डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद दुनिया भर में खलबली मची हुई है। शायद ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के बाद दुनिया इतनी परेशान नज़र आई हो। ट्रम्प का स्वभाव ऐसा है कि कुछ भी निश्चित नहीं। वह सनकी हैं, अस्थिर हैं और जल्दी में निर्णय लेने और बदलने के लिए कुख्यात हैं। उनके व्यक्तित्व के कारण अमेरिका पूरी तरह से विभाजित है। उनका कहना तो है कि सबको साथ लेकर चलना चाहता हूं, पर पिछली बार जब वह जो बाइडेन से चुनाव हारे थे तो नतीजा मानने से इंकार कर दिया था और अपने समर्थकों को संसद भवन पर हमले के लिए उकसाया था। इस बार भी चुनाव अभियान में धमकी दी थी कि अगर मैं नहीं जीतता तो खून की नदियां बह जाएंगी।
ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से सबसे परेशान यूरोप के देश हैं। वह कह रहें हैं कि इससे दुनिया में भारी परिवर्तन आएगा क्योंकि ट्रम्प विध्वंसकारी हैं। वह ख़तरनाक और अप्रत्याशित स्वभाव के हैं। सब कुछ अस्त व्यस्त कर देंगे। लिबरल विशेष तौर पर उनसे नफरत करते हैं। यूरोप की विशेष चिन्ता है कि वह अपने मित्र पुतिन को संतुष्ट करने के लिए यूक्रेन की बलि न करवा दें। यूरोप में ट्रम्प के चुनाव को किस चिन्ता से देखा जा रहा है वह लंडन के गार्डियन अख़बार में पत्रकार मार्टिन कैटल के लेख से पता चलता है। वह लिखते हैं, “अमेरिका के वोटर ने बहुत ख़ौफ़नाक और न माफ़ करने वाला काम किया है...अमेरिका को अपने किए के नतीजों को भुगतना पड़ेगा। ट्रम्प का दोबारा चुना जाना ‘शॉकिंग’ है”।
कई टिप्पणीकार कह रहे हैं कि अमेरिका का सामाजिक पतन जारी है जो रूक नहीं सकता। सरकार ड्रग्स, गन-कलचर, अपराध, हिंसा, नस्लवाद आदि से निबटने में असफल है। सब बड़े शहर, न्यूयार्क, वाशिंगटन, शिकागो,सैन फ्रांसिस्को असुरक्षित बन चुके हैं। वहां गन ख़रीदना इतना आसान है जितना टुथ ब्रश ख़रीदना। समाज इतना हिंसक हो चुका है कि स्कूलों की सुरक्षा पर 25000 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहें हैं। डोनाल्ड ट्रम्प इन सबसे कैसे निपटेंगे जबकि उनका व्यक्तित्व ही विभाजित करने वाला है? कमला हैरिस इतनी बुरी तरह क्यों हारीं? एक कारण तो यह है कि उन्हें बाइडेन प्रशासन के खिलाफ एंटी-इंकमबंसी का बोझ उठाना पड़ा। पर असली कारण है कि अमेरिका किसी महिला, वह भी अश्वेत, को राष्ट्रपति और कमांडर-इन- चीफ़ स्वीकार करने को तैयार नहीं। इस मामले में यह देश भारत,पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि सबसे पिछड़ा है। ट्रम्प को गोरे वर्किंग क्लास का भारी समर्थन प्राप्त था जो कमला हैरिस को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं थे।
भारत के साथ रिश्ता कैसा रहेगा? पूर्वडिप्लोमैट विवेक काटजू का कहना है कि “दुनिया टरबुलैंस (अशान्ति) का सामना करेगी”।क्या जब ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ और ‘मेक इन इंडिया’ का सामना होगा तो टकराव तो नहीं होगा? इस मामले में राय विभाजित है। बाइडेन जो भाजपा सरकार की आंतरिक नीतियों को पसंद नहीं करते थे, ने सामरिक तौर पर भारत के साथ रिश्ते मज़बूत किए थे। उनके समय में गुरपतवंत सिंह पन्नू वाला मामला ज़रूरत से अधिक उछाला गया। क्या ट्रम्प भी बाइडेन की तरह हमें आधुनिक टैक्नोलॉजी देने के मामले में उदार रहेंगे? बहुत कुछ,सब कुछ नहीं, ट्रम्प और मोदी की केमिस्ट्री पर निर्भर करता है। ट्रम्प भारत के प्रधानमंत्री को 'गुड फ्रैंड’ कह चुकें हैं। 