प्राइवेट बिल्डर कम्पनियों ने फ्लैट खरीददारों को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। क्रिकेटरों से लेकर नामी-गिरामी फिल्मी सितारे इन कम्पनियों के ब्रैंड एम्बैसडर बन गए थे लेकिन बिल्डर कम्पनियों का गुब्बारा ऐसे फटा कि लाखों फ्लैट खरीददारों का अपने घर का सपना पूरा नहीं हुआ और पैसे भी डूब गए। लाखों लोगों ने अपने जीवनभर की कमाई फ्लैट खरीदने के लिए दे दी। किसी ने आंशिक धन जमा कराया है और किसी ने पूरी की पूरी राशि चुका दी है। खरीददार सुप्रीम कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं और बिल्डर कम्पनियों के निदेशक जेल की हवा खा रहे हैं या जमानत पर बाहर आकर बच निकलने के रास्ते तलाश कर रहे हैं।
देश के कोर सैक्टर इस समय आर्थिक मंदी का शिकार हैं। आटोमोबाइल सैक्टर के बाद जिसकी चर्चा सर्वाधिक है, वह है रियल एस्टेट सैक्टर। आखिर रियल एस्टेट सैक्टर के अर्श से फर्श पर आने की कहानी में काफी नाटकीय मोड़ हैं। इस समय देशभर में 1600 आवासीय परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार सरकार से कहा कि फ्लैट खरीददारों की समस्या के समाधान के लिए कोई प्रस्ताव तैयार करे। शीर्ष अदालत की सख्ती के चलते कुछ हलचल जरूर दिखाई देती है लेकिन फ्लैट खरीददार अभी भी अपने जूते घिसा रहे हैं। अनेक कम्पनियां दिवाला प्रक्रिया में उलझी हुई हैं।
जब रिएल एस्टेट सैक्टर बुलंदी पर था तो प्रोपर्टी के दाम बढ़ रहे थे। तब प्लाट दिखाना, किसानों को जमीन बेचने के लिए राजी करना, उनसे एग्रीमेंट करना और इसके बदले में तय कमीशन पाना शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ा रोजगार बन गया था। जिसका धंधा जम गया तो उसने बड़ी परियोजनाओं में हाथ डाला। लोग जानते हैं कि बड़ी परियोजनाओं में नेताओं और नौकरशाहों की हिस्सेदारी होती है। आंकड़े बताते हैं कि देश में रिएल एस्टेट का कारोबार अरबों-खरबों रुपए का है। यह सैक्टर लोगों को रोजगार देने वाला है लेकिन अब चारों ओर सन्नाटा है। अब दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी परियोजना क्षेत्र में प्रोजैक्ट ठप्प पड़े हैं। लाखों फ्लैट बने हुए हैं लेकिन खरीददार नहीं है। बिल्डर कम्पनियों के आफिस बंद पड़े हैं।
1991 में जब देश में उदारीकरण की नीतियों को लागू किया गया तो उसके बाद से अर्थव्यवस्था में भी उदारपन आया। दिल्ली एनसीआर, मुम्बई, बेंगलुरु, हैदराबाद और बड़े शहरों में आवासीय प्रोजैक्ट शुरू हो गए। यहीं से बिल्डर माफिया, राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों की सांठगांठ की कहानी शुरू हुई। पहले इस सैक्टर को हद से ज्यादा छूट दी गई। नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ाई गईं लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद इतनी ज्यादा सख्ती की गई कि सैक्टर दम तोड़ने लगा। नेताओं और नौकरशाहों ने बड़े प्रोजैक्टों में अपना कालाधन लगाया।
इस गठजोड़ ने रियल एस्टेट के सैक्टर को ऐसा बना डाला कि मिलजुल कर सब कुछ करो और करोड़ों से अरबों बनाओ। लैंड यूज बदलने का खेल देशभर में खेला गया। बैंकों और एनबीएफसीजी ने बिल्डरों को खुलकर लोन बांटे। कई सालों से मुनाफा कमा रहे बिल्डरों ने ज्यादा मुनाफे के चक्कर में एक प्रोजैक्ट के लिए खरीददारों से जुटाया गया पैसा एक साथ कई परियोजनाओं में लगा दिया। प्रोजैक्टों में देरी होने लगी। फ्लैटों की कीमतें बढ़ती गईं। रियल एस्टेट सैक्टर को सबसे बड़ा झटका नोटबंदी से लगा। कालेधन का प्रवाह जो लगातार इस सैक्टर में बना हुआ था, ठप्प हो गया। फ्लैट मिलता न देख खरीददार समूह बनाकर अदालतों में चले गए।
निर्माण कार्य ठप्प हो गए, मजदूरों का रोजगार छिन गया। कम्पनियां डिफाल्टर होती गईं। बिल्डर कम्पनियों की साख धूल में मिल गई और नए खरीददारों ने दूरी बना ली। पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक के घोटाले की वजह भी रिएल एस्टेट कम्पनी ही बनी और उत्तर प्रदेश के पीएफ घोटाले की वजह भी हाउसिंग कम्पनी ही रही। रियल्टी सैक्टर की समस्या नकदी की है। अब केन्द्र सरकार ने अधूरे पड़े प्रोजैक्टाें को पूरा करने के लिए 25 हजार करोड़ का पैकेज देने का ऐलान कर दिया है ताकि फ्लैट खरीददारों को राहत मिल सके।
अधूरी पड़ी परियोजनाओं का निर्माण कार्य शुरू होगा तो सीमेंट, लोहा, इस्पात उद्योग की मांग बढ़ेगी और लोगों को रोजगार मिलेगा। सरकार किसी बिल्डर को कोई धन नहीं देगी बल्कि इसके लिए अलग खाता होगा। जहां भी सार्वजनिक धन का निवेश किया जाएगा, उस पर सतत् निगरानी की जरूरत होगी। यदि सब कुछ सही ढंग से और सही दिशा में होगा तो फ्लैट खरीददारों का अपने घर का सपना पूरा होगा और रियल्टी एस्टेट सैक्टर में सुधार आ सकता है। यदि यह सैक्टर खराब हालात से बाहर निकल आएगा तो फिर अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी।