पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी की झड़प के एक साल बाद भी चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास जमे हुए हैं और भारत द्वारा लम्बी अवधि की सोच के साथ उनका मुकाबला करने की खास तैयारी करने की खबरों के बीच बहुत से सवाल भी उभर रहे हैं कि साल भर बाद दोनों देशों के रिश्ते कहां तक पहुंच गए हैं। क्या दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी। भारत को चीन पर भरोसा नहीं रहा, ऐसी स्थिति में वह सतर्क नहीं रहने का जोखिम भी उठा नहीं सकता। पेंगोग झील से भारतीय और चीनी सैनिकों की वापसी के चार माह बाद चीन ने एक बार फिर डिवीजन कमांडर स्तर की बातचीत का सुझाव दिया है और भारत चीन के सुझाव पर विचार कर रहा है। इससे पहले 9 अप्रैल को कोर कमांडर स्तर पर बातचीत हुई थी लेकिन इस बैठक में कोई प्रगति नहीं हुई थी। अब तक भारतीय और चीनी सैन्य प्रतिनिधियों में 11 दौर की बातचीत हुई है। अब सवाल यह है कि चीन द्वारा डिवीजन कमांडर स्तर की बातचीत की पेशकश कोई नई चाल है या वह सैनिकों की वापसी के लिए समाधान चाहता है। पिछले वर्ष गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं में खूनी संघर्ष हुआ था और इस संघर्ष में 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे और चीन को भारी नुक्सान हुआ था। उसने काफी देर बाद यह स्वीकार किया था कि झड़प में उसके जवानों की मौत भी हुई है। जबकि सच यह है कि भारतीय जवानों ने चीन के सैनिकों की गर्दनें मरोड़ दी थीं। अपनी शहादत देने से पहले दुश्मनों को मार गिराया था। चीन ने पूर्वी लद्दाख में लगभग 50 हजार से 60 हजार सैनिको को तत्काल अन्दर के स्थानों पर तैनात किया है, इसलिए भारत ने भी इसी तरह की तैनाती कर रखी है। भारत हॉट स्प्रिग्स, गोगरा और देयमांग जैसे अन्य विवाद वाले बिंदुओं पर बकाया समस्याओं को हल करने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। गलवान घाटी में पिछले वर्ष युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। पिछले वर्ष तो पेगोंग झील का क्षेत्र एक युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो गया था, क्योकि चीन के इरादों काे देखते हुए कैलाश रेंज में प्रमुख पर्वत शिखर पर भारत ने अपना कब्जा सुनिश्चित कर लिया था।
चीन के विशेषज्ञ ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत के साथ शत्रुता को लेकर आगाह किया था। हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के वरिष्ठ पत्रकार शी जिआंगताओ ने कहा है कि अगर चीन सचमुच भारत को स्थाई शत्रु नहीं बनाने के लिए गम्भीर है तो उसे सीमा विवाद को एक तरफ रख लद्दाख में गतिरोध को खत्म करके इसकी शुरूआत करनी होगी।
भारत ने अब अपनी अमेरिका के साथ गठबंधन बनाने की झिझक को खत्म कर दिया है। भारत अब चीन को घेरने की अमेरिकी रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ बन गया है। भारत अब क्वॉड का सदस्य है जो चीन को संतुलित करने के लिए बनाया गया है। भारत ने तो अब कोरोना की उत्पत्ति की जांच का भी खुला समर्थन कर दिया है। चीन के उभार और उसकी घरेलू और बाह्य स्तर पर कट्टरवादी नीतियों की वजह से जापान और भारत जैसे देश अमेरिका के बहुत करीब हो चुके हैं। जी-7 ने चीन के खिलाफ मोर्चाबंदी कर ली है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत-चीन रिश्ते इस समय बहुत बुरे हैं लेकिन इसका फायदा भारत को इस दृष्टि से हुआ है कि हम सैन्य रूप से इस बार बेहतर तरीके से तैयार हो गए। सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल और एकजुटता भी बढ़ी है। सेना के तीनों अंगों के एकीकृत रुख से भारत किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम हो चुका है। सीमाओं पर बुनियादी ढांचा मजबूत बनाया जा सका है और भारतीय सेनाएं त्वरित एक्शन करने की स्थिति में हैं। बार्डर रोड्स आर्गनाइजेशन ने सम्पर्क मार्ग बनाए हैं। राफेल सीमा पर उड़ाने भरते हैं। मिग-29 और सुखोई 30 आसमान पर हावी हैं। जो काम पांच वर्ष में होना था, वह एक वर्ष में हो गया। कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहे भारत की मदद करने की चीन ने बार-बार पेशकश भी की है। भारत ने आपातकालीन मेडिकल सप्लाई भी चीन से खरीदे हैं। तनाव के बीच भारत द्वारा चीन से आक्सीजन उपकरण और अन्य सामग्री खरीदने का फैसला बड़ा अहम फैसला रहा। समस्या यह है कि चीन भारत के साथ रिश्तों को सीमा विवाद से जोड़कर देखता है। अब सवाल यह है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाएं लम्बे समय तक बरकरार रह पाएंगी? यह व्यावहारिक भी नहीं है। भारत ने चीन को काउंटर करने के लिए दूसरी ताकतों के साथ सम्पर्क काफी बढ़ा लिया है। भारत के लिए सभी विकल्प खुले रखना जरूरी भी है।
चीन को अब समझ आ रहा है कि भारत 1962 वाला देश नहीं है, बल्कि वह 2021 वाला देश है। चीन का नुक्सान हो सकता है। चीन अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरा नहीं उतरने के लिए मशहूर है, इसलिए भारत को सावधानी से कदम बढ़ाना होगा। कोई महामारी के दिनों में हमें परेशान करें ऐसा भारत कभी सहन नहीं कर सकता। भारत ने हर स्थिति का सामना करने के लिए दमदार तैयारी की है। बेहतर यही होगा कि चीन आक्रामक रवैया छोड़े और अपनी सेना को पूर्व स्थिति में ले जाए। भारत से रिश्तों को सुधारने की जिम्मेदारी चीन पर है।