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कब तक पिसती रहेंगी महिलाएं…

बहुत ही गर्व की बात है, एक तरफ हम सेना में महिलाओं को प्रमुख स्थान देने की बात करते हैं, 26 जनवरी की परेड में आगे रखते हैं

बहुत ही गर्व की बात है, एक तरफ हम सेना में महिलाओं को प्रमुख स्थान देने की बात करते हैं, 26 जनवरी की परेड में आगे रखते हैं, हर क्षेत्र में महिलाएं अपने बलबूते पर आगे आ रही हैं परन्तु दूसरी तरफ गार्गी कालेज की छात्राओं के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना, निर्भया रेप कांड के दोषियों को देरी से सजा होना, एक स्कूल में सैनिटरी नैपकिन चैक करने के लिए कपड़े उतरवाना, यही नहीं सूरत में महिला ट्रेनी क्लर्कों को बिना कपड़े खड़ा किया जाना बड़ी शर्मनाक घटनाएं हैं। जिसके बारे में मैं लिखने को नहीं रोक पा रही। 
अभी मैं जिस  समय के दौर  से गुजर रही हूं, जिस गमगीन वातावरण में खड़ी हूं, जो भी पंजाब केसरी से जुड़ा है वो समझता है कि मैंने अपने दी ग्रेट लाइफ पार्टनर, गाइड, पति, एक महान सम्पादक को खोया है। मेरी कलम बहुत मुश्किल से उठ रही है। अभी तो मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही हूं कि अश्विनी जी शारीरिक रूप से इस दुनिया से विदाई ले चुके हैं क्योंकि मुझे हमेशा उनका अपने साथ रहने का अहसास है, हर मुश्किल में कैसे सामना करना है उनकी प्रेरणा मेरे साथ है। इसलिए मैं हमेशा लड़कियों, महिलाओं के प्रति हो रहे हर अन्याय के ​िखलाफ हमेशा कलम उठाती रही हूं और  उठाती रहूंगी।
कब तक महिला पिसती रहेगी, कब तक बेटियां मां के पेट से लेकर जीवन तक असुरक्षित रहेंगी। कहीं अपने घर की अजन्मी बेटी को पेट में ही मार दिया जाता है। यहां तक कि फांसी से पहले भी जल्लाद फांसी वाले से उसकी आखिरी इच्छा पूछता है परन्तु अजन्मी बेटी से वो भी नहीं पूछा जाता है, क्योंकि बहुत सख्त कानून के बावजूद भी यह सब गांवों और छोटे कस्बों में हो रहा है। यही नहीं बेटियों पर अपने रिश्तेदार ही गलत नजर रखते हैं या कभी ऑनर किलिंग के नाम पर उनको मार दिया जाता है।
यही नहीं एक महिला मेरे पास आई, जिसके पति की मृत्यु को अभी छह दिन नहीं हुए उसके परिवार वालों ने (उसके चाचा ससुर, देवरों ने) उसकी जायदाद हथियाने के लिए, उस पर दबाव बनाने के लिए केस करने शुरू कर दिए। पंजाब का बहुत नामी-गिरामी परिवार है जो महिलाओं की रक्षा के लिए भाषण देते हैं। खुद अपने घर की बहू को तंग कर रहे हैं। मैं सोचती हूं कि सारी उम्र हम यह सोचते रहते हैं कि समाज क्या कहेगा परन्तु सारा समाज अन्दर ही अन्दर बात तो करता है। चर्चाएं भी करता है कि बहुत बुरा हो रहा है। इस बुजुर्ग चाचा ससुर को इस समय बहू के सिर पर हाथ रखना चाहिए था परन्तु जो गलत करता है उसके मुंह पर कहने की हिम्मत नहीं कर पाते जिससे वो इंसान गलत कार्य करता रहता है। सुख-दुख, जीवन-मृत्यु जीवन के दो पहिये हैं, जो साथ-साथ चलते हैं और सबको इससे गुजरना है, काेई आगे, कोई पीछे, कोई जल्दी, कोई देर से। कोई भी वस्तु, समय स्थिर नहीं है इसलिए सबको ईश्वर के इस चक्र से डरना चाहिए। 
दिल्ली और सारे देश में लड़कियों की सुरक्षा उचित होनी जरूरी है। समाज में महिलाओं की सुरक्षा होनी जरूरी है। हर बात हमेशा घर से शुरू होती है। अगर हम अपने घर की महिलाओं को सुरक्षित रखेंगे तो समाज की महिलाओं को भी सुरक्षित रख सकेंगे। अगर हम समाज में बहू-बेटियों की इज्जत की बात करते हैं, महिलाओं की सुरक्षा पर बड़े-बड़े भाषण देते हैं परन्तु अपने ही घर में बहू-बेटी महफूज नहीं तो चिराग तले अंधेरा वाली बात है। यही बात है कि हैदराबाद की महिला डाक्टर से रेप करने वालों को पुलिस हाथोंहाथ एनकाउंटर में मारकर अपनी ड्यूटी पूरी कर देती है ताे लोग इसे इंसाफ मानकर खाकी वालों पर पहली बार पुष्प वर्षा करते हैं तो समझती हूं कि वह कोई बुरा काम नहीं कर रहे हैं।हमें सबको समझना होगा कि बेटियां हैं तो संसार है, समाज है, घर है, बेटियां चाहे वो किसी भी रूप में हों उनका उत्पीड़न रोकना होगा। लोगों को समाज का डर, पुलिस का डर और कानून का डर दिखाना होगा तभी लड़कियां सुरक्षित रहेंगी, नहीं तो लड़कियां, महिलाएं ​​ पिसती रहेंगी।

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