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भारत-आस्ट्रेलिया सहयोग

आजादी के बाद से ही भारत-आस्ट्रेलिया के बीच के सम्बन्ध मधुर रहे हैं, मगर हिन्द महासागर व प्रशान्त महासागर के वाणिज्यिक जलमार्ग को देखते हुए इनमें पिछले एक दशक से प्रगाढ़ता आयी है।

आजादी के बाद से ही भारत-आस्ट्रेलिया के बीच के सम्बन्ध मधुर रहे हैं, मगर हिन्द महासागर व प्रशान्त महासागर के  वाणिज्यिक जलमार्ग को देखते हुए इनमें पिछले एक दशक से प्रगाढ़ता आयी है। इसकी असली वजह विश्व मंच पर चीन के एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने को भी माना जा रहा है। चीन इस जलमार्ग का उपयोग अपने वाणिज्यिक हितों में अधिकाधिक रखने की गरज से अपनी जल सेना की तैनाती भी खुलकर करने की नीति पर चल रहा है जिसका मुकाबला अमेरिका व पश्चिमी यूरोपीय देश करना चाहते हैं। हिन्द महासागर का प्रहरी होने की वजह से भारत की भूमिका इस जल क्षेत्र में अहम हो जाती है जिसकी वजह से अमेरिका व यूराेपीय देश इसे अपने पक्ष में रखना चाहते हैं, मगर चीन भारत का निकटतम पड़ोसी देश है। अतः वह स्वयं को ऐसी भूमिका में रखना चाहता है जिससे हिन्द-प्रशान्त महासागरीय देश युद्ध का अखाड़ा न बन सके। इस हकीकत के बावजूद भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा भी करनी है और चीन की टेढी नजर का जवाब भी देना है।  अतः उसने इस क्षेत्र में क्वाड (चतुष्देशीय सहयोग संगठन भारत-अमेरिका-जापान-आस्ट्रेलिया) का सदस्य बनना कबूल किया। इस क्षेत्र में आस्ट्रेलिया सभी पश्चिमी देशों के हितों का परोक्ष रूप से संरक्षण भी करता है। इसका प्रमाण यह है कि जब 1947 में अंग्रेजों ने भारत को बांट कर पाकिस्तान का निर्माण कराया था तो उनकी मंशा साफ थी कि वे आस्ट्रेलिया में अपने सैनिक व व्यापारिक हितों के रक्षार्थ पाकिस्तान के कराची बन्दरगाह का प्रयोग कर सकेंगे। 
आस्ट्रेलिया के संवैधानिक राजप्रमुख आज भी ब्रिटेन के सम्राट ही हैं। अतः भारत-आस्ट्रेलिया सम्बन्ध विभिन्न अर्थों में बहुत महत्व रखते हैं। परन्तु 80 के दशक तक भारत की स्पष्ट नीति थी कि हिन्द महासागर को ‘अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति क्षेत्र’ घोषित किया जाये किन्तु तब तक अमेरिका डिएगो गार्शिया में अपना परमाणु अड्डा स्थापित करने में सफल हो गया था जिसके बाद परिस्थितियों ने  करवट लेनी शुरू की। परन्तु भारत की कोशिश आज भी यही है कि यह जल क्षेत्र शान्ति क्षेत्र ही बना रहे हालांकि चीन की सैनिक गतिविधियों और अमेरिका के बढ़ते जवाबी सैनिक जमावड़े ने स्थितियों को जटिल बना दिया है। भारत इसका मुकाबला हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में वाणिज्क हित रखने वाले देशों के साथ मिलकर ही इस सैनिक प्रतियोगी माहौल को पलट सकता है और अमेरिका व चीन के बीच शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का उत्प्रेरक बन सकता है।
 हिन्द प्रशान्त क्षेत्र से ही एशिया व यूरोप के बीच तीन चौथाई माल की आवाजाही होती है। चीन की नीयत इस पर अपना दबदबा कायम रखने की रहती है जिसकी वजह से भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखना है। अतः क्वाड की एकता को हमें इसी दृष्टि से देखना होगा और इसके सदस्य देशों के बीच बढ़ती मित्रता का मूल्यांकन वस्तुगत सच्चाइयों की रोशनी में करना होगा। यह संयोग नहीं कहा जा सकता कि क्वाड के सदस्य देशों के विदेश मन्त्री पिछले दिनों जी-20 देशों के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में भाग लेने आये थे। उस दौरान भी इन चार देशों के विदेश मन्त्रियों के बीच अलग से बैठक हुई थी। इसके बाद अमेरिका के विदेश मन्त्री ब्लिंकन ने भारत की यात्रा की और अब आस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री श्री एंथनी अल्बानीज भारत की यात्रा पर हैं।  उनकी इस यात्रा के दौरान रक्षा से लेकर ऊर्जा, शिक्षा व वाणिज्य के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए नये समझौते हो रहे हैं। विगत वर्ष दिसम्बर महीने में ही दोनों देशों के बीच शुल्क मुक्त आयात-निर्यात समझौता भी हुआ था। दोनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास के भी कार्यक्रम बनाये जा रहे हैं। इसके बाद  19 से 21 मार्च तक की तीन दिनों की यात्रा पर जापान के प्रधानमन्त्री श्री फ्यूमियो किशिदा नई दिल्ली आयेंगे।  इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में भारत की भूमिका कितनी शक्तिशाली है। परन्तु इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि चीन से भारत की सीमाएं छह तरफ से जल व भूमि मार्ग से लगती हैं। हमारे लिए अपने राष्ट्रीय हित महत्व रखते हैं। इनमें सबसे बड़ा हित यह है कि हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र किसी भी सूरत में जंग का अखाड़ा न बन पाये। इस लिहाज से जितनी जरूरत अमेरिका को भारत की है उतनी भारत को अमेरिका की नहीं। चीन को भी यह समझना होगा कि वह भारत के सहयोग के बिना तरक्की की रफ्तार कायम नहीं रख सकता, उसे भारत का जायज हिस्सा देना ही होगा। वह अपनी सैन्य दादागिरी के बूते पर दुनिया की आर्थिक ताकत बनने के सपने को परवान नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए उसे अन्तर्राष्ट्रीय जल मार्ग नियमों का अनुपालन करना ही होगा। मौजूदा हालात में हिन्द-प्रशान्त जल क्षेत्र को सभी देशों के लिए खुला रखना इसलिए जरूरी है जिससे यह सैनिक अखाड़ा न बन सके। चीन यदि अपनी दादागिरी चलाकर इस पर एकाधिकार करना चाहता है तो उसका माकूल जवाब तैयार है। 

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