'ऐसा क्या हुआ कि तेरे गुमां शीशों की तरह टूट कर बिखर गए हर तरफ
कुछ पैरों से लिपटे हैं, कुछ सदमे से ठिठके हैं, कुछ दीवारों से चिपके हैं'
भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि भले ही भाजपाध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपना अध्यक्षीय टर्म पूरा कर लिया हो, उन्हें केंद्र में नए स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारियों से लैस भी कर दिया गया हो पर भगवा शीर्ष ने अभी भी उनके विकल्प ढूंढने के प्रयास शुरू नहीं किए हैं। संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी उन्हें ही आने वाले दिसंबर तक अध्यक्षीय कुर्सी पर बिठाए रखना चाहेगी। दरअसल, पिछले कुछ समय से कई मुद्दों को लेकर भाजपा व संघ में तनातनी बनी थी पर वह मामला शांत कर दिया गया। जैसा कि विश्वस्त सूत्र दावा करते हैं कि संघ चाहता था कि बहुचर्चित 'नीट' के मुद्दे पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे देते लेकिन बाद में यह मामला भी शांत कर दिया गया क्योंकि विपक्ष बहुत आक्रामक चल रहा था।
जब इस बार मोदी 3-0 सरकार के गठन की कवायद चल रही थी तो माना जाता है कि संघ ने भाजपा शीर्ष को अपनी भावनाओं से अवगत करा दिया था, नितिन गडकरी के परफॉरेमेंस को मद्देनज़र रखते उन्हें वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जाए और शिवराज सिंह चौहान की अगले भाजपाध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी हो।' पर ऐसा कुछ भी संभव नहीं हो पाया, ऐसा लगता है कि आलाकमान फिलवक्त जेपी नड्डा से अध्यक्षीय काम चलाना चाहती है, कयास है कि अब नड्डा के नेतृत्व में ही हरियाणा, महाराष्ट्र जम्मू-कश्मीर व झारखंड के विधानसभा चुनाव होंगे, अभी पिछले दिनों राज्यों के नए प्रभारी और उप प्रभारी घोषित कर नड्डा ने भी भाजपा शीर्ष की मंशाओं पर अपनी मुहर लगा दी है।
क्या अब तीन हिस्सों में बंटेगा यूपी?
हालिया लोकसभा चुनावों में मिले यूपी के झटके से भाजपा नेतृत्व उबर नहीं पा रहा, भगवा शीर्ष की अपरोक्ष नाराज़गी यूपी की कमान संभाल रहे उसके मुखिया से भी है, पर सिर्फ इसीलिए योगी को जोर का झटका धीरे से नहीं दिया जा सका क्योंकि उनके समर्थन में खुल कर संघ सामने आ गया। सो, योगी के बढ़ते कद को काटने-छांटने की नई कवायद हो सकती है, इसके लिए भाजपा नेतृत्व ठंडे बस्ते से वह एक पुरानी योजना को निकाल लाया है जिसमें पहले से 80 लोकसभा सीटों वाली यूपी को तीन हिस्सों में बांटने की वकालत की गई थी और चाह कर भी संघ इस आइडिया का विरोध नहीं कर सकता क्योंकि वह शुरू से छोटे राज्यों का हिमायती रहा है। सो, यूपी को तीन हिस्सों यानी पश्चिम, मध्य और पूर्वांचल में बांटने की रणनीति पर काम शुरू हो चुका है। भाजपा को लगता है कि कम से कम इस योजना को सिरे चढ़ाने से वह पश्चिमी यूपी में और मजबूत होकर उभर सकती है।
राजस्थान में क्यों ढह रहा है भाजपा का किला
2019 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान में शत-प्रतिशत जीत का आंकड़ा देने वाली भाजपा आखिरकार आपसी सिर फुटौव्वल के चलते 24 के चुनाव में अपने पल्लू से 11 सीटें गंवा बैठी, फिर भी यहां भाजपा नेताओं की आपसी गुटबाजी व उठापटक पर लगाम नहीं लग पा रही। राजस्थान का भगवा तापमान आज भी कितना गर्म है इसे आप वहां की सीनियर भाजपा नेता व राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के एक बयान से आसानी से समझ सकते हैं, बकौल वसुंधरा-'लोग आज कल उसी उंगुली को काटना