एक जमाने में क्रिकेट के खेल के तेज गेन्दबाज रहे पाकिस्तान के वजीरेआजम इमरान खान कश्मीर के मुद्दे पर उसी तरह ‘हौलिया’ रहे हैं जिस तरह क्रिकेट के मैदान में वह अपनी गेन्दों पर बल्लेबाज द्वारा लगातार चौके और छक्के लगाये जाने पर अपना ‘दम’ तोड़ देते थे और ‘फाइन लाइन’ तक को भूल जाते थे मगर सियासत कोई खेल का मैदान नहीं है कि वह भारत जैसे मुल्क के खिलाफ बौखला कर अपनी तेज रफ्तारी में पैंतरे बदल-बदल कर गेन्दों की तासीर में तब्दीली ला सकें। अपने कब्जे वाले कश्मीर के मुजफ्फराबाद शहर में एक जलसे को खिताब करते हुए जिस तरह उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मामले को हिन्दू-मुसलमान की फिरकापरस्ती में पेश करने की नापाक कोशिश की है उससे पूरी दुनिया के इस्लामी मुल्क ही इत्तेफाक नहीं रख सकते क्योंकि भारत दुनिया का ऐसा मुल्क है जिसमें मुसलमान पाकिस्तान से भी भारी तादाद में रहते हैं और अपने दीन के मुहाफिज हैं।
इमरान खान इस गलतफहमी का शिकार हैं कि कश्मीरी मुसलमानों का पाकिस्तान के इस्लामी निजाम से कोई राब्ता है? उन्हें शायद यह मालूम नहीं है कि कश्मीरी मुसलमानों का भारत के हिन्दुओं से राब्ता जितनी आसानी और आराम से होता है उतना कट्टरपंथी इस्लामी समाज से नहीं होता। इसकी वजह कश्मीर की वह नायाब संस्कृति है जो ‘रब्बाब’ के सुरों में हिन्दोस्तानी ‘तरबियत’ और ‘तबीयत’ को अपना ईमान बनाकर हर सुनने वाले को मदहोश कर देती है। इमरान खान जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाये जाने के बाद जिस तरह बिफर कर मजहबी जुनून में धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर को हिन्दू-मुसलमान के चश्मे से इस्लामी दुनिया को दिखाना चाहते हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि बेइन्तेहा खूबसूरत वादी में बने हिन्दुओं के तीर्थ स्थलों के रखरखाव का काम कश्मीरी मुसलमान ही सैकड़ों साल से करते आ रहे हैं जो हिन्दू यात्रियों की धर्म आराधना की सफलता में फख्र महसूस करते हैं।
बेशर्मी की हद इस हकीकत से भी साबित होती है कि सदियों से हिन्दू राजाओं की छत्रछाया में रहने वाले कश्मीरियों ने कभी भी मजहबी रवायतों को अपने सामाजिक भाईचारे के बीच में नहीं आने दिया। यह बात अलग है कि पिछले तीस सालों से पाकिस्तान ने दहशतगर्दी फैलाकर जिस तरह कश्मीर वादी में मजहबी इस्लामी जेहादी जुनून छेड़ा उससे कश्मीरियत के ही दुश्मन कुछ ऐसे ‘मीर जाफर’ पैदा हुए जिन्होंने हिन्दू व सिखों की कश्मीरियत को अलग तराजू में तोलने की हिमाकत की और उन्हें घाटी से बाहर करने तक का ऐसा ‘गैर कश्मीरी’ काम किया जो इस्लाम के नुक्ता-ए-नजर से नाजायज था। इमरान खान आज फिर से वही काम कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान की कश्मीर को मजहबी खूनी घाटी में बदलने की सारी तदबीरें नाकाम हो चुकी हैं।
कश्मीर की सियासत में फैले लोग ही यह मांग किया करते थे कि जम्मू-कश्मीर की समस्या मूलतः राजनैतिक समस्या है और इसका हल भी इसी तर्ज पर निकाला जाना चाहिए। सत्तर साल बाद अगर यह राजनैतिक हल धारा 370 को खत्म करके निकाला गया है तो पाकिस्तान को क्यों दर्द महसूस हो रहा है और वह इसे मजहबी चश्में से देखने की जुर्रत कर रहा है। इमरान खान का मुजफ्फराबाद में यह कहना कि धारा 370 को हटाने से घाटी में उग्रवाद अर्थात आतंकवाद बढे़गा और दुनिया के एक अरब 25 करोड़ मुसलमानों की आबादी यह सब देख रही है, बताता है कि पाकिस्तान उस रास्ते पर जाना चाहता है जहां जाने की अल्लाह ने भी मनाही की हुई है।
