आज हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारी रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, हमारी सूचना, प्रसारण और कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी और महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी यानी बहुत महत्वपूर्ण स्थानों पर महिलाएं विराजमान हैं। यहां तक कि गांवों में बहुत सी महिलाएं सरपंच हैं यानी हर जगह महिलाओं का बोलबाला है। दूसरी तरफ हम महिला होने के नाते शर्मिंदा हैं कि देश में इतनी सशक्त महिलाएं हैं परन्तु फिर भी हर रोज महिलाएं, बच्चियां, बेटियां लुटती हैं। कई तो ऐसी बच्चियां अपनी अस्मत खो बैठती हैं जिन्हें अभी अस्मत या इज्जत या अपने अंगों के बारे में समझ ही नहीं होती। कहने को तो हम इन्हें देवियां कहते हैं पर उनकी पूजा के बदले उनका चीर-हरण होता है। आज नवरात्रे हैं। जगह-जगह रामलीलाएं हो रही हैं जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक है और आने वाली पीढिय़ों के लिए मार्गदर्शक है परन्तु अब यह सिर्फ एक्टिंग और मनोरंजन का साधन ही हो रही हैं। आज कम्पीटीशन है कि किसकी रामलीला सबसे अच्छी है। मुझे तो लगता है यह होना चाहिए कि किसके एरिया में रामलीला देखकर अच्छे संस्कारों का निर्माण हुआ और कहां देवी रूपी बेटियों को कम लूटा गया।
अब जबकि मां वैष्णो यानी मां जगदम्बा या मां दुर्गा के नवरात्रे आरंभ हो चुके हैं। दरअसल, ये नवरात्रे उस मां को समर्पित हैं, जो हमारे जीवन को हमेशा अंधेरे से उजाले में भर देती है। गमों को खत्म कर हमारे जीवन में खुशियां यही मां जगदम्बा भरती हैं। इन नवरात्रों पर विशेष रूप से अष्टमी और नवमी को हम जब कन्या पूजन करते हैं तो इस धरती पर उन लोगों में शामिल हो जाते हैं जो प्यार को और इंसानियत के धर्म को समझते हैं और बेटियों के चरणों को छूकर सदाचारी बनने का आशीर्वाद लेते हैं। यह एक परंपरा नहीं हमारी आस्था है। वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों पर हम परंपरागत रूप से कन्या पूजन करते हैं और फिर इसी समाज में से कितने ही लोग दैत्य बनकर इन कंजकों की हत्या करते हैं। कन्याओं का यौनाचार करते हैं, बलात्कार करते हैं, नन्हे बच्चों की हत्याएं हो रही हैं। क्षमा करना अखबारों की सुर्खियां जब पढ़ती हूं और चैनलों पर जब लंबी-चौड़ी गोष्ठियों में वक्ताओं के बयान सुनती हूं तो यही कहती हूं कि हे मां! मेरा भारत तो ऐसा नहीं था। हे जगजननी! जहां माता कभी कुमाता नहीं हुई वहां सुपूत अगर कुपूत हो रहे हैं तो सचमुच यही बहुत चिंता की बात है। हे मां! दैत्यों का संहार करो।
आध्यात्मिक विश्वास और आस्था एक अलग बात है परंतु व्यावहारिक पहलू एक दूसरी बात है। जीवन में हमारा आचरण अच्छा होना चाहिए, हमें यह संकल्प लेना चाहिए। जब हम संकल्प लेते हैं तो फिर हमें इसे निभाना चाहिए। देश की अदालतों में सवा करोड़ से ज्यादा रेप केस चल रहे हैं, जिनका कोई निदान नहीं है। रेप और हत्याओं से जुड़े अस्सी लाख भर केस चल रहे हैं। दिल को हिला कर रख देने वाला निर्भया रेप कांड और अभी कुछ दिन पहले चौंका देने वाला वाकया सामने आया। हैदराबाद में बाहर के देशों के शेख हमारे देश की मासूम 16, 17, 18 साल की बच्चियों को उनकी गरीबी का फायदा उठाकर शादी कराकर ले जाते हैं और वहां उनका बुरी तरह शोषण होता है। एक 16 साल की लड़की की शिकायत से हमारी मंत्री मेनका गांधी जी ने हस्तक्षेप कर उसे बचाया। सिर शर्म से झुक गया। जब मालूम पड़ा कि इन शेखों की उम्र 80-80 साल है और कुछ डायलेसिस पर भी हैं और अभी मालूम पड़ा कि पानीपत के एक स्कूल में अध्ययनरत 9 साल की बच्ची का वहां काम करने वाले ने रेप किया। हम रोज शर्मिंदा होते हैं।
इन शारदीय नवरात्रों के बाद कार्तिक माह, जिसमें हम जहां भगवान श्रीराम से नैतिकता और आदर्श जीवन सीखने का दम भरते हैं, उस समाज में आज भी अगर बुराई जिंदा है तो फिर किसे दोष देंगे? खाली पुतला जलाने से तो बुराई खत्म नहीं होगी। रावण का खात्मा तो उसके वध से हो गया, जो भगवान श्रीराम ने कर दिखाया परंतु अब तो समाज में अनगिनत रावण हैं, उनका खात्मा एकजुटता से किया जाना चाहिए। सबको पता है कि श्रीराम ने जब रावण पर विजय पायी तो यह सिर्फ बुराई पर अच्छाई की जीत नहीं थी बल्कि कुशल प्रबंधन के दम पर यह दिखाया गया था कि मिल-जुलकर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। वन में गए राम के रूप में मानव अनेक लोगों से मिलकर व्यवस्था बनाकर बुराई का खात्मा कर सकते हैं। बुरे लोगों और अव्यवस्था का खात्मा करना है तो मिल-जुलकर लडऩा होगा। हम सब कुछ सरकार पर नहीं छोड़ सकते। हमें खुद भी बहुत कुछ करना है और इंसानियत के धर्म को निभाना है। कन्या भ्रूण हत्या कानूनन एक अपराध है तो फिर समाज में ही अपराध करने वाले भी हैं लेकिन अपराधी को सजा तभी मिलेगी जब एकजुटता हो।
भगवान राम हों या मां वैष्णो-जगदम्बा, हमारे आदर्श महान हैं, हमें मिलजुल कर जीवन में रहना है और अव्यवस्थाओं का खात्मा करना है। एक नैतिक और आदर्श भारत बनाना है तो उसके लिए आओ मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जहां सिर्फ प्यार हो, छोटों का बड़ों के लिए सम्मान हो, बड़ों का छोटों के लिए आशीर्वाद हो, नन्हीं कंजकों का देवी जैसा सम्मान हो जो हम कन्या पूजन से दर्शाते हैं तो फिर पापियों का संहार हो। आइए, यही प्रार्थना मां जगदम्बा और श्रीराम के चरणों में मिलकर करें।