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कट्टरपंथियों के आगे झुके इमरान

नफरत की बुनियाद पर बने पाकिस्तान के हुक्मरानों को भारत के खिलाफ होने वाला कोई भी विरोध हिला देता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी भारत से कपास और चीनी आयात के फैसले से 24 घंटे में पलट गए।

नफरत की बुनियाद पर बने पाकिस्तान के हुक्मरानों को भारत के खिलाफ होने वाला कोई भी विरोध हिला देता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी भारत से कपास और चीनी आयात के फैसले से 24 घंटे में पलट गए। पाकिस्तान के कपड़ा उद्योग की खराब हालात को सुधारने की मंशा से इमरान ने ही भारत से कपास और चीनी मंगाना चाहा लेकिन कट्टरपंथियों ने इसकी भनक लगते विरोध शुरू कर दिया। इससे घबरा कर इमरान ने भारत से व्यापार की इच्छा को दफन कर दिया और अपने कदम वापस खींच लिए।
5 अगस्त, 2019 में भारत ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला किया  था तब इमरान सरकार ने भारत से कूटनीतिक और कारोबारी रिश्तों को समाप्त करने का फैसला किया था। पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए भारत ने भी पाकिस्तान से होने वाले आयात पर 200 फीसदी का आयात कर लगा दिया था। यह स्पष्ट हो गया था कि इस बोझ के बाद कोई पाकिस्तानी उत्पाद भारतीय बाजार में पहुंच नहीं सकेगा। 2020 में भारत-पाक संबंध काफी खराब रहे। जब पाकिस्तान ने भारतीय उच्चायुक्त को इस्लामाबाद से भारत भेजने और पाकिस्तान उच्चायुक्त को दिल्ली से वापिस बुलाने का फैसला लिया तो साथ ही समझौता एक्सप्रैस ट्रेन सेवा को भी बंद करने का फैसला किया। 70 वर्षों से दोनों मुल्कों के बीच तनाव कई बार चरम पर पहुंचा। इसका परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान को इसका ज्यादा नुक्सान हुआ। भारत से मधुर संबंधों के चलते जो उसे फायदा होना था, वह नहीं हुआ। जो विकास की गति वह हासिल कर सकता था, वह हासिल नहीं कर सका। गौरतलब है कि भारत ने पाकिस्तान को 1996 में मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया था ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार की गति तेज हो लेकिन पाकिस्तान ने भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा आज तक नहीं दिया । अति राष्ट्रवादी रवैया अपना कर पाकिस्तान ने अपना काफी नुक्सान कराया यानि अपने ही पांवों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली। द्विपक्षीय व्यापार खत्म होने की स्थिति में नुक्सान किसी एक पक्ष का नहीं होता बल्कि दोनों पक्षों का होता है, यह अलग बात है कि पाकिस्तान को ज्यादा संकट का सामना करना पड़ा है। 
जब भी दो देशों में व्यापार बढ़ता है तो लाभ का हिस्सा जनता, व्यापारी और सरकार सभी को जाता है। पाकिस्तान और भारत के बीच होने वाले व्यापार में व्यापार संतुलन पाकिस्तान की बजाय भारत के पक्ष में रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2.5 अरब डालर के करीब होता रहा है, जिसमे भारतीय ​निर्यात की भागीदारी 75 प्रतिशत है, जबकि पाकिस्तान आयात की भागीदारी 25 प्रतिशत के करीब है। भारत पाकिस्तान को कपास, ऑर्गेनिक कैमिकल, प्लास्टिक, मशीनरी आदि निर्यात करता रहा है, जबकि पाकिस्तान भारत को सीमेंट, पहाड़ी नमक, ड्राईफूट आदि का​ निर्यात करता रहा है। 
भारत को होने वाला निर्यात पुलवामा हमले के बाद से प्रभावित हो चुका था। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान से टूट कर अलग देश बने बंगलादेश से भारत के काफी अच्छे संबंध हैं। आज भारत और बंगलादेश के बीच व्यापार दस अरब डालर से ज्यादा का हो चुका है। भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर हुई झड़प और इससे पैदा हुए गम्भीर तनाव के बावजूद वर्ष 2020 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा। पाकिस्तान में कपास के दाम काफी बढ़े हुए हैं। पाकिस्तान में न्यूनतम 12 मिलियन गांठों की वार्षिक अनुमानित खपत के मुकाबले इस वर्ष केवल 7.7 मिलियन गांठें उत्पादन की उम्मीद है। कपास व्यापारियों ने 5.5 मिलियन गांठ के उत्पादन की उम्मीद जताई है। कपास और यार्न की कमी के चलते पाकिस्तान के व्यापारी अमेरिका, ब्राजील और उज्बेकिस्तान से आयात करने को मजबूर हैं। कपास से जुड़े छोटे-मोटे उद्योग बंद हो चुके हैं। भारत से कपास का आयात पाकिस्तान के लिए सस्ता होता है। लगभग ऐसी ही स्थिति चीनी की है।
अब तो इमरान खान और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में पत्र व्यवहार भी शुरू हो गया है। पाकिस्तान के स्थापना दिवस पर नरेन्द्र मोदी ने पत्र लिखकर इमरान को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने उन्हें आतंकवाद पर नकेल कसने की सलाह भी दी है। इसके जवाब में इमरान खान ने भी नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है। यद्यपि इस चिट्ठी में इमरान ने कश्मीर का जिक्र ​िकया है। दरअसल ऐसा करना उनकी राजनीतिक मजबूूरी भी है। पाक का कोई भी हुक्मरान इससे बचा नहीं रह सकता। 
पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने के लिए कश्मीर का उल्लेख करना इमरान की घरेलू राजनीति है। पाकिस्तान कश्मीर के बहाने तनाव उत्पन्न कर अमेरिका से अफगानिस्तान में विशेष स्थिति हासिल करने के खेल में लगा हुआ है। पाकिस्तान को यह भी पता है कि कश्मीर में एलओसी की जो यथास्थिति फिलहाल है, उसे बदल सकने की ताकत उसमें नहीं है। बेहतर यही होगा कि इमरान आतंकवाद को खत्म करने के लिए भारत के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलने का भरोसा देते। पाकिस्तान में द्विपक्षीय कारोबार को लेकर भी भारत के भीतर भी मंथन चल रहा होगा। भारत पहले ही पाकिस्तान के साथ सामान्य कारोबारी रिश्तों की बात करता रहा है। पाकिस्तान को कोरोना महामारी से बचने के लिए भी दवाओं की जरूरत है, देखना हैै कि व्यापारिक संबंध सुुधारने के ​लिए क्या-क्या कदम उठाए जाते हैं। दुनिया के तमाम देश इस समय व्यापार के लिए लड़ रहे हैं, किसी भी मुल्क की अर्थव्यवस्था की मजबूती उसके उत्पादन क्षमता और निर्यात से देखी जाती है। इमरान ने इस फैसले को वापस लेकर अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार ली है, क्योंकि अगर पाकिस्तान के कपड़ा उद्योग को भारतीय कपास का सहारा ​मिल जाता तो वह एक बार फिर दुनिया में अपनी चमक ​बिखेर पाता। भगवान पाकिस्तान के हुक्मरानों को सद्बुद्धि दें।

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