रमजान के महीने में दुनियाभर के सबसे दुर्दान्त माने गए आतंकवादी संगठन आईएस ने इराक के मोसुल में ऐतिहासिक अल-नूरी मस्जिद को उड़ा दिया। यह वही मस्जिद है जहां से आईएस के नेता अबू बकर अल बगदादी ने 2014 में ‘खिलाफत’ की घोषणा की थी। प्रतीकात्मक रूप से इस मस्जिद का महत्व आईएस और उसके खिलाफ लड़ रहे दोनों पक्षों के लिए है। इस मस्जिद का निर्माण 1172 में मोसुल और अलेप्पो के तुर्क शासक नूर अल-दीन महमूद जांगी ने शुरू कराया था। इसलिए मस्जिद का नाम इस तुर्क शासक के नाम पर रखा गया था। आईएस ने इससे पहले भी इराक और सीरिया के कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण स्थानों को नष्ट किया था। तालिबान ने भी अफगानिस्तान के अभियान में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं को ध्वस्त कर दिया था। अल-नूरी मस्जिद को विस्फोटों से उड़ाना वहां के और सारे इराक के लोगों के खिलाफ अपराध है। यह एक और उदाहरण है कि क्यों इस असभ्य संगठन को खत्म करना जरूरी है।
दूसरी तरफ मस्जिद को उड़ाना इस बात को दर्शाता है कि आईएस अपनी हार से किस कदर बौखलाया हुआ है। इस्लाम में जीवन में अच्छे काम करने का संदेश दिया गया है लेकिन यह कैसी विचारधारा है जिसमें जो ज्यादा कहर ढहाता है वही नामवर हो जाता है। इन्हीं नामवरों में इस समय कुख्यात अबू बकर अल बगदादी है जिसके मरने की 8 बार खबरें आ चुकी हैं और हर बार खबर गलत साबित होती है। आतंकी हिंसा में जिस गहराई से वह लिप्त हो चुका है उसमें जिन्दगी और मौत के बारे में तय कुछ भी कहा नहीं जा सकता परन्तु फर्क इस ढंग से पड़ता है कि अगर वह मारा गया है तो समझो एक बुराई का अंत हो चुका है। अगर वह जीवित है तो समझो कि लोगों को अभी एक और बुराई से जूझना पड़ेगा। बुराइयों या राक्षसी प्रवृत्तियों के प्रतीक लोगों के साथ ऐसा अक्सर होता आया है। आईएस से पहले दुनिया में दहशत फैलाने वाले अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के साथ भी ऐसा ही था जिसकी मौत के बारे में अक्सर खबरें आतीं और उन्हीं के ठीक बाद किसी ताजा वीडियो में वह अपने गुर्गों के साथ बातें करता नजर आता था। यही कारण था कि लादेन की मौत की खबर को लोगों ने सच नहीं माना था। दानव हमेशा रहस्यात्मकता से युक्त होते हैं। अगर उनकी असलियत सबको पता चल जाए तो फिर भला वह उत्सुकता का केन्द्र कैसे बने रह सकते हैं।
इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जारी अभियान में हजारों इराकी सुरक्षाकर्मी, कुर्द लड़ाके, सुन्नी अरब कबायली और शिया मिलिशिया लड़ रहे हैं जिन्हें अमेरिका की अगुवाई वाला सैन्य गठबंधन हवाई सहयोग और सैन्य परामर्श दे रहा है। आईएस ने मोसुल में एक लाख लोगों को रोका हुआ है जिन्हें वह मानव ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान का महीना सबसे मुबारक और आध्यात्मिक माना जाता है। 30 दिन के लिए मुस्लिम दिन के वक्त खाना नहीं खाते, पानी नहीं पीते। उनका मानना है कि इस दौरान अल्लाह उन्हें हर भूल के लिए क्षमा कर देता है। इसके उलट कट्टरपंथी आईएस के लड़ाके मानते हैं कि इस महीने जीत दर्ज करनी चाहिए और लूट मचानी चाहिए। रमजान शुरू होने से पहले आईएस ने दुनियाभर के अपने समर्थकों से कहा था ”तैयार हो जाओ, काफिरों के लिए इसे आपदा का महीना बनाने के लिए तैयार हो जाओ।” आईएस जिस कट्टरवादी इस्लाम में यकीन करता है, उसमें उन्हें लगता है कि दरगाहें होने से लोगों का ध्यान अल्लाह से परे हट जाता ह इसलिए इन्हें ढहा देना चाहिए। जिहाद इबादत करने का सबसे बेहतरीन तरीका है, इस रास्ते से मुसलमान को जन्नत हासिल हो सकती है।
जिहाद और रमजान से उसके सम्बन्ध में इन व्याख्याओं को लेकर आम मुसलमान बेहद निराश है। कट्टïरपंथी तो यह भी मानते हैं कि रमजान के महीने में अगर ज्यादा नमाज पढऩे और दान देने को प्रोत्साहन दिया जाता है तो ज्यादा खूनखराबा क्यों नहीं? यह कैसी विचारधारा है जो खिलाफत की घोषणा करती है। यानी एक ऐसा राज्य जो इस्लामिक शरिया कानून से चलता है और खलीफा चलाता है। आईएस यानी दाइश दुनिया को दहलाने निकला हुआ है। सवाल यह भी है कि आखिर उसे इतनी ऊर्जा कहां से मिल रही है, जो चारों तरफ खून की नदियां बहाने पर आमादा है। ऐसी ताकतों का अन्त होना ही चाहिए। लादेन हो या अल जवाहिरी या फिर बगदादी, अन्त तो सभी का निश्चित है लेकिन सवाल उस विचारधारा का है जिसे खत्म करना आसान नहीं। इबादत की दरगाह को उड़ाना पाप है। यह इन्सान की इन्सान से लड़ाई है, फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें से एक ने बुराई का दामन थाम रखा है परन्तु बुराई का अन्त भी लिखा हुआ ही होता है। इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा।