लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

महाभियोग की राजनीतिक ड्रामेबाजी!

NULL

देश के इतिहास में अगर पहली बार चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की आवाज बुलंद हुई है तो इससे विपक्षी दल की किसी भी हद तक जा गिरने की सियासत ही बेनकाब हुई है। जो सिस्टम महाभियोग को लेकर बना हुआ है और जिस तरह से कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों के 64 सांसदों के हस्ताक्षर वाला एक नोटिस उपराष्ट्रपति को सौंपा गया है वह अदालत को ब्लैकमेल करने की एक सियासत है।

मामला यह है कि अगर देश के सीजेआई के खिलाफ मुकद्दमा अर्थात महाभियोग चलाना चाहता है तो इसके लिए कोई मजबूत आधार होना चाहिए। आप सिर्फ अपनी ​सियासत के लिए देश के सीजेआई के आचरण पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो इस देश में इंसाफ देने की प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। दो दिन पहले एक बड़े कांग्रेसी नेता ने बातचीत में मुझसे कहा कि इस देश में हंगामा खड़ा करना क्या बुरी बात है। जब सरकार यही कर रही है तो हंगामा करना हमें भी आता है। वह नेेता सीजेआई के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिए जाने की बात कर रहे थे।

मैंने जिज्ञासावश कहा कि जहां तक महाभियोग चलाने की प्रक्रिया है उसके लिए क्या लोकसभा आैर राज्यसभा में पर्याप्त बहुमत मिल जाएगा तो उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि यह संभव नहीं है मगर सियासत भी तो करनी है। उनकी इस बात को सुनकर मैं मन ही मन हंसा लेकिन विपक्ष की घटिया सियासतबाजी को लेकर हैरान भी हुआ। अब सवाल खड़ा होता है कि दूसरों पर आरोप लगाने वाला खुद सत्यवादी हरिश्चंद्र कैसे बन सकता है।

जिस कांग्रेस और उससे पहले अन्य गैर-भाजपा सरकारों के कई कर्णधारों पर भ्रष्टाचार के हजारों आरोप लगे तो जिन लोगों ने उस समय आरोप लगाए थे उनकी बात को यह कहकर दरकिनार कर दिया गया कि विपक्ष का काम तो चीखने-चिल्लाने के साथ-साथ हंगामे के लिए हंगामा करना है। अब आज की तारीख में ​इसी विपक्ष के बारे में हम क्या टिप्पणी करें। जहां तक हमें महाभियोग के नोटिस संबंधी नियमों के बारे में पता है तो मैं इतना जानता हूं कि आप महाभियोग की प्रक्रिया में सीजेआई को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव नोटिस देने के बाद ला तो सकते हैं लेकिन इसके लिए लोकसभा में 100 और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के लि​खित प्रस्ताव की जरूरत होती है।

अब देश की जनता खुद फैसला करे कि क्या 64 सांसदों के हस्ताक्षर से अगर महज एक नोटिस भेजकर कांग्रेस और विपक्षी दल अगर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं तो नकारात्मकता की उनकी सियासत बेनकाब हो गई है। जब देश में छोटी या बड़ी अदालत में किसी नेता के खिलाफ कोई सजा का मामला आता है और उसे सलाखों के पीछे भेज दिया जाता है तो न्यायाधीशों को भगवान और इंसाफ के देवता की उपाधि दी जाती है और अब देश के सीजेआई दीपक मिश्रा पर कांग्रेस और विपक्षी दलों ने महज झूठे आरोप लगाकर जिस तरह से यह राजनीतिक ड्रामा शुरू किया है उसे लेकर उनकी एक घटिया सियासत करने का आचरण और चरित्र सब के सामने उजागर हो गया है।

कांग्रेस अपने गिरेबां में झांक कर देखे और बताए कि कितने केस उसके खिलाफ चल रहे हैं। जिस राजद सुप्रीमो लालू यादव को फ्लोर मैनेजमैंट की व्यवस्था के तहत कांग्रेस अनेक घोटालों में उन्हें सिर्फ इस​िलए बचाती रही कि हमें समर्थन मिल रहा है तो अब यही लालू यादव अब सलाखों के पीछे हैं तो यह हमारी न्यायिक व्यवस्था का ही कमाल है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब यही विपक्षी जज लोया को लेकर चीफ ​जस्टिस पर आरोप लगा रहे हैं, केस की सुनवाई में बदलाव के आरोप लग रहे हैं, भूमि अधिग्रहण के आरोप लग रहे हैं,

झूठे ए​फिडेविट के आरोप लग रहे हैं तो हमारा सवाल यह है कि क्या एक जज इस हद तक गिर सकता है? अगर नहीं तो जवाब यह है कि आरोप लगाने वाले खुद किसी भी हद तक जा गिरते हैं। यह देश के सीजेआई की अदालत का मामला है, किसी पंचायत या सर्वखाप पंचायत में एक विधवा की चीखो-पुकार का मामला नहीं है। इस मामले में हम केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली के उस बयान की प्रशंसा करते हैं जिसमें उन्होंने कांग्रेस की कोर्ट को ब्लैकमेलिंग करने की कोशिश करार दिया है।

उल्लेखनीय है कि श्री जेतली ने कहा था कि कांग्रेस के​ इस किस्म के आरोप न्यायपालिका को धमकाने की रणनीति है और यह देश की अदालतों की आजादी के लिए खतरा है। महज एक नोटिस देकर कांग्रेस ने 6 आैर विपक्षी दलों के समर्थन का दावा तो जरूर किया है परन्तु हकीकत यह है कि जो तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक विपक्षी एकता की बात करती हैं वे कांग्रेस की इस चाल में शामिल नहीं हुईं। अब अगर उपराष्ट्रपति यह नोटिस स्वीकार कर लेते हैं तो आने वाली प्रक्रिया इतनी जटिल है कि लोकसभा और राज्यसभा में यही विपक्ष समर्थन नहीं जुटा पाएगा। ऐसी सोशल साइट्स पर अनेक संविधान विशेषज्ञों की राय को लोगों ने खूब शेयर किया है और इस मामले में इस महाभियोग नो​टिस को कांग्रेस की अपने ही जाल में फंसने वाली घटिया सियासत करार दिया है।

हमारी मुख्य खबरों के लिए यहां क्लिक करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two × two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।