यह सच है कि आतंकवाद हो या नक्सलवाद, इनका चेहरा तो खूनी और बर्बर ही है। भारत के कितने भी हिस्से जो आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र से जुड़े हों, वहां आज भी नक्सलवादी जब चाहें, जहां चाहें खूनी खेल खेलते रहते हैं। अभी पिछले हफ्ते ही नक्सलवादियों ने महाराष्ट्र के चिरपरिचित गढ़चिरौली में कमांडो सैनिकों पर धावा बोल दिया और हमारे 15 जवान शहीद हो गए। यह चिन्ता राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी करनी चाहिए कि तमाम उपाय और दावों के बावजूद नक्सलवादी हमारे यहां उस वक्त खूनी खेल खेल रहे हैं जब चुनाव चल रहे हैं। अहम बात यह है कि आतंकवाद को लेकर भारत ने जैश-ए- मोहम्मद के सरगना और पुलवामा हमले के मास्टरमाईंड मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र परिषद से ग्लोबल टैरिरिस्ट घोषित करवाकर एक बड़ी कूटनीतिक जंग जीत ली और इस तरह चीन को करारा जवाब दिया गया।
हमारी चिन्ता इस बात की है कि गढ़चिरौली में पहले भी दर्जनों कांड हो चुके हैं जब जवानों को निशाने पर लिया गया है। बावजूद इसके कि सरकार के तमाम महकमे पूरी कोशिशें कर नक्सलवादियों पर काबू करने के लिए लगे हुए हैं लेकिन यह भी अफसोसजनक है कि नक्लवादी कांड तो कर ही जाते हैं। ऐसे में जब सरकार की ओर से यह दावा किया जाए कि सुरक्षाबलों के सब काम सही जा रहे हैं और नक्सली सरेंडर कर रहे हैं या मारे जा रहे हैं तो फिर हमारा सवाल यह है कि नक्सलवादी खूनी खेल कैसे खेल रहे हैं? क्या आंतरिक सुरक्षा खतरे में है? अगर देश में पुलवामा कांड होता है आैर पूरा देश चिन्तित हो उठता है तो सरकार भी इसे गम्भीरतापूर्वक लेते हुए सर्जिकल स्ट्राइक करके इस कांड को अन्जाम देने वाले आतंकवादियों को नेस्तनाबूद कर डालती है तो फिर गढ़चिरौली के 15 जवानों की हत्याओं का बदला कब लिया जाएगा?
फौरी तौर पर एक इनामी नक्सलवादी के मारे जाने की खबर आती है लेकिन हमारा मानना है कि नक्सलवादियों के फन पर प्रहार करना होगा और इसकी जड़ खत्म करनी होगी। सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से अपनी भावनाएं शेयर कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि जब से मैंने चार्ज सम्भाला है, आतंकवादी डरने लगे हैं और अगले ही दिन गढ़चिरौली में 15 जवानों को शहीद कर दिया जाता है तो इस शहादत का बदला इन नक्सलवादियों से कब लिया जाएगा जबकि यह देश में ही मौजूद हैं।
सोशल मीडिया पर लोग साफ कह रहे हैं कि जब सरकार की आेर से पिछले दिनों बराबर यह प्रचार किया जाता रहा कि नक्सलवादियों पर नकेल कसी जा रही है और ऐसे में गढ़चिरौली में इतना बड़ा हमला हो जाता है तो प्रधानमंत्री को अब पहल करके जवाब भी दे देना चाहिए लेकिन चुनाव जरूरी है, यह राजनीति की मजबूरी है। सोशल मीडिया पर ऐसी भावनाओं की अभिव्यक्ति सचमुच चिन्ताजनक है लेकिन सरकार को इसका गम्भीर संज्ञान तो लेना ही चाहिए। जब यह नक्सलवादी जो आतंकवादियों जैसा ही खेल खेल रहे हैं और हर बार सड़कों पर बारूदी सुरंगें बिछा रहे हैं और फिर भी बच निकलें तो बताओ इसे क्या कहेंगे। इस घटना से कुछ दिन पहले ही भाजपा के एक विधायक को नक्सलवादियों ने बारूदी सुरंग का निशाना बनाकर उनकी जान ले ली थी जिसमें बीएसएफ के चार जवान शहीद हो गए थे।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले साढ़े चार वर्षों में अब तक 310 जवान नक्सलियों की हिंसा का शिकार बन चुके हैं। जब यह पता है कि यह नक्सली हत्यारे और निर्मम लुटेरे और छत्तीसगढ़ आैर गढ़चिरौली के दुर्गम क्षेत्रों में छिपे हैं तो आधी रात को कोई ऑपरेशन चलवाकर क्या इनसे निपटा नहीं जा सकता? आधी रात को सर्जिकल स्ट्राइक की जा सकती है तो यहां सेना की मदद क्यों नहीं ली जा रही और क्यों देश में ही छिपे इन नक्सलवादियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? सोशल मीडिया पर यह सवाल जायज हैं।
एक बात पक्की है कि जब सरकार के पास सारे साधन उपलब्ध हैं तो फिर क्या इन नक्सलवादियों के खिलाफ ठोस एक्शन क्यों असम्भव है, यह सवाल समझ से बाहर है। आज भी नक्सलवादी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड में सड़क निर्माण के काम में लगी कंपनियों को सरेआम पोस्टर लगवाकर हड़काते हैं कि यहां से काम छोड़कर चले जाओ वरना जान ले ली जाएगी। सच में ऐसा हो भी रहा है। गढ़चिरौली में ही इस वारदात के बाद नक्सलवादियों ने कई निर्माण कंपनियों को इलाका छोड़ देने की चेतावनी दी है।
कहने को तो कह दिया जाता है कि यह नक्सलवादी भटके हुए लोग हैं लेकिन ये लोग सरेआम बड़ी-बड़ी कंपनियों से रुपया वसूल रहे हैं, लोगों का खून बहा रहे हैं तो बताइये इन नक्सलियों के खिलाफ सेना का प्रयोग क्यों नहीं किया जा सकता?
जब आप आतंकवादियों पर प्रहार करके पूरे देश में चुनावों के दौरान यह प्रचार कर सकते हैं कि हमने आतंकवादियों को सबक सिखाया है और उनसे बदला लिया है तो बताइये नक्सलवादियों के खिलाफ जबर्दस्त प्रहार कब किया जाएगा, पूरे देश में सोशल मीडिया पर उठ रहे लोगों के सवालों और देशवासियों की मांग का जवाब भी तो सरकार को देना ही होगा। अगर आतंकवाद का फन कुचला जा सकता है तो नक्सलवाद का क्यों नहीं? देर-सबेर इस नक्सली बर्बरता का मुंहतोड़ जवाब तो देना ही होगा।