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कसा जा रहा है ड्रैगन पर शिकंजा

जब पुलवामा हमला हुआ और जैश ने इसकी जिम्मेवारी अपने सिर ले ली तभी से पता लग गया था कि भारत अब पाकिस्तान में आतंकियों के

जब पुलवामा हमला हुआ और जैश ने इसकी जिम्मेवारी अपने सिर ले ली तभी से पता लग गया था कि भारत अब पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगा। दुनिया के लोग यही कहते थे कि आतंकियों को ठिकाने लगाया जाए। आतंक की मार झेलने वाले भारत में पुलवामा हमले के बाद पी.एम. मोदी से बहुत उम्मीदें थीं कि पाकिस्तान में बैठे आतंक के प्रमोटरों को सबक सिखाना होगा। इस दृष्टिकोण से हमारा जैश के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक एकदम सही था। हम इसमें कोई राजनीतिक कमेंट नहीं करना चाहते लेकिन एयर स्ट्राइक समय की मांग और देश की जरूरत थी। इसके लिए भारतीय वायुसेना और पी.एम. मोदी का राजनीतिक जज्बा बधाई का पा​त्र है।

अब हम पाकिस्तान के सबसे नजदीकी दोस्त और भारत के सबसे बड़े दुश्मन चीन की बात करते हैं। सब जानते हैं कि भारत में दर्जनों आतंकी हमलों के पीछे जैश सरगना अजहर मसूद शामिल है। मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक पहुंच चुका है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की नकेल कसी जा चुकी है। बात अब मसूद अजहर को ग्लोबल टैररिस्ट घोषित करने की थी। ऐसे प्रयासों पर पूरी दुनिया मसूद के खिलाफ कुछ करना चाहती थी। मौका और दस्तूर सामने था परन्तु चीन ने फिर से अड़ंगा डाल दिया और वीटो पावर लगाकर वह तकनीकी रूप से फिलहाल मसूद को बचा ले गया। अब संयुक्त राष्ट्र परिषद के सदस्य चीन के इस वीटो पावर के पंगे को देखकर कुछ और कड़े पग उठाने जा रहे हैं जिसके तहत किसी आतंकी को बैन करने के प्रस्ताव को लेकर अगर वीटो लगती है तो दुबारा वीटो नहीं लगाई जा सकती।

अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के साथ-साथ जर्मनी भी चीनी करतूत के बाद उसकी खुलकर निंदा कर रहे हैं। हमारा सवाल यह है ​जैश-ए-मोहम्मद, मसूद अजहर या उसकी गतिविधियों के संबंध में अब क्या छिपा हुआ है कि उसे समझने के लिये चीन को अलग से कोशिश करनी पड़ेगी। हालांकि फ्रांस ने अपने प्रस्ताव पर वीटो लगने के बाद आक्रामक रुख अपनाया है और मसूद पर वित्तीय प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है। इतना ही नहीं फ्रांस के साथ अमेरिका और इंग्लैण्ड भी इस हक में हैं कि मसूद को निपटाने के लिए अगर कोई कड़ा पग उठाना पड़े तो उससे भी गुरेज नहीं करना चाहिए। इसलिए ये तीनों राष्ट्र चीन से बराबर संपर्क बनाए हुए हैं। बराबर डिप्लोमेटिक फ्रंट पर बातचीत बरकरार है ताकि मसूद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निपटा जा सके।

गौरतलब है कि यह चौथा मौका था जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के लिए प्रस्ताव आया तो चीन ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर उसे पारित नहीं होने दिया। अजहर मसूद के संगठन जैश-ए-मोहम्मद को करीब 18 साल पहले ही आतंकी घोषित किया जा चुका है। यह समझना मुश्किल है कि चीन की नजर में आतंकवादी होने की परिभाषा क्या है और आखिर किन वजहों से वह वैश्विक मत को दरकिनार करके मसूद अजहर को लेकर इतना नरम रुख बनाए हुए है। क्या इसे आतंकवाद के मसले पर चीन के दोहरे रवैये के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए? कुछ समय पहले चीन ने कहा था कि हम भारत के साथ आतंकवाद विरोधी और सुरक्षा सहयोग के मोर्चे को मजबूत करना चाहेंगे और दोनों देश मिलकर क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए काम करेंगे।

सवाल है कि जिस व्यक्ति को तकनीकी रूप से अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश भी पहल कर रहे हैं, उसका बचाव करके चीन भारत के साथ आतंकवाद विरोध के किस मोर्चे को मजबूत करने की बात करना चाहता है।

हमारा कहने का मतलब यह है कि कल तक पाकिस्तान दुनिया के सामने बेनकाब था और चीन उसके पैरोकार की तरह खुलकर सामने आया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को वह सब करना होगा जो अब तक कभी नहीं हुआ। चीन अब तक वही कर रहा है जो हर बार करता है जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विशेष प्रतिबंध कमेटी के पास भी वीटो पावर है तो फिर चीन से निपटने के लिए प्रतिबंध कमेटी के सदस्य अब अपनी वीटो पावर का सदुपयोग करें और मसूद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करें। एक बात हम और स्पष्ट कर रहे हैं कि ठीक है कि चीन के साथ डिप्लोमेसी के तौर पर पी.एम. मोदी पेश आ रहे हैं लेकिन यह भी तो सच है कि चीन के फन को एक दुश्मन की तरह ही निपटाना होगा और मानकर चलना होगा कि हमें उसकी कोई बात नहीं माननी। जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता के मामले में बड़े देश हमारा समर्थन कर रहे हैं तो फिर चीन हमारा समर्थन क्यों नहीं कर रहा।

सोशल साइट पर लोग कह रहे हैं कि इस ड्रैगन से निपटने के लिए उसी की भाषा में बात करो। कूटनीति यही कहती है कि चीनी आइटमों पर 300 प्रतिशत ड्यूटी लगा दी जाए। ऐसे में चीन के पास अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को देखकर घुटने टेकने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। मैं समझता हूं ​जिन लोगों ने ऐसी बातें मुझ से भी शेयर की हैं व्यक्तिगत तौर पर एक राष्ट्रभक्त भारतीय होने के नाते इसका समर्थन किया जाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो पावर प्राप्त सदस्य हमारे साथ हैं। ड्रामेबाजी वाले पाक पी.एम. इमरान वहां की फौज और आईएसआई के इशारे पर ज्यादा देर नहीं चल सकते। चीन भी पाकिस्तान की तरह लातों का भूत है। यह लम्बी-चौड़ी कूटनीति वाली बातें करता है, वक्त का तकाजा यही है कि इसी कूटनीति के हथियार से अब चीनी आइटमों का विरोध या फिर 300 प्रतिशत की ड्यूटी लगा दी जाए तो चीन के लिए यह एक करारा थप्पड़ होगा और हमें इसमें ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि मार ऐसी हो कि जिसे पड़े वह भी रोये और उसका साथी खुद को असहाय पाकर इस मार के असर को देखकर तड़पे और रोये। पाकिस्तान और चीन के लिए हमें इसी हथियार से एक तीर से दो शिकार करने होंगे।

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