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भारत अफगान खुल गई राजनयिक खिड़की

अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने के बाद वहां की त्रस्त जनता के लिए मेडिकल सप्लाई की पहली खेप भेज कर भारत ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं।

अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने के बाद वहां की त्रस्त जनता के लिए मेडिकल सप्लाई की पहली खेप भेज कर भारत ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। भारत ने संकट के समय अफगानिस्तान के लोगों की मदद करने की प्रतिबद्धता के अनुरूप मानवीय मदद उपलब्ध कराई है। इसी के माध्यम से भारत की यह इच्छा भी प्रकट हुई है कि भारत काबुल के राजनयिक दरवाजे पर अपने कदम रखना चाहता है। दस भारतीयों और 94 अफगान नागरिकों को काबुल से दिल्ली लाने वाले विमान के जरिये मेडिकल सप्लाई वहां भेजी गई है। यह खेप विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधियों को सौंपी जाएगी और काबुल स्थित इंदिरा गांधी बाल चिकित्सालय में दी जाएगी। तालिबान संयुक्त राष्ट्र एजैंसियों तक पहुंच को मजबूती से नियंत्रित करता है, ऐसे में भारत पिछले  कुछ महीनों से तालिबान के अधिकारियों के साथ सतर्कतापूर्वक, पर्दे के पीछे बातचीत में शामिल हुआ। अगस्त में भारतीय दूत ने आधिकारिक तौर पर तालिबान के दोहा कार्यालय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी। तालिबान का नेतृत्व कर रहे शेर मोहम्मद स्टेनकजई कर रहे हैं। स्टेनकजई ने भारत में ही ​शिक्षा ग्रहण की है।
1.6 मीट्रिक टन स्वास्थ्य सामग्री पहुंचते ही अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत से ​मिली  मदद का स्वागत किया और  लेकिन कहा कि वर्तमान स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए उन्हें और मदद की जरूरत है। भारत इसके अलावा 5 लाख कोरोना वायरस की वैक्सीन की डोज और 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं भेजने को भी तैयार है। अगर पाकिस्तान सड़क मार्ग के जरिये गेहूं भेजने में अडंगा न लगाता तो गेहूं कब का अफगानिस्तान पहुंच चुका हाेता। पाकिस्तान के साथ भारत गेहूं की खेप के परिवहन के लिए नियमों को अंतिम रूप देने की बातचीत कर रहा है।
मानवीय आधार पर सहायता भारत ने वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के अनुरूप दी है। वसुधैव कुटुम्बकम सनातन धर्म का मूल संस्कार है जो महाउपनिषदों सहित कई ग्रंथों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है-धरती एक ही परिवार है। यही वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। दुनिया गवाह है कि कोरोना महामारी के दौरान भी भारत ने न केवल पड़ोसी देशों को बल्कि ब्राजील जैसे दुनिया के कई देशों को कोरोना वैक्सीन की डोज उपलब्ध कराई थी। भारत ने नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका और अन्य देशों की प्राकृतिक आपदाओं के दौरान हमेशा मदद की है। भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुल्दजई ने ट्वीट कर भारत को धन्यवाद करते हुए लिखा है-‘‘अपने उपकार करने वालों के साथ जो साधुता बरतता है, उसकी तारीफ नहीं है, महात्मा तो वह है जो अपने साथ बुराई करने वालों के साथ भी भलाई करे। इस कठिन समय में अफगानिस्तान के बच्चों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए भारत को धन्यवाद। अमर रहे भारत-अफगान मित्रता।’’
भारत ने अफगानिस्तान को सहायता भेजकर राजनयिक खिड़कियां तो खोल दी हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अफगानिस्तान में भारतीय निवेश  का भविष्य क्या है? 2001 में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान शासन के खात्मे के बाद भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे और मानवीय सहायता पर अरबों डालर खर्च किए हैं। राजमार्गों के निर्माण से लेकर भोजन के परिवहन और स्कूलों के निर्माण तक भारत ने समय-समय पर धन का निवेश करते हुए विध्वंस का शिकार हुए देश के पुनर्निर्माण में मदद की है। अब वहां भारतीय परियोजनाओं के लिए नियमित रखरखाव की जरूरत होगी और ये केवल अनुुकूल वातावरण में ही जारी रह सकती है। वहां चल रही सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक राजमार्ग का निर्माण भी शामिल है। जो भारत को अफगानिस्तान के साथ जोड़ेगा। भारत के ​लिए यह सड़क सम्पर्क महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान भारत को अपने क्षेत्र में अफगानिस्तान में माल परिवहन की अनुमति नहीं देता। भारत किसी  भी तरह से वित्तीय सहायता का राजनीतिक लाभ के रूप में उपयोग नहीं करना चाहता। भारत का उद्देश्य केवल अफगानिस्तान में राजनीतिक और लोकतांत्रिक परिवर्तन भी शामिल था। भारत यही चाहता है कि अफगानिस्तान में समावेशी शासन व्यवस्था हो। भारत केवल यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भारत विरोधी इस्लामी आतंकवादी अफगानिस्तान से भारतीय धरती पर हमले न शुरू कर दे। भारत इस इलाके में भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त इस्लामी आतंकवादियों को समर्थन देने का पाकिस्तान पर आरोप लगाता रहा है और पाकिस्तान की अफगानिस्तान में भूमिका पूरी तरह दुनिया के समाने नग्न हो चुकी है। भारत को अभी इंतजार करना होगा कि ​तालिबान शासन क्षेत्रीय प​ड़ोसियों के साथ कैसे 
व्यवहार करता है। तालिबान ने इस बात पर जोर दिया था​ ​कि  मानवीय मदद और विकास परियोजनाओं के ​लिए  भारत का स्वागत है। तालिबान यह भी स्वीकार करता है कि पिछले 20 वर्षों में भारत की तीन विलियन डालर से अधिक के प्रोजैक्ट्स बहुत फायदेमंद रहे हैं। देखना होगा कि इस 
समय गम्भीर आर्थिक संकट से जूझ रहे अफगानिस्तान का तालिबान शासन क्या रुख अपनाता है। इस बात की सम्भावनाएं तलाशी जानी चाहिए कि क्या भारत तालिबान के साथ 
काम कर सकता है या नहीं।

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