पंजाब में धर्म परिवर्तन के बढ़ते मामले गंभीर चिन्तन का विषय है। इस पर चिन्ता तो सभी करते हैं पर चिन्तन करने की सोच किसी की नहीं है। यहां तक कि अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और अनेक धर्म के ठेकेदार बनकर बैठे लोग इस विषय को लेकर समय समय पर चिन्ता करते देखे गए हैं। पंजाब और खासकर अमृतसर साहिब जिसे सिखी का केन्द्र माना जाता है उसके अधीन आने वाले गांवों में सबसे अधिक गिनती में सिख और हिन्दू अपने धर्म का त्याग कर ईसाई धर्म अपना चुके हैं। हालांकि ईसाई मिशनरीयों के मुखियों के द्वारा साफ किया जा रहा है कि उन्होंने जबरन किसी भी शख्स का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया है क्योकि ऐसा करना उनके धर्म के भी खिलाफ है। सबसे ज्यादा चिन्तन इस बात का होना चाहिए कि आखिरकार ईसाई धर्म में ऐसा क्या है जो हिन्दू-सिख बड़ी गिनती में उनकी ओर आकर्षित होकर उनका धर्म अपनाते जा रहे हैं। सच्चाई सबको कड़वी लगेगी मगर इसमें सबसे अधिक कसूरवार सिखों की सर्वाेच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी है जिसका गठन सिखी के प्रचार प्रसार के लिए हुआ था। कमेटी हर महीने लाखों रुपये सिखी के प्रचार पर खर्च अवश्य करती है मगर वह सिर्फ कागजों में होता है, सच्चाई इससे कोसों दूर ही दिखाई पढ़ती है।
कमेटी के प्रचारकों ने अगर अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभाया होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। मुझे आज भी याद है जब मैं छोटा था उस समय ईसाई मिशनरीयों के नुमाईंदे दिल्ली के हर क्षेत्र में आकर ईसाई धर्म का प्रचार करने हेतु मोटी-मोटी किताबें हर महीने बिना किसी शुल्क के देकर जाते थे। जिन्हें पढ़ने के बाद निश्चत तौर पर किसी का भी मन बदल सकता है। दूसरा ईसाई मिशनरी के अधीन चलने वाले स्कूलों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किताबें, वर्दी आदि मुहैया करवाई जाती हैं। बेरोजगारों को रोजगार दिये जाते हैं। क्या शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा इनमें से कोई भी काम किया जाता है। अगर किसी गांव के लोग सिख धर्म छोड़कर चले गए तो क्या सिख प्रचारकों यां धर्म के ठेकेदारों ने उनसे जाकर कारण जानने की कभी कोशिश भी की है कि ऐसा क्या उन्हें वहां दिखाई दिया जो सिख धर्म में नहीं है। धर्म कोई बुरा नहीं है, मगर ईसाई धर्म में केवल ईसा मसीह ने शहादत दी तब से लेकर आज तक उसका पूरी तौर पर प्रचार उनके धर्म के लोग करते हैं। सिखों का तो इतिहास ही शहादतों से भरा हुआ है मगर क्या आज तक किसी ने भी उस इतिहास को दूसरों को तो छोड़ो सिखों को भी बताने की कोशिश की है। अब तो ईसाई धर्म अपनाने के लिए सिखों को सिखी सरुप भी त्यागना नहीं पड़ता, सिर पर पगड़ी बांधकर, गले में कृपाण डालकर भी लोग ईसाई धर्म के कार्यक्रमों में भाग लेते देखे जाते हैं।
हालात ऐसे बन चुके हैं कि पंजाब में हजारों चर्च खुल चुके हैं, लोगों ने अपने घरों की छतोें पर प्रचार केन्द्र बनवा दिये हैं जहां हर रविवार को सुबह ईसाई धर्म की प्रार्थना की जाती है। पंजाब में स्वयं को पंथक कहलाने वाली बादल सरकार के कार्यकाल में भी इसे रोकने के बजाए उल्टा बढ़ावा ही दिया गया। एक सवाल और बनता है कि इन मिशनरियों को चलाने के लिए फण्ड कहां से आता है अगर इस पर ही सरकारें सख्त रुख अपना लें तो निश्चित तौर पर इन पर शिकंजा कसा जा सकता है। तख्त हजूर साहिब में सिख मर्यादा का उलंघन सिख रहत मर्यादा के अनुसार सिखों के पांच तख्त साहिबान पर किसी भी उस सिख व्यक्ति को सिरोपा नहीं दिया जा सकता जो कि अपने केशों की बेदबी करता हो हां इस श्रेणी में गैर सिख शामिल नहीं हैं। मगर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के तख्त हजूर साहिब नतमस्तक होने पर उन्हें सिरोपा देने के साथ साथ तख्त साहिब की मर्यादित रवायत के हिसाब से चोला पहनाकर सम्मानिन्त भी किया गया। जिसके बाद सिख समुदाय में रोष उत्पन्न होना स्वभाविक था। देश भर से इस पर प्रतिक्रियाएं भी सामने आने लगी। इससे पहले भगवंत मान परिवार सहित तख्त पटना साहिब भी नतमस्तक होने पहुंचे थे मगर वहां पर उन्हें तख्त साहिब के भीतर सम्मानित नहीं किया गया था।
