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घर की लड़ाईः पाकिस्तान खुश!

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स्वतन्त्र भारत के चुनावी इतिहास में राजनीतिक अवसरवादिता का इससे गिरा हुआ कोई दूसरा स्तर नहीं हो सकता कि देश के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री समेत पूर्व उपराष्ट्रपति और पूर्व थल सेनाध्यक्ष व पूर्व विदेश मन्त्री के एक राज्य गुजरात के चुनावों को प्रभावित करने की पाकिस्तानी सांठगांठ में शामिल होने की हिमाकत की जाये। भारतीय सेना का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है कि जिस बैठक में उसके पूर्व सिपहसालार जनरल दीपक कपूर मौजूद हों वहां पाकिस्तान जैसा अधमरा देश अपनी गोटी बिछाने की कोशिशें गुजरात चुनावों को लेकर करने की जुर्रत तक करे। जिस बैठक में दस साल तक प्रधान्मन्त्री रहे डा. मनमोहन सिंह उपस्थित हों वहां भारत के अन्दरूनी मामलों में पाकिस्तान का कोई भी राजनयिक दखलन्दाजी तक करने की सोच सके? जिस मजलिस में दस साल तक उपराष्ट्रपति के औहदे को मयार बख्शने वाले हामिद अंसारी जलवा अफरोज हों वहां कोई पाकिस्तानी हिन्दोस्तान की जम्हूरी रवायतों से छेड़छाड़ करने की हिम्मत दिखा सके? जहां भारत के पूर्व कूटनीतिज्ञ समेत पूर्व विदेशमन्त्री नटवर सिंह खुद मौजूद हों वहां पाकिस्तान का कोई भी कूटनीतिज्ञ भारत की सियासी जमातों की सियासत के बारे में अपनी कैफियत पेश कर सके? हम हिन्दोस्तानियों की आजादी के बाद से यही खूबी रही है कि जब भी पाकिस्तान ने टेढ़ी नजरों से देखने की कोशिश की है तो पूरा मुल्क हुंकार भरते हुए एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ा हो जाता है और हिन्दू-मुसलमान सभी मिलकर अपने मुल्क की हिफाजत के लिए अपनी जान न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं मगर केवल एक राज्य गुजरात में चुनावी विजय प्राप्त करने के लिए मुल्क के पुराने खिदमतगारों पर इतने निचले स्तर के आरोप लगाकर सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने खुद अपने लिए शक का माहौल बना लिया है।

कांग्रेस पार्टी के नेताओं पर इस प्रकार की बेबुनियाद फब्तियां कसने से पहले भाजपा नेताओं को गौर करना चाहिए था कि पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो हिस्सों में तकसीम करने की कूव्वत केवल कांग्रेसी प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने तब दिखाई थी जब अपने ही मुल्क भारत में उन पर जनसंघ पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाती थी। डा. मनमोहन सिंह के ऊपर उनका बड़े से बड़ा विरोधी भी यह आरोप लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता कि वह पाक के किसी ‘पंछी तक को भी हिन्दोस्तान के पेड़ों’ को गिनने की इजाजत दे सकते हैं। बेशक वह उदारवादी विचारों के हैं मगर मुल्क पर अपनी हस्ती मिटाने के उनके जज्बे को कौन चेलेंज कर सकता है ? लोकतन्त्र में राजनैतिक प्रतिद्वन्दिता का अपना एक दायरा और नैतिक सिद्धान्त होता है उसे तोड़ने वाला व्यक्ति या दल अंजाने में ही लोगों का भरोसा तब तोड़ बैठता है जब वह यह समझने लगता है कि उसके कहे को आम जनता सच्चाई की कसौटी पर नहीं कसेगी और अपना नतीजा नहीं निकालेगी। पाकिस्तान सिर्फ भाजपा के लिए ही दुश्मनी नहीं करता रहा है बल्कि उसकी हर कांग्रेसी और दूसरी पार्टी के नेताओं की नजर में भी यही हैसियत है। दुनिया का कोई भी आदमी यह नहीं मान सकता कि कांग्रेस जैसी पार्टी राजनीतिक हित के लिए किसी भी सूरत में कभी भी पाकिस्तान से कोई सलाह-मशविरा तक कर सकती है। यह हिन्दोस्तान की गैरत को ललकारने से कम नहीं है क्योंकि यह कांग्रेस पार्टी ही है जिसने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी और उस महान लोकतन्त्र की नींव डाली जिसके तहत 1951 में गठित जनसंघ (भाजपा) आज मुल्क की सरकार चला रही है।

चुनावी राजनीति में हार-जीत का मतलब देश के लोगों के बीच अपनी पहचान खोना कभी नहीं होता, अगर एेसा होता तो 1984 में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा आज 280 सीटें कैसे जीत पाती? जाहिर है कि एेसा कांग्रेस की उन कमजोर नीतियों की वजह से हुआ जो इस देश की जनता को उचित नहीं लगीं और इसी के बीच भाजपा में श्री नरेन्द्र मोदी एक नायक की तरह उभरे मगर समय कभी ठहरता नहीं है और लोगों की अपेक्षाएं लगातार बदलती हैं। इन्हीं बदली अपेक्षाओं काे पूरा करना राजनीतिक दलों का धर्म होता है जिससे राजनैतिक विमर्श बदलता है। इसमें किसी प्रकार का पेचीदा विज्ञान नहीं है। गुजरात में यदि राहुल गांधी द्वारा जनता का एजेंडा पकड़ कर उस पर सत्ताधारी पार्टी से जवाबतलबी की जा रही है तो उसका उत्तर जाहिर तौर पर उस जनता को देना ही पड़ेगा जिसके एजेंडे को राहुल गांधी उठा रहे हैं। सवाल भाजपा या कांग्रेस का नहीं है बल्कि गुजरात की जनता का है।

गुजराती अस्मिता किसी एक नेता के साथ बांध कर देखना अनुचित है क्योंकि स्व. मोरारजी देसाई भी भारत के प्रधानमन्त्री रहे थे मगर उन्हें पाकिस्तान ने ही अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशाने पाकिस्तान’ दिया था मगर इससे स्व. देसाई के रुतबे पर कांग्रेस पार्टी ने कभी सवालिया निशान नहीं लगाया। इसी तरह श्री अहमद पटेल की राष्ट्रभक्ति पर उनके मुसलमान होने की वजह से तरह-तरह की भ्रातियां फैलाने की कोशिश की जा रही है मगर हर भारतीय जानता है कि श्री पटेल का ईमान हिन्दोस्तान है। बेशक मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेसी नेता होते हुए अपने घर पर दावत में पाकिस्तान के पूर्व राजनयिकों को बुलाया जिसमें भारत के सरनाम लोग भी शामिल हुए। एक राजनीतिज्ञ के रूप में मणिशंकर अय्यर के बयानों को लेकर उनकी जमकर आलोचना की जानी चाहिए मगर एक पूर्व राजनयिक के तौर पर अपने घर पर दावत में अपनी मनमर्जी के मेहमानों को बुलाने के उनके अधिकार को कोई चुनौती नहीं दे सकता। जब वह मनमोहन सरकार में मन्त्री थे तब भी उनके घर पर विवाह आयोजन में पाकिस्तान के कई राजनयिकों ने भाग लिया था। इसे गुजरात चुनावों की पृष्ठभूमि में षड्यन्त्र से जोड़ना भारत की एकमेव राष्ट्रीय अस्मिता को पाकिस्तान के नापाक इरादों के समाने गिरवी रखने के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। हमारी आपस की लड़ाई गैर-मुल्क के लिए खुशी का मंजर कैसे बन सकती है।

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