‘खाली कंधे हैं इन पर कुछ भार चाहिए
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए
जेब में पैसा नहीं डिग्री लिए फिरता हूं
दिनोंदिन अपनी नज़रों से गिरता हूं
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए
राहुल रेड की कविता की पंक्तियां देश में बेरोजगारी की स्थिति को बयां कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र श्रम रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में भारत में 1.77 करोड़ युवा बेरोजगार थे जबकि 2017 में युवा बेरोजगारों की संख्या 1.80 करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। 2017-18 में बेरोजगारी की दर 3.4 फीसदी रहने का अनुमान है। भारत को इस समय युवाओं का देश माना जाता है यानी इसकी 65 फीसदी आबादी 35 से कम उम्र की है आैर वर्क फोर्स में वर्ष में एक करोड़ की वृद्धि हो रही है। भारत किस दिशा में बढ़ रहा है। सवाल यह भी है कि भारत विकास कर रहा है तो यह कैसा विकास है?
केन्द्र और राज्य सरकारों में 20 लाख से ज्यादा सरकारी पद खाली हैं। केन्द्र सरकार में 36.50 लाख स्वीकृत पद हैं जबकि 2017 में 4.20 लाख पद खाली हुए हैं। रेलवे में 2.4 लाख पद खाली पड़े हैं और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताते हैं कि रेलवे में नौकरियां आधी कर दी गई हैं। इसी तरह ईएसआईसी में डाक्टरों और नर्सों के 62 फीसदी पद रिक्त पड़े हुए हैं। राज्यों में पुलिस से लेकर आंगनवाड़ियों तक में लाखों पद खाली पड़े हैं।
हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजस्थान विधानसभा सचिवालय में चपरासी के 18 पदों की भर्ती के लिए 18 हजार युवाओं ने आवेदन किया। आवेदन देने वालों में 129 इंजीनियर, 23 वकील, एक सीए और 393 लोग पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लिए हुए थे। आवेदन करने वालों में एक भाजपा विधायक का बेटा भी था जो दसवीं पास था। भाग्य से चपरासी पद पर उसकी नियुक्ति हो गई। ऐसा दृश्य हम पहले भी कई बार देख चुके हैं। 2016 में उत्तर प्रदेश में करीब 3 हजार स्वीपर की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई तो एक लाख दस हजार अर्जियां मिली थीं, उनमें एम टेक, एमबीए जैसी डिग्रियां हासिल किए हुए युवा भी थे। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में भी ऐसा ही हाल देखने को मिल चुका है।
देश के नौजवानों का यह हाल क्यों है? बड़ी-बड़ी डिग्रियाें वाले भी सरकारी नौकरियों पर टूट पड़ते हैं। सरकारी नौकरियों का आकर्षण इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि लोग समझते हैं कि सरकारी नौकरी में काम कम और वेतन ज्यादा होता है। न कोई दबाव होता है और न ही नौकरी का कोई खतरा। प्राइवेट नौकरियों में काम बहुत ज्यादा होता है। अब ताे सरकारी नौकरियां भी अनुबंध के आधार पर दी जाने लगी हैं। शिक्षा का सीधा संबंध बेरोजगारी से है। देश में सरकारी और प्राइवेट शिक्षा संस्थानों के कालेज तो हैं लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है। उद्योग क्षेत्र कहता है कि उन्हें दक्ष कर्मचारी मिल ही नहीं रहे हैं। शिक्षा संस्थान केवल लाभ कमाने का व्यापार बन गए हैं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर किसी का ध्यान नहीं । कौन नहीं जानता कि प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्यालय की नाक के तले शिक्षा संस्थान घर बैठे इंजीनियर बनाते रहे हैं और फर्जी डिग्रियां बांटते रहे।
पत्राचार के माध्यम से जो भी डिग्री हासिल करनी हो मिल जाती है। युवाओं की अपनी कोई सोच नहीं। हर छात्र दूसरे छात्र को फालो करना चाहता है। अगर इंजीनियरिंग की तरफ आकर्षण बढ़ा तो इंजीनियरिंग में दाखिला लेने लगे। इंजीनियर बेकार होने लगे तो कामर्स और एमबीए की तरफ जाने लगे। डिग्रीधारकों की सेना तो तैयार हो गई लेकिन उन क्षेत्रों का विस्तार नहीं हुआ जहां इन्हें खपाया जा सके। औद्योगीकरण के साथ-साथ आटोमेशन का दौर भी आ गया। हाथों से किया जाने वाला काम मशीनें करने लगीं। बैंकिंग सैक्टर को ही देख लीजिए, सब कुछ डिजिटल हो चुका है। पहले भारत में हस्तकला का काम किया जाता था, जो विश्व प्रसिद्ध था, परन्तु औद्योगीकरण के चलते हस्तकला विलुप्त हो चुकी है और इसके कलाकार बेरोजगार हो चुके हैं। जब भी किसी देश की अर्थव्यवस्था में कोई परिवर्तन होता है तो उसके कारण भी बेरोजगारी उत्पन्न होती है। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं, विश्व की प्रतिष्ठित आई.टी. कम्पनियों के सीईओ भारतीय हैं। जनसंख्या वृद्धि, त्रुटिपूर्ण शिक्षा पद्धति, मौसमी बेरोजगारी के मुद्दे पर केन्द्र सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने ही होंगे। कौशल विकास कांसैप्ट को यथार्थ के धरातल पर आने में काफी समय लगेगा। सरकार को राष्ट्रीय रोजगार नीति लानी होगी अन्यथा बेरोजगार युवा हताश होगा तो उसकी हताशा असंतोष में बदल सकती है। यह भी देखना होगा कि भारत का विकास रोजगारहीन विकास तो नहीं? युवा पुकार रहा है-
टैलेंट की कमी नहीं भारत की सड़कों पर
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लड़कों पर
नौकरी की प्रक्रिया में सुधार चाहिए
बेरोजगार हूं साहब, मुझे रोजगार चाहिए।