दुनिया के शक्तिशाली देश घातक हथियार तो बना ही रहे हैं लेकिन वे अपने दुश्मनों को मात देने के लिए कई दूसरी तरह के हथकंडे भी अपनाते रहते हैं। बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों में कौन किसका दोस्त है और कौन किसका दुश्मन इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है।
हर वक्त सीधी जंग नहीं होती और हर बार केवल जंग के मैदान में ही मात नहीं दी जाती। खुफिया तरीकों से भी दुश्मन को मात दी जाती है। इस खुफिया खेल में बहुत बड़ी भमिका निभाता है-हनीट्रैप। जैसा नाम से ही जाहिर है हनी यानि शहद और ट्रैप मतलब जाल। एक ऐसा मीठा जाल जिसमें फंसने वाले को अंदाजा भी नहीं होता कि वो कहां फंस गया है और किसका शिकार बनने वाला है। खूबसूरत महिला एजेंट्स सेना के अधिकारियों को अपने हुस्न के जाल में फंसाती हैं और उनसे महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर लेती हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी अक्सर भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना से जुड़े लोगों को हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश करती रहती हैं। एक ताजा मामले में मास्को में भारतीय दूतावास में काम करने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया जो पाक खुफिया एजैंसी आईएसआई को गोपनीय जानकारियां दे रहा था। उत्तर प्रदेश एटीएस ने उसकी गिरफ्तारी मेरठ से की है। इस मामले में भी पुरानी कहानी दोहराई गई िक आरोपी को 'हनीट्रैैप' के जरिये फंसाया गया।
अमूमन इस तरह की जानकारियों का इस्तेमाल आतंकी हमले में किया जाता है। दुश्मन जानकारी का क्या इस्तेमाल करेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि जानकारी क्या है और कितनी गोपनीय है। अभी तक का ट्रेंड देखें तो पता चलता है कि सोशल मीडिया के जरिए सेना से जुड़े लोगों को फंसाया जाता है। ये जरूरी नहीं कि सामने जो लड़की बातें कर रही है वो वास्तव में लड़की ही हो। कई बार पुरुष एजेंट, महिला बन कर बातें करते हैं। इसके लिए फेक प्रोफाइल्स बनाई जाती हैं। ये इस कदर असली दिखती हैं कि इन पर भरोसा कर लिया जाता है। नंबरों का आदान-प्रदान सेना से जुड़े लोगों का भरोसा हासिल करने के लिए भी किया जाता है और व्हट्सएप जैसे टूल्स से भी चैटिंग की जाती है। इस तरह की चैटिंग के दौरान अंतरंग तस्वीरें दिखा कर बेहद निजी राज आदि जान लिए जाते हैं और फिर ब्लैकमेल करने में इनका इस्तेमाल किया जाता है। कई केसों में ऐसा देखा गया है कि लड़की खुद को किसी यूरोपियन देश या फिर अमेरिका की बताती है। कई बार लड़की खुद को किसी अखबार या मैगजीन से जुड़ा बताती है। ऐसे में यह लोग सेना अधिकारियों को थोड़ी जानकारी देने के एवज में अच्छा पैसा ऑफर करते हैं। सैन्य प्रतिष्ठानों की तस्वीरें शेयर करने को भी कहा जाता है। भारतीय कई बार हुस्न के जाल में फंसकर इसका शिकार हो चुके हैं।
पिछले वर्ष रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ के एक बड़े अधिकारी को भी इसी तरह सूचनाएं पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। भारतीय दूतावास के कर्मचारी को इसीलिए आईएसआई ने अपने जाल में फंसाया कि वहां से सैन्य गतिविधियों की जानकारी आसानी से हासिल की जा सकती है। चूंकि सेना और दूतावासों के बीच नियमित रूप से सैनिकों की तैनाती, उनकी गतिविधियों आदि से जुड़ी जानकारियां साझा की जाती हैं, इसलिए वहां से उनके बारे में पता लगाना आसान होता है। जिस कर्मचारी को गिरफ्तार किया गया वह बहुउद्देश्यीय कार्यों में लगा हुआ था, ऐसी सूचनाओं तक उसकी पहुंच आसान थी। हालांकि भारत की सुरक्षा एवं खुफिया एजैंसियां काफी सतर्क हैं और दूतावासों, रक्षा अनुसंधान संगठन और दूसरे संवेदनशील, अतिगोपनीय और रणनीतिक कार्यों में लगे लोगों पर निरंतर निगरानी रखी जाती है परन्तु हुस्न के जाल के साथ-साथ धन का प्रलोभन भी भारतीयों को देश के प्रति गद्दारी करने को उकसाने में सफल हो रहा है। आज छोटे पदों से लेकर उच्च पदों पर आसीन लोग भी पैसों के लालच में काली भेड़ें बन जाते हैं। आईएसआई ही नहीं अन्य देशों की खुफिया एजैंसियां भी लोगों को घर का भेदिया बना रही हैं। इसलिए हनीट्रैप और अन्य हथकंडों से भारतीयों को बचने की जरूरत है।
मगर ऐसे लोगों की राष्ट्र के प्रति निष्ठा ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। फिर भी आईएसआई जैसे संगठन अपने बिछाए जाल और प्रलोभन में ऐसे इक्का-दुक्का घर के भेदियों को फांस लेते हैं। ऐसे लोगों पर निगरानी तंत्र को और चाक-चौबंद बनाने की जरूरत रेखांकित होती है। पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकता।