कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीती 14 तारीख को भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू कर दी है। यह राहुल गांधी की दूसरी यात्रा है। इससे पहले राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा ठीक एक साल पहले ख़त्म हुई थी। इसके तहत उन्होंने तमिलनाडु में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की यात्रा की थी। कांग्रेस इसे सामाजिक, धार्मिक न्याय और 'अराजनीतिक' यात्रा करार दे रहे हैं। कांग्रेसी 'न्याय' और 'सहो मत, डरो मत' के नारे लगा रहे हैं। 'न्याय यात्रा' देश के 15 राज्यों और 110 जिलों से गुजरेगी। 66 दिन की यात्रा के बाद 20 मार्च को मुंबई में इसका समापन होगा। तब तक आम चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी होंगी!
राहुल गांधी की भारत जोड़ों न्याय यात्रा को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। सवाल यह है कि राहुल गांधी आखिरकार किस 'न्याय' की बात कर रहे हैं? और किसको न्याय दिलाने के लिए वो यात्रा कर रहे हैं? लोकतंत्र में न्याय की अपेक्षा सरकार और न्यायपालिका से की जाती है। कोई ऐसी वारदात या सामाजिक दमन भारत में नहीं हुआ है, जिसके लिए 'न्याय' की गुहार या उद्घोष किया जाए। या फिर हजारों किलोमीटर की लंबी यात्रा निकालने को विवश होना पड़ा। इस यात्रा से पहले राहुल गांधी ने भारत जोड़ों यात्रा निकाली थी। एकजुट देश राहुल गांधी को टूटा हुआ क्यों दिखाई देता है, ये भी बड़ा सवाल है। अपवाद हो सकते हैं, समस्याएं हो सकती हैं। कांग्रेस ने देश पर करीब 55 साल शासन किया है। ऐसे कौन से सामाजिक और धार्मिक अन्याय शेष रह गए हैं, जिन पर 'न्याय' का दावा किया जा रहा है? इस देश पर सर्वाधिक समय तक शासन कांग्रेस पार्टी ने किया है। ऐेसे में सवाल यह है कि अगर आजादी के इतने लंबे समय बाद भी अगर देश में समस्याएं और परेशानियां हैं तो उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी उसी दल की होनी चाहिए, जिसने लंबे समय तक देश पर शासन किया।
कांग्रेस की तरफ से दावा किया जा रहा है कि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' राजनीतिक या चुनावी यात्रा नहीं है। वास्तव में कांग्रेसजन जिस यात्रा को भारत जोड़ो न्याय यात्रा बता रहे हैं वो एक राजनीतिक यात्रा है। जिसका मकसद कांग्रेस को सत्ता में लाना है। पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर राज्य पिछले कुछ समय से अशांत है। ऐसे में मणिपुर से यात्रा की शुरुआत कर कांग्रेस ने सिद्ध किया कि यात्रा किसी को न्याय दिलाने के लिए नहीं बल्कि राजनीति के लिए ही है।
राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' को कामयाब बनाने के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी। दिल्ली से इंडिगो की एक पूरी फ्लाइट बुक करके करीब 200 नेता एक साथ मणिपुर पहुंचे। इनमें कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य, महासचिव, प्रवक्ता, तीन राज्यों के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के साथ-साथ सभी राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता शामिल थे। अपने तमाम नेताओं को मणिपुर में एक मंच पर बैठकर कांग्रेस ने यहां के स्थानीय लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि पूरी कांग्रेस दुख की घड़ी में उनके साथ है। रैली के मंच से कांग्रेस के लगभग हर नेता ने प्रधानमंत्री के पिछले आठ महीने के दौरान मणिपुर नहीं आने की आलोचना की।
