कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का आंकड़ा अब डराने लगा है। देश की राजधानी दिल्ली में भी कोरोना मरीजों का आंकड़ा भयावह होता जा रहा है और मौतों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि केजरीवाल सरकार कोरोना वायरस को पराजित करने के लिए हर संभव कदम उठा रही है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ही दिल्ली में लॉकडाउन में अभी तक कोई राहत न देने का फैसला किया है। अब तो ऐसे मरीज मिल रहे हैं जिनमें कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे फिर भी वह कोरोना पॉजिटिव निकले। कोरोना वायरस नवजात शिशुओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है। कोरोना महामारी का अभी तक कोई उपचार सामने नहीं आया।
ऐसा भी नहीं है कि वैभवशाली दिल्ली के लोगों को स्थिति की संवेदनशीलता और खतरों के बारे में पता न हो फिर भी लोग समझने के लिए तैयार नहीं। अगर लोगों ने अपना लापरवाहीपूर्ण रवैया जारी रखा तो इस बात की आशंका है कि दिल्ली में हालात बेकाबू हो सकते हैं। मुझे लगता है कि लोगों ने महामारी से ग्रस्त शहर की कल्पना भी नहीं की होगी। मैं 1918 में फैली महामारी के खौफनाक मंजर नहीं लिखना चाहता। मैं बात करना चाहता हूं 26 वर्ष पहले की।
26 वर्ष पहले के मंजर को भारतीयों ने देखा था। 1994 का सितम्बर गुजरात के सूरत शहर में सुबह के वक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने खबर दी कि एक मरीज की मौत प्लेग से हुई। उसी दिन दस मौतों की खबर आई, सभी को प्लेग था। फिर सात दिन के अंदर सूरत की लगभग 25 फीसदी आबादी शहर छोड़ गई।
आजादी के बाद इसे दूसरा पड़ा पलायन कहा गया। पहले अमीरों ने गाड़ियों से शहर छोड़ा, फिर डाक्टर्स और कैमिस्टों ने। बचे हुए लोगों ने ट्रेन, बस जैसे भी संभव था शहर छोड़ दिया। सूरत हीरे और कपड़े की फैक्ट्रियों का हब था। बिहार, उत्तर प्रदेश की बड़ी जनसंख्या रह रही थी। वह अपने गांवों को लौटे तो वहां भी प्लेग पहुंच गया। भाग कर लौटना इतना भयावह था कि गांव के गांव साफ हो गए।
लंदन में एयर इंडिया के प्लेन को प्लेन प्लेग कहा गया। दुनिया भर की अखबारों ने इसे मध्यकालीन श्राप कहा था। 26 साल पहले माना जा सकता है कि तब अंध विश्वास ज्यादा होगा, लोगों में जागरूकता की कमी होगी और हाईजीन की समस्या भी रही होगी। आज सैंकड़ों टीवी चैनल, समाचारपत्र और सोशल मीडिया कोरोना वायरस के प्रति दिन-रात लोगों को जागरूक कर रहे हैं, इसके बावजूद लोग संभल नहीं रहे हैं।
पहले तो मरकज से जुड़े लोगों ने कोरोना वायरस को फैलाने का काम किया और अब भी तबलीगी जमात के लोग अपना व्यवहार बदलने को तैयार नहीं। कोरोना वायरस की परवाह किए बगैर मनमानीपूर्वक घूमना या मैडिकल टीमों और पुलिस की अपीलों को ठुकराना कोई साहस या शान की बात नहीं।
दिल्ली की पुनर्वास कालोनी जहांगीरपुरी, तुगलकाबाद और तिलक विहार में एक ही परिवार के 31 लोग और एक-एक गली में 25-25 लोग कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों ने खुद को पृथकवास में नहीं रखा और वह पहले की ही तरह अपने रिश्तेदारों और मित्रों से मिलते रहे। यह सब उस वक्त किया गया जब कोरोना संक्रमण का चक्र तोड़ने के लिए सभी नागरिकों के सहयोग की उम्मीद की जा रही हो लेकिन लोगों ने नियमों और कायदे-कानूनों की धज्जियां उड़ा दी।
तबलीगी जमात के लोगों ने मानव को बचाने के लिए जमीन पर फरिश्तों का रूप लेकर काम करने वाले डाक्टरों और नर्सों से दुर्व्यवहार तो किया ही बल्कि जमात की विचारधारा से प्रभावित लोगों ने गलियों में घूम-घूम कर संक्रमण फैलाने का काम किया। ये एक तरह से आत्मघाती संक्रामक मानव बम का काम कर रहे हैं।
महानगर के संभ्रात इलाके हों या पुनर्वास बस्तियां या फिर स्लम क्षेत्र सभी में देखा गया है कि लोग सोशल डिस्टैंसिंग का ध्यान नहीं रख रहे। लोग गाड़ियां लेकर घूमने लग जाते हैं। पुनर्वास बस्तियों में लोग गलियों से बाहर निकल कर एक-दूसरे से मिल रहे हैं।
झुग्गी बस्तियों के बाहर बच्चे और युवा बिना मास्क लगाये बंद सड़क पर ही क्रिकेट खेलते नजर आ रहे हैं। जो लोग इस संक्रमण से मुक्त करने या इसके बारे में जागरूकता फैला रहे हैं, उन्हीं के साथ असहयोग इस समय महापाप के समान है। सभ्य समाज ऐसी मनमानियां बर्दाश्त नहीं कर सकता। कोरोना संकट में किसी व्यक्ति की निजता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। किसी को भी निजता के आधार पर इस बात की छूट नहीं मिल जाती कि वह दूसरों को बीमारी फैलाता रहे। दिल्ली की सरकार लाखों लोगों को भोजन खिला रही है, गरीबों को राशन दिया जा रहा है।
निजी स्कूलों की मनमानी पर आज सरकार ने रोक लगा दी है। लगातार जांच का दायरा बढ़ाया जा रहा है। दिल्ली सरकार के सराहनीय प्रयासों के बावजूद कुछ लोग कोरोना से लड़ाई को कमजोर बना रहे हैं, ऐसा जानबूझ कर किया जा रहा है या साजिशन। इस बारे में अलग-अलग राय हो सकती हैं क्योंकि कोरोना से लड़ाई में कहीं धर्म आड़े आ रहा है तो कहीं कट्टरपंथी विचारधारा। कोरोना का वायरस धर्म, जाति, भाषा, अमीर-गरीब में फर्क नहीं करता।
इस स्थिति में लोगों को समझना होगा कि वह दिलवालों की दिल्ली चाहते हैं या महामारी से ग्रस्त दिल्ली। उन्हें हरी-भरी दिल्ली चाहिये या सूरत जैैसा मंजर। अगर दिल्ली वाले नहीं संभले तो फिर महानगर में वीरानी छा सकती है। कोरोना से युद्ध में दिल्ली वालों को केन्द्र सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार को सहयोग देना होगा अन्यथा हालात नियंत्रण से बाहर हुए तो गंभीर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। संक्रमण का संदेह होने पर लोगों को खुद ही अस्पताल में जाकर चिकित्सा सहायता लेनी चाहिये और नियमों का पालन करना होगा।
-आदित्य नारायण चोपड़ा