2018 में ह्यूस्टन की रैली में मोदी ने ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’ का नारा दिया था पर चुनाव बाइडेन जीत गए थे। वह जल्दबाज़ी अब काम आएगी। चुनाव जीतने के बाद जिन नेताओं से ट्रम्प ने बधाई स्वीकार की उनमें पहले तीन में नरेन्द्र मोदी थे। पर यह भी याद करने की बात है कि ट्रम्प पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बारे भी कह चुकें हैं, “स्मार्ट, बुद्धिमान, बिल्कुल परफ़ेक्ट...मुझे राष्ट्रपति शीजिनपिंग बहुत पसंद हैं। वह मेरे बहुत अच्छे फ्रैंड हैं”। ट्रम्प यह उसके बारे कह रहे थे जिसके देश चीन को वह ‘ख़तरा' घोषित कर चुके हैं। पर यह भी उल्लेखनीय है कि वह एक मात्र विश्व नेता हैं जिन्होंने बंगलादेश के हिन्दुओं पर हमलों की निंदा की है।
डोन्लाड ट्रम्प कहते क्या हैं वह महत्व नही रखता, देखना यह है कि वह करते क्या हैं? उनके आगे अमेरिका का हित होगा जैसे नरेन्द्र मोदी के आगे भारत का। कई मुद्दे हैं जो तनाव उत्पन्न कर सकते हैं पर बहुत कुछ है जो संकेत देता है कि रिश्ते सही दिशा में चलेंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कहना है कि दूसरों की तरह भारत ट्रम्प के बनने पर ‘नर्वस’ नहीं है। यह संतोष का बात है। भारत और अमेरिका के बीच टकराव का कोई सीधा मामला नही है पर कई मामले हैं जिनको लेकर मतभेद उभर सकते हैं। ट्रेड के मामले में ट्रम्प बहुत सख्त हैं। अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने भारतीय सामान पर 10 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी। चीन पर वह और भी अधिक 60 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने की धमकी दे रहे हैं। शी िजनपिंग जो अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को सम्भालने में लगे हैं, के लिए यह बुरी खबर है। भारत के साथ भी ट्रम्प सौदेबाज़ी कर सकते हैं। उन्हें ‘डील’ करने का बहुत शौक़ है।
दोनों देशों के बीच जो मामलाअप्रिय हो सकता है वह इमीग्रेश्न या आप्रवासन है। अमेरिका के चुनाव में यह बड़ा मुद्दा रहा है कि ‘वह’ हमारी नौकरियां छीन रहें हैं। ‘वह’ यानी विदेशी। वास्तव में सारे पश्चिमी दुनिया में यह बड़ा मसला है कि वैध और अवैध विदेशी उनकी नौकरियां छीन रहे हंै। अमेरिका में अवैध तौर पर रहेप्रवासियों की संख्या 1 करोड़ से उपर है। यह नौकरियां भी छीन रहे हैं, अपराध में भी संलिपत हैं और आवास की समस्या भी पैदा कर रहें है। वहां अवैध रह रहे में तीसरी गिनती हमारे लोगों की है। 2021 में इनकी संख्या 725000 थी जो बहुत बढ़ चुकी होगी। ट्रम्प उन्हें वापिस भेजना चाहेंगे। बाइडेन भी 2023-24 में लगभग 1000 भारतीयों को जो वहाँ अवैध रह रहे थे, वापिस घर भेज चुकें है। पर बाइडेन फिर भी उदार थे। ट्रम्प के कार्यकाल में घर वापिस भेजने वालों की रफ्तार तेज हो सकती है।
हमारी चिन्ता केवल अवैध लोगों की ही नहीं बल्कि वैध को लेकर भी है। 10 लाख क्वालिफ़ाईड भारतीय हैं जो ग्रीन कार्ड की इंतज़ार में हैं। हमारे प्रोफेशनल वहां बहुत अच्छा कर रहे हैं। अमेरिका की प्रगति में भारी योगदान है। वहां 51 लाख भारतीय अमरीकी नागरिक हैं जिनकी औसत आमदन 136000 डॉलर है जो अमेरिकी औसत से दो गुना है। वह अमेरिका का केवल 1.5 प्रतिशत है पर 5.6 प्रतिशत टैक्स देते हैं। 10 में से एक डाक्टर वहां भारतीय मूल का है।
