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इमरानः विदाई का वक्त तय

पड़ोसी देश पाकिस्तान में क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बन कर प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए इमरान खान की कुर्सी पर संकट गहरा गया है।

पड़ोसी देश पाकिस्तान में क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बन कर प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए इमरान खान की कुर्सी पर संकट गहरा गया है। यद्यपि उन्होंने इस्लामाबाद के परेड ग्राउंड में रैली कर अपने समर्थकों की भीड़ जुटाकर शक्ति प्रदर्शन कर दिया है। इस रैली में इमरान खान कभी आक्रोश में दिखे तो कभी भावुक। कभी असहाय तो कभी घायल जानवर की तरह दहाड़ते दिखाई दिये। य​द्यपि उन्होंने कहा कि उनकी सरकार जाती है तो जाए लेकिन वह झुकेंगे नहीं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष विदेशी पैसे से उनके सांसदों की खरीद-फरोख्त कर रहा है लेकिन उनकी सरकार पांच वर्ष तक चलेगी। इमरान खान ने इस रैली का नाम ‘मारूफ’ रखा था जिसका अ​र्थ होता है ‘अच्छाई के साथ जाओ’। रैली में ​जु​ल्फिकार   अली भुट्टो को याद करते हुए भुट्टो के दामाद आसफ अली जरदारी और  नवासे बिलावल भुट्टो और  नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज और विपक्षी नेताओं पर कड़े प्रहार किये। उन्होंने साढ़े तीन साल के शासन की उपलब्धियों का जिक्र  करते हुए बहुत सी बातें गिनाई। इमरान ने रैली में खूब नौटंकी की।
शब्दों से खेलकर, हम शब्दों को बेचते हैं, अनुभूतियाें का सस्ता बाजार देकर खुश हैं।
गद्दी ने भी आपको हर रोज आंकड़ों में, उपलब्धियों का झूठा संसार देकर खुश हैं।
इमरान शब्दों से खेलकर बहुत खुश होंगे लेकिन यह साफ  है कि अब उनके पास सत्ता में बने रहने के लिए संख्या बल नहीं है। यह सुनकर बड़ी हैरानी हुई कि वह पाकिस्तान की विदेश नीति को भारत की तरह स्वतंत्र बनाना चाहते हैं। इमरान ने कुछ दिन पहले भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की सराहना भी की थी। इमरान शासन की उपलब्धियां पाक अवाम के गले नहीं उतर रही। विपक्ष द्वारा इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में चर्चा शुरू हो गई है। अब अहम सवाल यही है कि आ​खिर इस सियासी घमासान में पाक सेना कहीं खड़ी है? 
पाकिस्तान की सेना के ​प्रवक्ता का संतुलित बयान आया था कि उनकी संस्था तटस्थ है और उसे राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए लेकिन यह कहना इतना आसान नहीं है। पाकिस्तान का इतिहास  गवाह है कि वहां सेना ने लोकतंत्र को लगातार अपने बूटों के तले रौंदा है। कोई भी प्रधानमंत्री आज तक वहां अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। इमरान खान खुद सेना की मदद से ही सत्ता में आए थे। अब यह कहा जा रहा है कि विपक्षी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की सेना से डील हो चुकी है। विपक्ष जो पिछले कई वर्षों से एकजुट नहीं हो पा रहा था अचानक एकजुट हो गया। अपने पिता की तरह एंटी एस्टैब्लिेशमैंट समझी जाने वाली मरियम नवाज इमरान खान के खिलाफ आंदोलन में आगे आ गई और शाहनवाज शरीफ फिर फ्रंट में अा गए। दूसरी तरफ बिलावल भुट्टो और आसिफ अली जरदारी ने मोर्चा  संभाल लिया आैर तीसरी ताकत के तौर पर उभरे मौलाना फजलुर रहमान की जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम शुरू से ही इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के इच्छुक हैं।
इमरान खान का संकट इससे भी बढ़ गया है कि उनकी पार्टी के ही सांसद नाराज हैं और उनके सलाहकार ब्लूचिस्तान के बुजुर्ग नेता शाहजैन बुक्ति ने भी उनका साथ छोड़कर विपक्ष के साथ हाथ मिला लिया है। पिछले वर्ष अक्तूबर-नवम्बर में आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर इमरान सरकार और सेना में मतभेद खुलकर सामने आ गए थे तब से ही अटकलों का बाजार गर्म हो गया था। इमरान खान शासन में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। पाकिस्तान कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। राजनीतिक उथल-पुथल के बीच नौकरशाही बेलगाम हो चुकी है और वह मंत्रियों के फैसले भी लागू नहीं कर पा रहे। नौकरशाही वेट एंड वॉच की नी​ति अपना रही है। सारी दुनिया जानती है कि इमरान खान एल्यूमीनियम का कटोरा लेकर कई देशों के सामने भीख मांग चुके हैं लेकिन उन्हें न तो चीन ने और न ही अरब देशों ने मुंह लगाया। इमरान सरकार की सत्ता से विदाई की तारीख तय है। पाकिस्तान में लंबे अरसे तक सैनिक शासन ने सेना को सरकार के समूचे तंत्र में पैठ बनाने का मौका दिया है।
राजनीतिक दलों, न्यायपालिका नौकरशाही और मीडिया सभी वर्गों में सेना के समर्थक मौजूद हैं। इसलिए  सेना के साथ मतभेद रखने वाले लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए राजनीतिक नेता को सत्ता से बेदखल करने के लिए अब किसी तरह की फौजी बगावत करने की जरूरत नहीं रह गई। दरअसल अगर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपना कार्यकाल पूरा कर ​ लिया होतो तो ऐसा करने वाले वह प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री होते। वह लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित  होने की ​स्थिति में थे लेकिन 28 जुलाई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवाज शरीफ को अयोग्य ठहरा दिया गया तब भी पाकिस्तान को “आभासी सरकार” (यानी डीप स्टेट) ही चला रही थी और इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी आभासी सरकार चल रही है। कौन नहीं जानता कि मुशर्रफ हो या नवाज शरीफ या फिर सत्ता से जुड़े सैन्य प्रतिष्ठानों और  आतंकवादी संगठन के नेताओं ने देश-विदेश में अकूत संपत्तियां बनाई हैं। इमरान खान का सत्ता से बेदखल होना कोई नई बात नहीं होगी लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान खुद को एक बार फिर राजनीतिक और आ​र्थिक  अनिश्चितताओं  में  उलझा हुआ पाएगा। पाकिस्तान का भविष्य का रास्ता किधर जाएगा एक बार फिर सेना ही तय करेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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