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शिक्षा संरचना में सुधार बड़ी चुनौती

भारत इस दशक में पांच ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी हासिल करने की ओर अग्रसर है। लेकिन चुुनौतियां भी बहुत हैं। एक प्रमुख चुनौती शिक्षा संरचना में सुधार की है।

भारत इस दशक में पांच ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी हासिल करने की ओर अग्रसर है। लेकिन चुुनौतियां भी बहुत हैं। एक प्रमुख चुनौती शिक्षा संरचना में सुधार की है। स्कूल और  कालेज अब पूरी तरह खुल चुके हैं लेकिन  शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र कोरोना काल में पढ़ाई छोड़ने वालों की बड़ी संख्या, आनलाइन कक्षाओं में कम उपस्थिति और सीखने के उद्देश्यों को पूरा न करने और मानसिक स्वास्थ्य तथा कम पोषण जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है। दो वर्ष पहले यानी 2020 में केन्द्र सरकार ने नई शिक्षा नीति लाने के साथ बड़ी पहल शुरू कर दी थी लेकिन महामारी के दो वर्ष इसे लागू करने में बड़ी बाधा बन गए। देश ने आजादी से लेकर अब शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं।
भारतीय संविधान के नीति निदेेशक तत्वों में कहा गया है कि 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए  अनिवार्य एवं निःशुल्क  शिक्षा की व्यवस्था की जाए। 1948 में डा. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन हुआ था तभी से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण होना भी शुरू हुआ था। कोठारी आयोग की 1964-1966 में सिफारिशों पर आधारित 1968 में पहली बार महत्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में पारित हुआ था। अगस्त 1985 शिक्षा की चुनौती नामक एक दस्तावेज तैयार किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न वर्गों बौद्धिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यावसायिक, प्रशासकीय आदि ने अपनी शिक्षा  संबंधी टिप्पणियां दीं और भारत सरकार ने शिक्षा नीति 1986 का प्रारूप तैयार किया। इस नीति की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि  इसमें सारे देश के लिए एक समान शैक्षिक ढांचे को स्वीकार ​किया था। इसमें समस्त उच्च शिक्षा (कानूनी एवं चिकित्सकीय शिक्षा को छोड़कर) के लिए  एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग का गठन करने का प्रावधान है। संगीत, खेल योग आदि को सहायक पाठ्यक्रम या अतिरिक्त पाठ्यक्रम के बजाय मुख्य पाठ्यक्रम में ही जोड़ा गया है। इस नीति में शिक्षकों  के प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया गया है। नई नीति कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। छठीं कक्षा में व्यावसायिक प्रशिक्षण इंटर्नशिप शुरू कर दी जाएगी। पांचवीं कक्षा तक शिक्षा मातृभाषा या फिर  क्षेत्रीय भाषा में प्रदान की जाएगी। इस नीति का उद्देश्य शिक्षा को रोजगार से जोड़ना है। 
शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। जो व्यक्ति बचपन में पढ़ता है तो उसी से उसकी विचारधारा का निर्माण होता है और आगे जाकर वही उसका व्यक्तित्व बन जाता है। बेहतर तरीके से सीखना और बेहतर तरीके से जीना ही शिक्षा  का उद्देश्य होना चाहिए। लेकिन अब तक जो हमने देखा वह काफी दुखद है। बच्चों को अंक उगलने वाला एटीएम बना दिया गया है। 90 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल  करना ही लक्ष्य रह गया है। बच्चे दबाव में रहते हैं और अनेक तो आत्महत्या कर लेते हैं। बच्चे सत्य की जगह मिथ्या  तथ्यों को आत्मसात करने लगे हैं। 
आज 21वीं सदी में जब पूरी दुनिया विज्ञान और  तकनीक के चरम को छू रही है। उसके कदमों से कदम मिलाकर चलने के ​लिए केन्द्र सरकार यह नई शिक्षा नीति लेकर आई है। अगर इसका क्रियान्वयन सफल रहता है तो यह नई प्रणाली भारत को दुनिया के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी। इस शिक्षा नीति के साथ सरकार शिक्षा का स्वदेशीकरण करने की कोशिश में है। सरकार का मानना है कि ब्रिटिश अफसर मैकाले ने भारत को गुलाम बनाने के लिए ​जो शिक्षा पद्धति यहां के लोगों पर थोपी थी, जिससे देश में काले अंग्रेज पैदा होने लगे हैं, उससे देशवासियों को वापस निकालने के लिए शिक्षा का स्वदेशीकरण बेहद जरूरी है। साथ ही 1986 के बाद देश की शिक्षा नीति में कोई बदलाव भी नहीं हुआ था, जिससे आधुनिक भारत पिछड़ता नजर आ रहा था। सरकार का मानना है कि यह नई शिक्षा नीति आधुनिक भारत को रफ्तार देने का काम करेगी।
इस समय कौशल विकास की बहुत जरूरत है। कौशल आधारित शिक्षा के पाठ्यक्रम बनाए जाने चाहिएं ताकि स्कूल छोड़ने के समय तक उनके पास रुचि के मुताबिक हुनर हो। उन्हें गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण भी दिया  जाना चाहिए। अगर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दी गई तो  फिर कौशल विकास का लक्ष्य ही अधूरा रह जाएगा। स्कूूलों को शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी आधारित उपकरणों को प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि  यहीं उनका भविष्य  निहित है। छात्रों को उनकी शिक्षा के शुरूआती वर्षों से ही प्रौद्योगिकी के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि वे जीवन में बढ़ने के साथ-साथ इसका उपयोग करने में सहज हों। स्मार्ट स्कूल की अवधारणा को प्रचारित करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से सरकारी स्वामित्व वाले स्कूलों और ग्रामीण क्षेत्रों में। अमीर हो या गरीब हर छात्र को आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। बेशक इसके​ लिए भारी  निवेश की आवश्यकता होगी, लेकिन एक स्मार्ट राष्ट्र के निर्माण के लिए भुगतान करने के लिए यह एक छोटी सी कीमत है। सीखने के दौरान हैंडहेल्ड उपकरणों के उपयोग को किसी भी समय, कहीं भी सीखने के हिस्से के रूप में शामिल करने की आवश्यकता है।
वर्तमान तनाव भरे समय में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए भी काउं​सलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए। शिक्षा प्रणाली को इस तरह बनाया जाना जरूरी है ताकि बच्चे बड़े होकर उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप काम कर सकें। इसके लिए अभिभावकों और शिक्षकों को बड़ी भूमिका निभानी  होगी। नई शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन से ही देश की तस्वीर बदलेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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