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भारत-बांग्लादेश संबंध

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एक तरफ पाकिस्तान है जो अपनी सत्ता के प्रतिष्ठानों का इस्तेमाल कर भारत में आतंकवादी हमले करवाता है, हमारे सैनिकों की हत्या करता है और उनके शवों के साथ लगातार बर्बरता करता आ रहा है। उसने निर्दयता की सारी सीमाएं लांघ दी हैं। पाकिस्तान आतंकवाद की खेती करने वाले देश के ताैर पर विशिष्ट पहचान बना चुका है। कश्मीर में अवाम को भारत के खिलाफ भड़काने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा। जरा पीछे मुड़कर इतिहास को देखें तो पता चलता है कि रेडक्लिफ नामक अंग्रेज सर्वेयर ने 1947 में अविभाजित भारत का नक्शा सामने रखा और अपनी लाल पेंसिल के सहारे उसे तीन हिस्सों में बांट दिया। यह लाल लाइन अ​नगिनत गांवों, खेत-खलिहानों को चीरती हुई भारतीय उपमहाद्वीप के भाग्य का फैसला कर गई। रेडक्लिफ को अनुमान था कि क्या होने वाला है, इसलिए आजादी का ऐलान होने से पहले ही वह भारत छोड़ चुका था लेकिन अतीत की वह रेखा पीछे रह गई और अगली आधी शताब्दी तक बार-बार इस भूभाग के देशों के सुख-चैन में जहर घुलता रहा।

दूसरी तरफ बंगलादेश है जो हमारा मित्र बनकर उभरा है। 1971 में बंगलादेश की आजादी में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1972 में शांति एवं दोस्ती की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद भी दोनों देशों द्वारा अपने सम्बन्धों को बेहतर बनाने के ठोस प्रयास नहीं किए गए। इसका बड़ा कारण बंगलादेश की राजनीतिक उथल-पुथल रही। नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2015 में भूमि सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए तो यह ऐतिहासिक सफलता थी। इस समझौते से द्विपक्षीय रिश्तों में नया मोड़ आया। भूमि हस्तांतरण की बाधाओं को खत्म कर बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना आैर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 6 जून 2015 को 1974 के भूमि सीमा समझौते की बहाली और 2011 के प्रोटोकॉल से सम्बन्धित दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया। बंगबंधु मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना को भारत सरकार का भरोसेमंद सहयोगी माना जाता है। जब भी ढाका में हसीना की सरकार रही, भारत के साथ उसके रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं। 1996 में गंगा जल संधि और 1997 में चकमा और अन्य पहाड़ी समूहों की स्वदेश वापसी इसके दो महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।

शेख हसीना सरकार ने उल्फा की कमर तोड़ने में बहुत सहयोग दिया आैर बंगलादेश में रह रहे उल्फा नेताओं को पकड़-पकड़कर भारत के हवाले किया। जहां भारत और पाकिस्तान की सीमाएं अशांत रहती हैं वहीं भारत-बंगलादेश की सीमाएं पूरी तरह से शांत रहती हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं भी पूरी तरह शांत हैं। यहां तक ​िक भारत से रिश्ते सुधारने के लिए शेख हसीना को विपक्ष द्वारा भारत परस्त करार दिया जाता है आैर वह कट्टरपंथी ताकतों के निशाने पर रही हैं। बंगलादेश में पाक परस्त तत्व भी सक्रिय हैं। शेख हसीना सरकार ने बढ़ रही कट्टरता और आतंकवाद पर काबू पाया है। सभी आतंकी ठिकानों को खत्म कर भारतीय चिन्ताओं को दूर किया है। उन्होंने वादा किया है कि बंगलादेश की धरती को भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगी। शेख हसीना के सत्ता में आने से पहले बंगलादेश पर चीन का काफी प्रभाव था, जिसे हसीना ने आते ही कम करने की कोशिश की आैर सफल भी रहीं। विकास के लिए बंगलादेश को भारत की जरूरत है और इस बात को शेख हसीना भली-भांति जानती हैं। 2015 में भारत और बंगलादेश में 22 समझौते हुए थे। दोनों देशों के बीच बस सेवाओं की शुरूआत की गई। भारत बंगलादेश को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग भी दे रहा है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शेख हसीना ने संयुक्त रूप से सीमा पार तेल पाइप लाइन और दो रेल परियोजनाओं का उद्घाटन किया।

130 किलोमीटर लम्बी भारत-बंगलादेश मैत्री पाइप लाइन भारत में सिलीगुड़ी से बंगलादेश के परबतीपुर को जोड़ेगी। इसी कार्यक्रम में दो रेल परियोजनाएं ढाका से तांगी आैर जयदेवपुर सम्पर्क की आधारशिला रखी गई। भारत-बंगलादेश भौगोलिक रूप से पड़ोसी हैं लेकिन दिल से तो एक ही परिवार के सदस्य हैं। यह पाइप लाइन द्विपक्षीय सम्बन्धों को नया आयाम देगी। यह परियोजना बंगलादेश के विकास का आधार बनेगी। हाल ही में दोनों देशों के बीच सीमा सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण बातचीत हुई थी जिसमें सीमा पर अपराधियों के हमले रोकने, बंगलादेश में सक्रिय विद्रोही समूहों पर कार्रवाई, रोहिंग्या शरणार्थियों की गतिविधियों को रोकने का फैसला किया गया। दोनों देशों में डेढ़ सौ फीसदी से ज्यादा व्यापारिक सांझेदारी है। भारतीय कम्पनियों ने बंगलादेश में कपड़ा, रसायन, विद्युत आैर औषधि उत्पाद के क्षेत्रों में भारी निवेश कर रखा है। बंगलादेश अब भी एक इस्लामिक राज्य है लेकिन शेख हसीना सरकार देश को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप देने के लिए हमेशा प्रयासरत रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पड़ोसी देशों के साथ सम्पर्क तथा इन देशों के बीच संवाद व सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने पर बल दे रहे हैं। भारत और बंगलादेश सम्बन्ध किसी भी दक्षिण एशियाई पड़ोसियों की तरह सभ्यता, संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक आदि विषयों के साथ जुड़े हैं। इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है जो दोनों देशों को एक सूत्र में बांधता है।

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