पाकिस्तान की सेना ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर शिकंजा कस दिया है। सेना के इशारे पर ही पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने ऐलान कर दिया है कि इमरान के खिलाफ 9 मई की घटनाओं में संलिप्तता को लेकर सैन्य अदालत में मुकद्दमा चलाया जा सकता है। 9 मई को उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा सैन्य और सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमला किया गया था। इससे पहले पाकिस्तान के गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह ऐसा ही संकेत दे चुके हैं। इमरान खान के भविष्य को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर उन पर सैन्य अदालत में मुकद्दमा चलता है तो उन्हें फांसी या उम्र कैद की सजा हो सकती है।
इमरान खान और सेना के बीच विवाद की शुरुआत तो उनके प्रधानमंत्री पद पर रहते ही हो गई थी। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि दोनों के बीच समझौते की संभावनाएं नजर नहीं आ रही। कल को सऊदी और संयुक्त अरब अमीरात या कुछ अन्य देशों के दबाव में कोई भीतर खाते समझौता हो जाए तो कुछ कहा नहीं जा सकता। पाकिस्तान में चल रहे सियासी घटनाक्रम का अंत क्या होगा यह भी भविष्य के गर्भ में है। विपक्ष इस समय सैन्य प्रतिष्ठानों के खिलाफ खड़ा है और सरकार न्यायपालिका से उलझी हुई है। सेना फिलहाल अपना वर्चस्व साबित करने के लिए सरकार का साथ दे रही है और अंत किसी को भी नहीं पता। पाकिस्तान सेना फिलहाल माइनस इमरान फार्मूले पर काम कर रही है। इमरान की पार्टी के नेताओं की धरपकड़ की जा रही है। एक-एक करके इमरान की पार्टी के नेता उनका साथ छोड़ रहे हैं। जो इमरान का साथ छोड़ रहे हैं उनको जेल से बाहर कर दिया जाता है और जो इमरान के साथ खड़े हैं उन्हें जेलों में डाला जा रहा है। इमरान का साथ छोड़ने वालों में उनके खासमखास फवाद चौधरी भी शामिल हैं और कहा जा रहा है कि शाह महमूद कुरैशी जो इस समय जेल में बंद है उन पर भी इमरान की पार्टी छोड़ देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
पाकिस्तान सेना की योजना इमरान को पूरी तरह से अलग कर देने की है। इसके अलावा इमरान खान को भी इस बात की आशंका है कि उनकी जिन्दगी और मौत का फैसला भी सेना ही करेगी। अगर इतिहास को देखा जाए तो अतीत में पाकिस्तान में राजनेताओं और सेना के बीच लड़ाई राजनीतिक शासकों को सत्ता से वंचित करने का कारण बनी है। पाकि स्तान में हमेशा ऐसी लड़ाई में जीत सेना को ही मिली है। पाकिस्तान की स्थापना के ठीक 11 साल बाद सन् 1958 में देश का पहला मार्शल लाॅ लगा दिया गया था। तब अयूब खान ने सिकंदर मिर्जा को राष्ट्रपति पद से हटा था। पाकिस्तान के निर्वाचित प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने संविधान निर्माण के बारे में एक बार यह दावा किया था कि वह इस देश में मार्शल लॉ को हमेशा के लिए दफन कर देंगे। यह समय की कितनी बड़ी विडंबना है कि मार्शल लॉ ही की सरकार ने उन्हें फांसी दी और दफन किया।
विश्लेषकों के अनुसार पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में इस्टैब्लिशमेंट और राजनीतिक शासकों के बीच विवाद का नतीजा कभी भी राजनीतिक शासकों के लिए अच्छा नहीं रहा। फिर वो जुल्फिकार अली भुट्टो हों या जुनेजो, मियां नवाज शरीफ हों या बेनजीर और यूसुफ रजा गिलानी हों या फिर इमरान खान… जुल्फिकार अली भुट्टो फौज और प्रशासन में सुधारों के इच्छुक थे और लोकतांत्रिक वर्चस्व को स्थापित करना चाहते थे।
इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। पाकिस्तान के इतिहास में कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका उसका सबसे बड़ा कारण सेना ही है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ इस समय सेना की कठपुतली की तरह नाच रहे हैं। पाकिस्तान में चारों तरफ हताशा है। लोग उस जगह पर आ चुके हैं जहां वे अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को सहन कर रहे हैं। पाकिस्तान के आर्थिक संकट ने उनका जीना दुश्वार कर दिया है। महंगाई आसमान छू रही है। लोगों को खाने-पीने की वस्तुएं भी नहीं मिल रही। पाकिस्तान कर्ज में बुरी तरह से डूब चुका है और लोगों के सब्र का पैमाना टूटने काे है। पाकिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति और लोकतंत्र के भविष्य को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता है। ऐसे स्वर उठने लगे हैं कि सैन्य अदालतों में इमरान खान या उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर मुकद्दमा चलाना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ है। ऐसे भी स्वर उठ रहे हैं कि वैश्विक ताकतों को पाकिस्तान में लोकतांत्रित सुधार के लिए दबाव डालना चाहिए। पड़ोसी देश होने के नाते पाकिस्तान में उथल-पुथल को लेकर भारत की चिंताएं भी स्वाभाविक हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com