2020 में पैंगोंग झील क्षेत्र में भारत और चीन के जवानों में हिंसक झड़प के बाद पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हो गया था, जो अब तक कायम है। गतिरोध सुलझाने के लिए कोर कमांडर स्तर की वार्ताओं के दौर जारी हैं लेकिन अभी तक गतिरोध को पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है। 2013 में देपसांग, 2014 में चुमार, 2017 में डोकलाम, 2020 में गलवान और 2022 में तवांग में हुई सैन्य झड़पों को दोनों देशों की रणनीतिक वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है। दोनों देशों के संबंधों का विश्लेषण किया जाए तो संबंधों में उतार-चढ़ाव हमेशा आता-जाता रहा है। दोनों देशों का व्यापार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। इसके बावजूद दोनों को एक-दूसरे पर भरोसा नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व व्यवस्था के दो बड़े राष्ट्र सीमा िववाद के कारण आपस में उलझे हुए हैं। भारत और चीन दोनों ने लगभग एक साथ साम्राज्यवादी शासन से मुक्ति पाई। भारत ने सच्चे अर्थों में लोकतंत्र के मूल्यों को अपनाया, तो वहीं चीन ने छद्म लोकतंत्र को अपनाया।
भारत-चीन संबंधों की इस गाथा में कई स्याह मोड़ आए। हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे से लेकर 1962 के भारत-चीन युद्ध से होते हुए दोनों देशों के संबंध उस दौर में हैं कि भारत आैर चीन विभिन्न मंचों पर एक-दूसरे की मुखालफत करते नजर आ रहे हैं। पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों पक्ष गलवान घाटी पैंगोंग झील, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा से अपने सैनिक पीछे हटाने पर सहमत हुए हैं। भारत चाहता है कि चीन की सेनाएं देपसांग और डैमचौक से हटकर पूर्व की स्थिति को बहाल करें। भारत लगातार स्पष्ट करता आ रहा है कि सीमाअों पर स्थिति असामान्य रहते दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हो सकते। पिछले कुछ महीनों से चीन की सेना के पूर्वी लद्दाख में हथियार और ईंधन के भंडारण के िलए बंकर बनाने की रिपोर्टें और वहां सैन्य बेस और सुरंगे बनाने की िरपोर्टें आती रही हैं। पैंगोंग झील के पास सिरजैप में चीनी सैनिकों का बेस है। इस बेस में बख्तरबंद गाड़ियों की आवाजाही भी देखी गई। कई एजैंसियों ने उपग्रह तस्वीरों से पूर्वी लद्दाख सीमा पर चीन की बढ़ती गतिविधियों की तस्वीरें भी जारी की थीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन ने सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास किया है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रूस के सेंट पिटसबर्ग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की और सीमा गतिरोध को हल करने के िलए बातचीत की। दोनों पक्षों ने तय किया कि सीमा पर सैन्य तनाव जल्द कम करने और आमने-सामने की मोर्चाबंदी खत्म करने के प्रयास दोगुने किए जाएंगे।
बीते एक महीने के दौरान चीन के विदेश मंत्री के साथ भारत की यह तीसरी उच्च स्तरीय बैठक थी। इससे पहले कजाखिस्तान के अस्ताना में और फिर लाओस के विएनियाना में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की उनसे मुलाकात हुई थी। सेंट पीटर्सबर्ग में एलएसी तनाव घटाने पर एनएसए डोभाल और वांग यी की बातचीत के बीच ही एक अहम बयान विदेश मंत्री जयशंकर का भी आया जिसमें उन्होंने कहा कि लद्दाख में आमने-सामने की मोर्चाबंदी को करीब 75 प्रतिशत तक सुलझा लिया गया है। उन्होंने कहा कि लगातार जारी बातचीत और प्रयासों से हालात को सामान्य बनाने की कोशिशें चल रही हैं। जानकारों के मुताबिक ताजा भारत-चीन वार्ताओं सिलसिला रूस के कजान में 22-24 अक्तूबर, 2024 को होने वाली ब्रिक्स शिखर बैठक से पहले प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति की मुलाकात की जमीन तैयार करना है। दोनों नेता ब्रिक्स शिखर बैठक के लिए रूस में होंगे और अगर चीनी सेना एलएसी पर अप्रैल 2020 की स्थिति में लौट जाती है तो यह तनाव कम सीमा तनाव का पारा कम करेगा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा िक यद्यपि दोनों देशों ने कुछ प्रगति की है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। बड़ा मुद्दा यह है कि इस समय दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो सीमा पर सैन्यीकरण ही हो रहा है। झड़पों के बाद रिश्ते प्रभावित हुए हैं। सीमा पर िहंसा हो तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि दोनों देशों के बाकी रिश्ते इससे अलग हैं। विदेश मंत्री लगातार कह रहे हैं कि वर्तमान में दोनों देशों के संबंध काफी जटिल हैं। दरअसल चीन अमेरिका और क्वाड के साथ भारत के गहरे होते संबंधों बीआरआई और चीन के विरोध में िहन्द प्रशांत क्षेत्र में तंत्र स्थापित करने को खतरा मानता है। एशिया में भी भारत की स्वीकार्यता चीन से ज्यादा है। चीन यह भी जानता है कि भारत से युद्ध से उसे आर्थिक रूप से बहुत नुक्सान होगा। भारत चीन के िलए बहुत बड़ा बाजार है। वह इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता। भारत इस समय विशुद्ध कूटनीति से काम ले रहा है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में भारत-चीन गतिरोध दूर करने के लिए कितना आगे बढ़ते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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