चाहते हैं जिस उंगुली को पकड़ कर उन्होंने चलना सीखा है।' चुनाव हारने के बाद भी राजस्थान भाजपा में आज भी कई पॉवर सेंटर बने हुए हैं, पार्टी अलग-अलग खेमों में बंटी नजर आती है। जरा इन खेमों पर नजर डालिए-वसुंधरा राजे खेमा, भजन लाल खेमा, राजेंद्र राठौड़ खेमा, सीपी जोशी खेमा या फिर दिल्ली की बात करें तो वहां भी तीन अलग पॉवर सेंटर बताए जाते हैं जिसमें ओम बिड़ला, गजेंद्र सिंह शेखावत व भूपेंद्र यादव के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं। हाल के दिनों में एक सीनियर नेता किरोड़ीलाल मीणा का मसला भी खूब सुर्खियां बटोर रहा है।
2024 के लोकसभा चुनाव में भगवा पार्टी ने मीणा को पूर्वी राजस्थान के 7 सीटों का इंचार्ज बनाया था, जिसमें से 4 सीटों यानी दौसा, टोंक सवाई माधोपुर, करोड़ी धोलपुर व भरतपुर में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। जैसा कि मीणा चुनाव पूर्व ही खम्म ठोंक कर कह चुके थे कि 'अगर वे अपनी सातों जिम्मेदारियों वाली सीटों में से कोई सीट हार जाएंगे तो वे अपने पद से इस्तीफा दे देंगे।' मीणा अपनी वरिष्ठता को देखते हुए यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार पार्टी उन्हें राजस्थान का सीएम बनाएगी पर बाजी एक अनजाने से चेहरे भजन लाल शर्मा ने मार ली, जबकि मीणा 6 बार के विधायक, 2 बार के सांसद व एक बार के राज्यसभा सांसद रहे हैं। पर जब उन्हें भजन लाल सरकार में कृषि मंत्री बनाया गया तो उसमें से भी पंचायती राज व ग्रामीण विकास विभाग हटा कर मदन दिलावर को दे दिया गया। अब मीणा ने अपना त्याग पत्र भेज दिया है, पर उनका त्याग पत्र स्वीकार ही नहीं हो रहा क्योंकि भाजपा शीर्ष अभी हल्ला मचाने वालों को चुप रखने की रणनीति पर चुपचाप काम कर रहा है।
क्या भाजपा को समर्थन की कीमत बड़ी है?
राजनैतिक गलियारों में एक नया विश्लेषण धूम मचा रहा है कि जिन पार्टियों ने अलग-अलग मुद्दों पर 2019 में मोदी सरकार को केंद्र में समर्थन दिया था, जब 2024 के आम चुनाव आए तो इसमें उनका सूपड़ा साफ हो गया। मिसाल के तौर पर आज बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी का नाम ले सकते हैं, आम आदमी पार्टी ने धारा 370 और 35ए पर मोदी सरकार को समर्थन दिया था। आप ने कांग्रेस से गठबंधन करने के साथ 5 राज्यों के 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, पर नतीजा रहा सिफर। भले ही पार्टी का दिल्ली में वोट प्रतिशत बढ़ कर 24.14 प्रतिषत हो गया पर एक भी सीट उसके हाथ नहीं आई। ओडिशा में बीजू जनता दल ने विधानसभा भी भाजपा के हाथों गंवा दी। जगन मोहन रेड्डी का हश्र आंध्र में क्या हुआ आंध्र जवाब है तो बसपा भी सब कुछ गंवा बैठी है।
…और अंत में
चर्चित मलयाली एक्टर सुरेश गोपी ने जब केरल में भाजपा का खाता खोल दिया तो उन्हें केंद्र में एक नहीं बल्कि दो-दो विभागों यानी पर्यटन व पेट्रोलियम मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है। पहले तो सत्ता के गलियारों में इन कयासों ने खूब हंगामा बरपाया कि सुरेश मंत्री पद स्वीकार ही नहीं कर रहे। अब जबकि उन्होंने बाकायदा मंत्री पद संभाल लिया है तो उन्होंने एक अजीबोगरीब घोषणा कर केंद्र सरकार को धर्मसंकट में डाल दिया है। गोपी ने कहा है कि वे न सिर्फ पहले की तरह फिल्मों में अभिनय करते रहेंगे बल्कि साथी अभिनेताओं की तरह किसी कार्यक्रम के उद्घाटन में भी जाएंगे, रिबन भी काटेंगे और उसके लिए पैसे भी लेंगे लेकिन वह आफिस ऑफ प्राॅफिट दायरे में आ सकते हैं।