एक समय भारतीय समुदाय की वहां बहुत प्रतिष्ठा थी पर अब कुछ ईर्ष्या भी देखने को मिल रही है। एच1बी वर्क वीज़ा जिससे हमारे प्रोफैशनल वहां जाते थे में भी भारी कमी आने की सम्भावना है। इससे हमारे आई टी के छात्र जो वहां अपने कैरियर बनाने के लिए जाना चाहते है, के रास्ते में रूकावटें आ सकती हैं। ट्रम्प के सलाहकारों में बहुत लोग हैं जो आप्रवासन के खिलाफ हैं और जो न केवल अवैध बल्कि स्किल्ड विदेशियों पर भी पाबंदी लगाना चाहते हैं और नौकरियां अपने लोगों के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं।
अफ़सोस यह भी है कि बड़ी संख्या में भारतवंशी जो वहां बस चुके हैं, भी आप्रवासन को बंद करने की वकालत कर रहे हैं। रवैया लगता है कि हम तो अंदर आ चुके हैं दरवाज़ा अब बंद हो जाना चाहिए। प्रमुख बिसनेसमैन विवेक रामास्वामी जैसे लोग दरवाज़ा बंद करने के सबसे बड़े वकील हैं। वह तो एच1बी वीज़ा भी बंद करना चाहते हैं। हमारी छवि के लिए भी यह अच्छा नहीं कि हमारे लोग इस तरह दुनिया भर में दर दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं। सरकार को इस 'डंकी रूट’ पर नियंत्रण करना चाहिए। शीघ्र तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए ऐसी बदनामी सही नहीं।
हमारे डिप्लोमैट दक्ष और चुस्त हैं। आशा है कि वह मामले को सम्भाल लेंगे पर इस सम्भावना को रद्द नही किया जा सकता कि हवाई जहाज़ भर भर कर भारतवंशियों को वहां से वापिस भेजा जाए। ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ का मतलब यही है। इन मुद्दों को छोड़ कर सम्भावना है कि रिश्ते सही रहेंगे क्योंकि बहुत हित सांझे हैं। नोमुरा रेटिंग एजेंसी के अनुसार ट्रम्प की नीति से जिन देशों को फ़ायदा होगा टॉप तीन में भारत होगा। बाइडेन के नेतृत्व में पश्चिमी देश बहुत क्षुब्ध थे कि हम रूस से तेल ख़रीद रहें हैं। इस मामले में दबाव कम होगा। चीन पर दबाव बढ़ सकता है जिसका फ़ायदा हमें होगा। कई कम्पनियां चीन छोड़ रही हंै, यह रफ्तार बढ़ सकती है।
गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे मामले ख़त्म तो नहीं होंगे क्योंकि अदालत में हैं, पर ट्रम्प की ऐसे मामलों में रुचि न्यूनतम रहने की सम्भावना है।यह भी दिलचस्प है कि ट्रम्प कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो को बिल्कुल नापसंद करते। वह ट्रूडो को ‘दोगला’ और ‘पागल वामपंथी’ कह चुके हंै। कनाडा से हम पर दबाव कम होगा जो ट्रूडो का बदलता रवैया भी संकेत देता है। ट्रम्प खुद राइट- विंग है। वह मोदी को आंतरिक मामलों को लेकर परेशान नहीं करेंगे। मानवाधिकारों पर लेक्चर मिलने की सम्भावना कम है,बाइडेन की पार्टी को इसका बहुत शौक़ है।
लेकिन यह सब भविष्य के गर्भ में हैं। सारे आंकलन ट्रम्प के पहले कार्यकाल पर आधारित है। हो सकता है इस बार वह बदले और सम्भले नज़र आएं और वह सनक और अस्थिर मानसिकता पुरानी बात हो जाए। पर एक नीति बदलने की सम्भावना नही। वह ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट एगेन’का वादा कर सता में आए हैं। जो उसमें रुकावट डालेगा उसका नए अमेरिकी राष्ट्रपति से टकराव होगा। वह सत्ता का ज़ोरदार इस्तेमाल करेंगे। हमारे नीति निर्धारितों को यह ध्यान में रखना होगा।