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ये कैसे बच्चे…

ता-पिता सारी उम्र अपने बच्चों को पालने-पोसने, पढ़ाने और जिन्दगी में उनको सैट करने में लगा देते हैं। अपनी जरूरतें कम कर बच्चों की जरूरतें पूरी करते हैं। एक मां खुद गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुला देती है। कई बच्चे तो मां-बाप को भगवान की तरह पूजते हैं और कई बच्चे बड़े नाशुक्रे होते हैं।

माता-पिता सारी उम्र अपने बच्चों  को पालने-पोसने, पढ़ाने और जिन्दगी में उनको सैट करने में लगा देते हैं। अपनी जरूरतें कम कर बच्चों की जरूरतें पूरी करते हैं। एक मां खुद गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुला देती है। कई बच्चे तो मां-बाप को भगवान की तरह पूजते हैं और कई बच्चे बड़े नाशुक्रे होते हैं।
पिछले दिनों दिल को हिला देने वाली एक मां की इच्छा सामने आई। कर्नाटक की एक 75 साल की बुजुर्ग ने राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी। अत्यधिक शारीरिक और मानसिक पीड़ा के आधार पर जिला प्रशासन के माध्यम से राष्ट्रपति के सामने इच्छामृत्यु की याचिका दायर की। जिला अधिकारियों के अनुसार राणेबेन्नूर शहर के पास रंगनाथ नगर निवासी प्रतन्ना हनुमंतप्पा कोस्टा के पास 30 एकड़ जमीन है, उस महिला के पास सात मकान और फ्लैट भी हैं। उसके 11 बच्चे हैं, इसके बावजूद महिला ने इच्छामृत्यु के लिए अर्जी दी है। अपनी याचिका में बुजुर्ग महिला ने बताया कि उसके सात बेटे और 4 बेटियां हैं, लेकिन उनमें से कोई भी इस उम्र में उसकी देखभाल करने को तैयार नहीं है और उसने दावा किया कि उसके लिए बीमारियों के साथ जीवन जीना बहुत मुश्किल है, इसलिए बच्चों से दुखी होकर उन्होंने जिला आयुक्त के सामने इच्छामृत्यु की याचिका दायर की। यह खबर सुनकर मन बहुत ही उदास हुआ और कष्ट हुआ कि क्या ईश्वर से इसलिए औलाद मांगी जाती है?
यही नहीं कुछ साल पहले मेरे पास भी गुरुग्राम से 85 साल की महिला आई उसके भी 6 बच्चे थे  2 लड़के,  4 लड़कियां। उसके पास बहुत बड़ी कोठी थी वो मुझे वरिष्ठ नागरिक के लिए देना चाहती थीं तो मैंने उनके आगे हाथ जोड़ दिए कि आपके बच्चों का हक है, उन्हें ही दें। हम नहीं लेंगे। हमारे गुरुग्राम के ब्रांच हैड भी उससे मिलने गए और उसको बहुत समझाया कि जैसे भी हैं तुम्हारे बच्चे हैं, उनका हक है, परन्तु वह बुजुर्ग महिला अपने बच्चों से इतनी दुखी थी कि टस से मस नहीं हो रही थी। वो कहती थी मेरे बच्चे न मुझे पूछते हैं न मेरी देखभाल करते हैं, तो मैं उन्हें क्यों दूं। मैं आपको दूंगी, जहां मेरे जैसे कई बुजुर्ग खुश होते हैं, वो एक साल मगर लगी रही। जब नहीं माने तो उसने अपनी प्रोपर्टी कहते हैं कि रामदेव जी को दे दी।
कैसे-कैसे बच्चे हैं की प्रोपर्टी पर तो पूरा अधिकार समझते हैं, परन्तु सेवा करने में पीछे हो जाते हैं। वह यह क्यों नहीं सोचते जो वो आज अपने मां-बाप के साथ कर रहे हैं, कल उनके बच्चे भी उनके साथ करेंगे। इतिहास दोहराता है।
ऐसे बहुत से बच्चे हमारे पास आते हैं जो कहते हैं महंगाई है, हम अपने माता-पिता को नहीं रख सकते, तो हमें उनके लिए वृद्ध आश्रम बता दो, तो हम कहते हैं कि हम उनके खाने और दवाई का खर्च देंगे, आप उन्हें अपने साथ घर में रखें क्योंकि वृद्ध आश्रम छत और रोटी तो दे सकते हैं परन्तु अपनापन और प्यार नहीं। और जो खुशी मां-बाप को अपने बच्चों और पोते-पोतियों से मिलती है वो वृद्ध आश्रम में नहीं मिल सकती।
इसलिए हम ऐसे बुजुर्गों को एडोप्ट करवाते हैं जिसका अर्थ है बुजुर्गों को अपने घर नहीं लेकर जाना, बल्कि उनके खाने और दवाइयों का खर्च दो ताकि बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रहें और उनके मुख से उनको एडोप्ट करने वालों के लिए आशीर्वाद और दुआएं निकलें। एडोप्शन एक बुजुर्ग 1000, 2000, 3000 और जो बहुत बीमार हैं उसकी 5000 रुपए है। कोई चाहे तो एक बुजुर्ग एडोप्ट करेे, 2 करें या 10 या 50 जितनी उनकी क्षमता हो, इतना पैसा तो हमारे बच्चे एक मिनट में पिज्जा,  बर्गर पर खर्च कर देते हैं। जरा सोचें आपके इस योगदान से अगर बुजुर्ग अपने घर रह सकें तो इससे बढ़कर कोई पुण्य कार्य नहीं होगा और तो और जो बुजुर्ग दिन प्रतिदिन एडोप्शन में हिस्सा लेते हैं, उनकी खुशियां भी देखने लायक होती हैं तो आओ चलें उनके साथ जिन्होंने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया। यह कदमों की धूल नहीं माथे की शान है।

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