श्रीलंका सरकार ने रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर हम्बन टोटा में हवाई अड्डे का परिचालन भारत के हवाले कर दिया है। घाटे में चल रहे मत्राला राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को भारत दोनों देशों के बीच एक संयुक्त उपक्रम के रूप में चलाएगा। सांझा उपक्रम में भारत बड़ा भागीदार होगा। यह हवाई अड्डा राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे के कार्यकाल के दौरान चीन के भारी भरकम ब्याज वाले कर्ज से बनाया गया था। इस हवाई अड्डे का पट्टा चीन के पास है। उड़ानों की कमी की वजह से 21 करोड़ डालर की लागत से तैयार यह एयरपोर्ट सबसे खाली एयरपोर्ट बन गया। यहां से उड़ने वाली एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय उड़ान को भी घाटे और उड़ान सुरक्षा मुद्दों के चलते मई में स्थगित कर दिया गया था। एयरपोर्ट का कर्ज उतारने के लिए श्रीलंका ने हम्बन टोटा बंदरगाह को चीन के हवाले कर दिया था। पिछले 12 वर्षों में चीन ने श्रीलंका की परियोजनाओं में 15 अरब डालर का निवेश किया है। श्रीलंका में चीन की उपस्थिति को भारत अपने प्रभाव क्षेत्र में घुसपैठ के रूप में देखता है।
धीरे-धीरे श्रीलंका चीन के कर्ज के जाल में ऐसा फंसा कि उसे हवाई अड्डे के परिचालन के लिए टैंडर आमंत्रित करने पड़े लेकिन किसी ने टैंडर नहीं भरा। भारत ने मदद की पेशकश की तो श्रीलंका ने उसे स्वीकार कर लिया। ड्रैगन की विस्तारवादी नीतियों से श्रीलंका भी चिन्तित है, उसे डर है कि चीन कहीं बंदरगाह का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए न करने लगे लेकिन चीन के इस आश्वासन पर कि वह बंदरगाह का इस्तेमाल केवल व्यावसायिक तौर पर करेगा तब यह बंदरगाह उसे पट्टे पर िदया गया। बंदरगाह पर एक योजना को लेकर श्रीलंका द्वारा आपत्ति जताने पर चीन ने हम्बन टोटा बंदरगाह सौदे के तहत दी जाने वाली 58.5 करोड़ डालर की अंतिम किश्त रोक दी है। चीन इस बंदरगाह का इस्तेमाल मनोरंजन प्रयोजनों के िलए करना चाहता था, जिसका श्रीलंका ने विरोध किया था। दुनिया के कई विश्लेषक चीन की आेर से कई देशों में निवेश किए जाने को लेकर आशंका जताते हैं कि निवेश के पीछे चीन का उद्देश्य अपनी सामरिक पहुंच बढ़ाना और दूसरे देशों पर दबाव बनाकर उन पर नियंत्रण करना है।
चीन द्वारा भारी मात्रा में कर्ज देने के बावजूद नेपाल, म्यांमार आैर पाकिस्तान के साथ चीन का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है। चीन ने पाक में आर्थिक गलियारे के लिए 18.5 अरब डालर निवेश किए हैं। पाकिस्तान को सालाना 7 फीसदी की दर से ब्याज चुकाना है। उसे 2024 तक चीन को सौ अरब डालर लौटाने हैं। पाकिस्तान कंगाल हो चुका है और चीन उस पर दबाव डालकर कुछ न कुछ और हासिल करेगा। म्यांमार में चीन के कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजैक्ट चल रहे हैं। म्यांमार के सामने भी कर्ज में डूबने का संकट है। चीन अब म्यांमार में बन रहे प्यू बंदरगाह की ज्यादा हिस्सेदारी मांग रहा है। चीन नेपाल, लाओस, जिबुती, मालदीव, मंगोलिया, मोन्टनेग्रो, तजाकिस्तान आैर किर्गिस्तान आदि देशों को कर्ज के जाल में फंसा चुका है। इनमें से कुछ देश तो ऐसे हैं कि कर्ज से उनकी प्रगति इस हद तक प्रभावित होगी कि कर्ज न चुकाने की स्थिति में कर्ज लेने वाले देशों को पूरा प्रोजैक्ट ही चीन के हवाले न करना पड़े। जैसा श्रीलंका और पाकिस्तान में हुआ है। चीन ने दक्षिण एशियाई देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसा लिया है।
अब ये देश किसी न किसी तरह चीन से मुक्ति चाहते हैं। यही कारण है कि मलेशिया ने चीन को एक बड़ा झटका दिया है। उसने चीन की तीन बड़ी परियोजनाओं को रद्द कर दिया है जिसमें ईस्ट कोस्ट रेल लिंक परियोजना भी शामिल है। अरबों डालर की रेलवे लाइन से मलेिशया के पूर्वी तट को राजधानी कुआलालम्पुर आैर थाईलैंड से जोड़ना है। यह रेलवे लिंक चीन के लिए एशिया के बाहर के बाजारों में पहुंच के लिए व्यापारिक मार्ग होगा। कहा तो यह गया कि इस परियोजना की लागत अनुमानित लागत से कहीं ज्यादा है लेकिन असल बात तो यह है कि मलेशिया के फिर से प्रधानमंत्री बने महाजिर मोहम्मद चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के अपने वादे को पूरा करने की तरफ बढ़ रहे हैं। महाजिर अब बीजिंग के साथ हुए समझौते पर फिर से मोल-तोल करना चाहते हैं। मलेशिया ने चीन की परियोजनाएं रद्द कर खुद को कर्ज में डूबने से बचा लिया है। मलेशिया की अधिकांश जनता चीनी निवेश को पसंद नहीं करती। महाजिर भी मलेशियाई लोगों के हितों की रक्षा करना चाहते हैं। वह अपने देश के हिस्सों को शहरों का विकास करने वाली विदेशी कंपनियों को बेचने के इच्छुक नहीं हैं। अब कर्ज में डूबे देशों में राजनीतिक तनाव पैदा हो चुका है। उन्हें चीन पर पूरी तरह निर्भर हो जाने का डर सता रहा है।
हम्बन टोटा एयरपोर्ट का संचालन भारत को मिलना भारत की कूटनीतिक जीत है। इसकी दूरी चीन द्वारा विकसित हम्बन टोटा बंदरगाह से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है और रणनीतिक तौर पर भारत के लिए अहम है। सेशेल्स के एजम्पशन आइलैंड पर नौसैनिक अड्डा बनाने को लेकर भारत और सेशेल्स के बीच बनी सहमति भी काफी अहम है। सेशेल्स की झिझक को समझना मुश्किल नहीं, चीन इसकी बड़ी वजह है। हिन्द महासागर में चीन के दखल के बाद क्षेत्र की राजनीतिक आैर सामरिक तस्वीर बदल गई है। अगर भारत वहां नौसैनिक अड्डा बनाता है तो चीन को करारा जवाब मिलेगा। चीन ने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में अपना सैन्य अड्डा बना लिया है। भारत को अपनी नेबरहुड पालिसी को नई धार देनी ही होगी। हमें उन्हें समझाना होगा कि चीन की तुलना में भारत के साथ रिश्तों को मजबूती देना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद है।