
अब सवाल यह है कि जेलों में सुधार कैसे किया जाए? केन्द्र सरकार ने जेलों में भीड़ कम करने के उद्देश्य से गरीब कैदियों की मदद करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। इस योजना के तहत केन्द्र सरकार उन कैदियों की आर्थिक मदद करेगी जिनके पास जुर्माना या जमानत राशि चुकाने के लिए पैसा नहीं है। जबकि उनकी कैद की अवधि पूरी हो चुकी है या फिर वे विचाराधीन हैं। यह योजना गरीब कैदियों के लिए जेल से बाहर आने में फायदेमंद होगी जिनमें से अधिकांश सामाजिक रूप से वंचित या कम शिक्षित और निम्न आय वर्ग से हैं। पिछले वर्ष दिसम्बर माह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जमानत मिलने के बावजूद छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेलों में बंद गरीब और आदिवासी विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा और दयनीय स्थिति का मुद्दा उठाया था। देश की शीर्ष अदालत ने ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार करने के लिए उनका विवरण मांगा था।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुल कैदियों का 76 प्रतिशत विचाराधीन हैं। इनमें से आधे से अधिक गरीब दलित या आदिवासी हैं। गरीब कैदियों काे वित्तीय सहायता मुहैया कराने संबंधी योजना की घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल के बजट में भी की थी। देश में जेलों की स्थितियों को देखते हुए योजना का लाभ गरीब कैदियों तक पहुंचे यह सुनिश्चित करना बड़ी चुनौती है। इसके लिए इस प्रक्रिया से जुड़े हर विभाग और हर व्यक्ति को कैदियों के प्रति संवेदनशील बनना होगा। यह देखना कितना दर्दनाक है कि गरीब आदमी जेल में सड़ रहा है जबकि प्रभावशाली व्यक्ति अपने लिए कई मार्ग तलाश कर लेता है। अभी भी जेलोें में अंग्रेजों के जमाने के कई नियम चल रहे हैं। जेल सुधारों की प्रक्रिया लगातार चलनी चाहिए। गरीब कैदियों की मदद करना मानवीय दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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