पूर्वोत्तर में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए 26 दिन तक पूर्वाेत्तर के राज्यों में राहुल की यात्रा रहेगी। राहुल गांधी सबसे ज्यादा 17 दिन असम में रहेंगे। इसके अलावा मणिपुर में चार और नगालैंड में तीन दिन उनकी यात्रा चलेगी। अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में वे एक-एक दिन रहेंगे। सिक्किम, त्रिपुरा और मिजोरम उनकी यात्रा नहीं जाएगी। इन तीन राज्यों में चार लोकसभा सीटें हैं। यानी पूर्वोत्तर की 25 में से 21 सीटों वाले राज्यों में राहुल गांधी की यात्रा जाएगी। मणिपुर से यात्रा शुरूआत हुई है, जहां लोकसभा की दो सीटें हैं। नगालैंड में एक और अरुणाचल व मेघालय में दो-दो सीटें हैं, जबकि असम में 14 सीटें हैं। इन राज्यों में राहुल गांधी 26 दिन यात्रा करेंगे। असम के अलावा बाकी किसी राज्य में कांग्रेस के पास कोई सीट नहीं है। असम में भी कांग्रेस की सिर्फ तीन सीटें हैं। इस तरह पूर्वाेत्तर की कुल 25 में से कांग्रेस के पास सिर्फ तीन सीटें हैं। हालांकि हर राज्य में कांग्रेस का वोट आधार अब भी बचा हुआ है। असम में ही भाजपा को कांग्रेस से सिर्फ आधा फीसदी वोट ज्यादा मिला था। राहुल अपनी यात्रा से पूर्वाेत्तर में कांग्रेस का खोया हुआ जनाधार हासिल करने की कोशिश करेंगे।
इस यात्रा के लिए भी कांग्रेस ने गठबंधन के घटक दलों को विश्वास में नहीं लिया, लिहाजा सभी असमंजस में बयान दे रहे हैं। अलबत्ता कुछ दलों के नेता यात्रा में जरूर शामिल होंगे। कांग्रेस को ये देखना और सोचना चाहिए कि भाजपा ने पांच राज्यों के चुनावों से फुर्सत होने के बाद एक दिन भी व्यर्थ नहीं गंवाया और लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई। जिन सीटों पर वह 2019 में हारी थी उनके उम्मीदवार वह जल्द घोषित करने के संकेत दे रही है। इसी तरह जिन राज्यों में कमजोर है उनमें भी उसने मोर्चेबंदी शुरू कर दी है। इसके विपरीत कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर उठने वाले मुद्दों पर अपनी नीति स्पष्ट करने में असमर्थ नजर आ रही है।
इसका सबसे नया उदाहरण राममंदिर के शुभारंभ पर अयोध्या में आयोजित समारोह में शामिल न होने का निर्णय लेने में किया गया विलंब है। इसके कारण पार्टी का एक बड़ा वर्ग अपने को असहज महसूस कर रहा है। कुछ ने खुलकर शीर्ष नेतृत्व के फैसले को आत्मघाती बताने में हिचक नहीं की। राहुल को यद्यपि न्योता ही नहीं मिला किंतु इस ज्वलंत विषय पर वे स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बोल सके। ऐसे में आवश्यकता इस बात की थी कि वे बजाय सवा दो महीनों की लंबी यात्रा निकालने के, गठबंधन के घटक दलों के बीच सामंजस्य बिठाने का काम करते, जिनके बीच वैचारिक मतभेद और महत्वाकांक्षाओं का टकराव सर्वविदित है।
राहुल गांधी की ये यात्रा जिन 15 राज्यों से गुजरेगी, उन राज्यों में लोकसभा की कुल मिलाकर 357 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को देखें तो इन राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही खराब है। कितनी खराब इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इन 357 सीटों में पार्टी महज 14 पर ही जीत हासिल कर पाई थी। भारत जोड़ो न्याय यात्रा वाले राज्यों में से 5 तो ऐसे हैं जहां 2019 में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई। कांग्रेस को इस यात्रा से उत्तर पूर्वी राज्यों में ठीक उसी प्रकार जीत की उम्मीद है जैसे भारत जोड़ो यात्रा से तेलंगाना और कर्नाटक में बड़ी जीत मिली है। कांग्रेस को जीत की उम्मीद तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी थी। लेकिन वहां उम्मीदों पर पानी फिर गया। राहुल गांधी की इस यात्रा का आग़ाज़ तो बहुत अच्छा हुआ है लेकिन अंजाम कैसा होगा यह चुनावी नतीजे बताएंगे। अब यह देखना अहम होगा कि इस यात्रा से कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में कितना लाभ मिल पाता है।
– राजेश माहेश्वरी