हर मुसलमान का अपने मुल्क से प्यार करना फर्ज है और मादरेवतन पर फिदा होना उसका उसूल है। यह बात जमीयत-उल-उलेमा-ए-हिन्द के सदर मौलाना मदनी ने पुरजोर तरीके से कही है इसलिए हिन्दोस्तान के मुसलमानों को बेवकूफ बनाने की हर तजवीज खारिज होगी और डंके की चोट पर पूरी दुनिया में पैगाम जायेगा कि भारत के अन्दरूनी मामलों में दखल देने का हक किसी भी मुस्लिम देश को नहीं है। पाकिस्तान के वजीरेआजम इमरान खान शायद इस बात पर फूल रहे हैं कि पिछले जून महीने में सऊदी अरब के मुकद्दस शहर मक्का में इस्लामी देशों के संगठन ‘ओआईसी’ ने अपने सम्मेलन में जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दूत ‘यूसुफ अल्दोबेह’ को मुकर्रर किया था मगर हकीकत में 57 मुस्लिम देशों के इस संगठन ने अपने 14वें सम्मेलन की समाप्ति पर जो संयुक्त प्रपत्र जारी किया था वह पाकिस्तान का ही प्रस्ताव था और इस सम्मेलन के नियमों व परंपराओं के अनुसार किसी भी देश द्वारा रखे गये प्रस्ताव का अमूमन कोई दूसरा देश विरोध नहीं करता है।
इस रवायत का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर मसले को इस्लामी संगठन में उठा दिया था परन्तु उसी वक्त भारत ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए कह दिया था कि इस्लामी देशों के संगठन द्वारा भारत के अदरूनी मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं बनता है जबकि इससे तीन महीने पहले इसी संगठन के देशों की मन्त्रिस्तरीय बैठक अबुधाबी में हुई थी और उसमें भारत की प्रतिनिधि के तौर पर तत्कालीन विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज बतौर पर्यवेक्षक के बुलाई गई थीं और इस बैठक में सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात जैसे मुस्लिम देशों ने कश्मीर पर भारत के रुख की प्रशंसा की थी जबकि यह बैठक 1 मार्च को पुलवामा हमला व बालाकोट कार्रवाई के बाद हुई थी।
दरअसल इस्लामी देशों के बीच ही सऊदी अरब व ईरान के बीच तनाव को लेकर जिस तरह का वातावरण बना हुआ है उसे देखते हुए ही जून महीने में इस्लामी संगठन में पाकिस्तान के प्रस्ताव का विरोध इस वजह से नहीं हुआ था क्याेंकि खाड़ी के मुस्लिम देश पाकिस्तानी फौज की मदद लेते रहते हैं परन्तु यह भी सच है कि अधिसंख्य मुस्लिम देश कश्मीर से धारा 370 हटाने को भारत का अन्दरूनी मसला ही मानते हैं। अतः इमरान खान को मालूम होना चाहिए कि जून और अगस्त महीनों में 60 दिनों का फासला होता है और 5 अगस्त को धारा 370 हटाने के बाद हालात पूरी तरह बदल चुके हैं।
यही वजह है कि पाकिस्तान को दुनिया भर में चीन के अलावा कोई दूसरा खैरख्वाह नहीं मिल रहा है। यहां तक कि कोई मुस्लिम देश भी नहीं। इसीलिए वह अब आखिरी अख्तियार मजहब का चला रहे हैं मगर पूरी अरब दुनिया भी जानती है कि भारत के साथ उसके सम्बन्ध मजहब के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक व सांस्कृतिक आधार पर हैं जिन्हें पाकिस्तान जैसे दहशतगर्दी फैलाने वाले मुल्क के लिए कमजोर नहीं किया जा सकता।