तख्त हजूर साहिब के जत्थेदार ज्ञानी कुलवंत सिंह स्वयं बहुत ही सूझवान व्यक्ति हैं फिर यह चूक कैसे हो गई। तख्त साहिब के प्रशासक डा विजय सतबीर सिंह की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं कि कहीं उनके दबाव में आकर ऐसा किया गया हो। जो भी हो इसके लिए दोषियों को माफी अवश्य मांगनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की गल्ती ना हो सके। सिखी सरुप में खेलने वाले खिलाड़ियों को सम्मान हॉकी हमारे देश का पारंपरिक खेल है और इसमें ज्यादार खिलाड़ी पंजाब यां फिर हरियाणा से ही आते हैं। एक समय था जब हॉकी खेलते हुए मैदान में दस्तार सजाए युवाओं की भरमार हुआ करती थी। इस बार भी एक युवा खिलाड़ी पूरे सिखी सरुप में मैदान में देखा गया जिसे शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा सम्मानिन्त भी किया गया है। भारतीय हॉकी टीम के सभी खिलाड़ी सिर पर सुन्दर दस्तार सजाकर श्री दरबार साहिब नतमस्तक हुए जहां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा उनका शानदार स्वागत किया गया मगर अफसोस कि ना तो शिरोमणी कमेटी अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी यां फिर किसी अन्य सदस्य ने उन्हें सिखी सरुप में वापिस आने के लिए प्रेरित किया। आज सिख समुदाय के लोग खेल ही नहीं हर क्षेत्र में सिखी का नाम रोशन करते हैं मगर अफसोस कि उनमें से ज्यादातर के साथ सिंह ही लगा दिखाई पड़ता है सिखी सरुप कहीं दिखाई नहीं देता। पूर्व सांसद तरलोचन सिंह के द्वारा इस पर संज्ञान लेते हुए शिरोमणी कमेटी अध्यक्ष एवं अन्य धार्मिक नेताओं को सवाल किए हैं कि क्यों आज तक सिखी सरुप त्यागने वालों को वापिस सिखी में लाने के लिए कोई मुहिम शुरु नहीं की गई।
नासमझी में आकर हो सकता है कि युवा सिखी से दूर हो गए हो, पर अगर उसके परिवार से मिलकर उन्हें समझाया जाए तो हो सकता है कि उनमें से ज्यादातर सिखी में वापिस आ सकते हैं। सिख जत्थेबंदियों के इलावा बड़े बड़े सिख व्यवसाई भी हैं उन्हें भी चाहिए कि सिखी सरुप वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करें क्योंकि इस देश के लोगों की मानसिकता बन चुकी है। सीएए के तहत नागरिकता मिलनी शुरु केन्द्र की मोदी सरकार के द्वारा 2019 में नागरिकता संशोधन कानून लाया गया था उस समय विपक्षी दलों सहित कई धार्मिक जत्थेबंदीयों ने भी इसका खुलकर विरोध किया था। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए सिखों को भारतीय नागरिकता दिलाने के लिए निरन्तर प्रयास किए जा रहे थे। कमेटी के महासचिव जगदीप सिंह काहलो जिनके अपने वार्ड में अनेक ऐसे परिवार हैं जो पिछले लम्बे अरसे से भारत में आकर रह रहे हैं मगर उन्हें नागरिकता ना मिलने के चलते बच्चों के दाखिलों से लेकर रोजमर्रा के कार्यों में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने बताया कि 400 के करीब दरखास्त आनलाईन डाली गई थी जिसमें से 20 लोगों को अब नागरिकता मिल गई है। कमेटी के कार्यालय में अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका और महासचिव जगदीप सिंह काहलो के द्वारा उन्हे दस्तावेज सौंपे गए। इससे अन्य लोगों को भी उम्मीद बन गई है कि आने वाले दिनों में उन्हें भी भारतीय नागरिकता मिल सकती है। भाजपा नेता सुखमिन्दर पाल सिंह ग्रेवाल ने देश की मोदी सरकार को सिख हितैषी सरकार बताते हुए सरकार का आभार प्रकट किया गया।