लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

अवैध बंगलादेशियों का मुद्दा वर्षों की भूल सुधार की राह पर

NULL

पूर्वोत्तर भारत इस देश की भौगोलिक तथा सांस्कृतिक विविधता में एकत्व का एक अनुपम उदाहरण है। यह विविधता यहां के प्राकृतिक सौंदर्य एवं जनजीवन में सहज रूप से दृष्टिगोचर होती है। पूर्वोत्तर का यह भाग, जो 1947 तक असम ​प्रदेश था, कालांतर में 7 बहनों अर्थात् असम, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा तथा अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना गया। जिस प्रकार से उत्तर पश्चिम से अनेक जातियां हिन्दू कुश के मार्ग से भारत आईं तथा यहां के जनजीवन में समरस हो गईं, उसी तरह उत्तर पूर्व में ये जातियां असम की ओर से आईं तथा यहां अनेक जातियों का संगम हुआ। इनकी संख्या लगभग 260 है। ये जनजातियां भारत के अतीत रामायण, महाभारत, भागवत पुराण काल से यहां के जीवन में समरस हुईं। साथ ही विशिष्ट भौगोलिक रचना के कारण अपनी बोली, अपने परिवेश, अपने रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं का वैशिष्ट्य भी बनाए रखा।

पूर्वोत्तर का इतिहास सतत् संघर्ष तथा विजय का रहा है। यह 13वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक पठानों तथा मुगलों से संघर्ष करता रहा। 19वीं शताब्दी में यहां ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ। यह तभी से ही ईसाई कुचक्रों तथा 20वीं शताब्दी में चींटियों की भांति विशाल सैलाब के रूप में आए मुस्लिम घुसपैठियों का शिकार हो गया। ब्रिटिश शासन में ईसाई मिशनरियों तथा उनकी गतिविधियों को खुलकर प्रोत्साहन दिया गया तथा उसे एक ‘क्राउन कालोनी’ बनाने की कोशिशें की जाती रहीं। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस सरकार की वोट बैंक की राजनीति के चलते असम गैर-कानूनी रूप से बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का आरामगाह बन गया। विश्व के इतिहास में कहीं भी, कभी भी इतनी घुसपैठ नहीं हुई।

अपनी रहने की जगह पर हक जताने पर रोकने से अजीब बात कोई और नहीं होगी। अपनी ही जगह पर ताकत से नहीं बल्कि राजनीतिक जोड़तोड़ के कारण शत्रुतापूर्ण बाहरी लोगों की सिलसिलेवार घुसपैठ तो राष्ट्र की अवधारणा के विपरीत है। यह राष्ट्र के साथ एक छल था, धोखा था और पाप था और कांग्रेस ने यह पाप किया। कांग्रेस ने अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरणों द्वारा निर्धारण) या आईएमडीटी कानून को केवल असम में लागू किया। यह कानून राष्ट्रविरोधी कानून था। इस अधिनियम में राष्ट्रीयता सिद्ध करने की जिम्मेदारी अवैध आप्रवासी पर नहीं बल्कि शिकायत करने वाले पर डाली गई थी। 20 वर्ष तक यह कानून लागू रहा। असमिया पहचान तय करने के एकमात्र कानून के रूप में लागू रहने से पता चलता है कि धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम पर कांग्रेस पार्टी किस हद तक चली गई थी। यह कानून 2005 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त किया गया। तब तक बंगलादेशी कांग्रेस का वोट बैंक बन चुके थे।

बंगलादेशी घुसपैठ के चलते असम का जनसांख्यिकी स्वरूप खतरे में पड़ चुका है। इससे वृहद असमिया समाज के विचारों को भी जबरदस्त खतरा पैदा हुआ। राज्य के सात जिले मुस्लिम बहुल हो गए। बंगलादेशी घुसपैठियों की बाढ़ के मसले पर ब्रह्मपुत्र के शांत किनारे बार-बार खूनी संघर्ष देखते रहे। आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने 1979-1985 के बीच चले आंदोलन का नेतृत्व किया था जिस दौरान 18 फरवरी 1983 को नेल्ली में आजाद भारत का सबसे रक्तरंजित नरसंहार देखा था। असम बार-बार कत्लगाह बना। बंगलादेश से लगातार हो रही घुसपैठ और ऊंची जन्म दर की वजह से असम की मुस्लिम जनसंख्या 1951-2001 के बीच 6 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई जबकि इस दौरान हिन्दुओं की जनसंख्या में 7.2 फीसदी की गिरावट आई है। इस दौरान बांग्ला बोलने वाली जनसंख्या 6 फीसदी बढ़ी जबकि असमी बोलने वालों की जनसंख्या 9 फीसदी घटी। इसकी पुष्टि 2011 की जनगणना से भी हुई। 2001 से लेकर 2018 तक आते-आते इस अनुमान में काफी अंतर आ गया। 1951 में पहला नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस जारी किया गया था। 66 वर्षों बाद अब फिर असम का नागरिक रजिस्टर जारी किया गया है जिसमें 1.9 करोड़ लोगों को राज्य का वैध नागरिक माना गया है। इस साल के अंत तक पूरी लिस्ट आने का अनुमान है। पहली लिस्ट में 42.25 फीसदी लोगों के नाम न होने से कुछ इलाकों में तनाव है।

असम में अवैध बंगलादेशियों के मुद्दे पर कई हिंसक आंदोलन हुए। 80 के दशक में असम गण परिषद और राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ था। अवैध बंगलादेशियों की पहचान का मुद्दा बार-बार उछला तो मामला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नागरिक रजिस्टर जारी हुआ। रजिस्टर में शामिल नामों को लेकर विसंगतियां भी सामने आ रही हैं। पति का नाम है तो पत्नी का नहीं, अगर पति-पत्नी का नाम है तो बच्चों का नहीं। धुबरी के सांसद बदरुद्दीन अजमल समेत दो सांसदों और पांच विधायकों के नाम सूची में नहीं हैं। बदरुद्दीन अजमल मुस्लिमों के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। अवैध बंगलादेशियों की वापिसी का मुद्दा भाजपा के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान देश में रह रहे हिन्दुओं को नागरिकता देने का वायदा किया था लेकिन विवाद थमने के आसार कम ही हैं। पहली ही लिस्ट से साफ है कि असम में अवैध बंगलादेशियों की संख्या लाखों में है। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 51 साल में अगस्त, 2017 तक 29738 बंगलादेशियों को वापिस भेजा गया। अब सवाल यह है कि गैर-नागरिक सिद्ध होने वाले लाखों लोगों को वापिस भेजा जाएगा या नहीं? क्या बंगलादेश इन्हें स्वीकार करने को तैयार होगा?

असम में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है। उसके सामने भी जटिलताएं कुछ कम नहीं हैं। पड़ोसी देशों द्वारा भारत को घेरने की कोशिशें लगातार जारी हैं और यह तथ्य जगजाहिर है कि बंगलादेश और म्यांमार की जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी ताकतें करती रही हैं। अब यह फर्क करना जरूरी हो जाता है कि कौन अपना है और कौन पराया। आखिर इतनी बड़ी संख्या में अवैध नागरिकों का बोझ अकेले असम ही सहन क्यों करे। देखना है असम की सर्वानंद सोनोवाल की सरकार इस जटिल मुद्दे से कैसे निपटती है और केन्द्र सरकार क्या ठोस कदम उठाती है। वर्षों पहले की भूल सुधार की राह पर है इसलिए आक्रामक कदम उठाने ही होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।