भारत और चीन विश्व की सबसे बड़ी उभरती शक्तियां हैं। जहां चीन पिछले 2 दशकों में भारी विकास के दम पर विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। वहीं भारत भी अब वैश्विक अर्थव्यवस्था बन चुका है। दोनों ही देश आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन दोनों देशों के आपसी संबंधी काफी तनावपूर्ण हैं। तनावपूर्ण संबंधों का कारण दोनों देशों के बीच सीमा विवाद ही नहीं बल्कि कई अन्य कारण भी हैं। एक तरफ चीन अपनी बड़ी परियोजनाओं के दम पर भारत की घेराबंदी करने में जुटा हुआ है वहीं भारत, अमेरिका और अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक मुद्दों पर अपनी भूमिका बढ़ा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इन दोनों देशाें के संबंध पटरी पर आएंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत और चीन के संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक वह वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने के एक तरफा प्रयास और सीमा पर सैन्य बलों का जमावड़ा जारी रखेगा। चीन अभी भी लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर सैन्य अवसंरचना का निर्माण जारी रखे हुए है।
रिपोर्टें बताती हैं कि एलएसी पर चीन की गतिविधियां आंखें खोलने वाली हैं। 2020 में गलवान घाटी में झड़प के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो गया था। दोनों देशों में बातचीत के कई दौर चले, जिसके बाद टकराव वाले बिन्दुओं से सैनिकों को पीछे हटाया गया था। लेकिन अभी भी कुछ बिन्दुओं पर दोनों देशों की सेनाएं जमी हुई हैं। गलवान, गोगरा और पैंगोग क्षेत्रों में आगे बढ़कर सीमा का अतिक्रमण और स्थाई निर्माण करके चीन पुराने समझौतों को तोड़ चुका है। चीन असत्य को सत्य बनाने की नीति पर चलता है। वह एक झूठ को सैंकड़ों बार बोलकर उसे सच में बदलना चाहता है। लद्दाख के अलावा सिक्किम और अरुणाचल में भी सीमा के करीब उसने काफी कुछ किया है, जो समझौतों का खुला उल्लंघन है। समझौतों की पालना एक तरफा नहीं हो सकती, तो फिर चीन हमसे क्या उम्मीद कर सकता है।
दरअसल चीन भारत के बढ़ते कद से काफी परेशान है। क्योंकि भारत की कूटनीति तेजी से चल रही है। भारत और अमेरिका के संबंध काफी मजबूत हो रहे हैं। चीन की बेचैनी इसलिए भी सामने आई कि उत्तराखंड में भारत आैर अमेरिकी सेनाओं का सांझा सैन्य अभ्यास चला। इस सैन्य अभ्यास से चिंतित चीन ने अमेरिका को चेतावनी भी दी कि वह चीन-भारत संबंधों में दखल न दे। हालांकि चीन ने यह भी कहा कि वह भारत के साथ अपने मुद्दे सुलझा लेगा। यह बयानबाजी चीन की दोहरी रणनीति का हिस्सा है।
यह तथ्य किसी से छीपा नहीं है कि चीन बयानबाजी और हकीकत के अंतर को पाटने में विफल रहा है। जमीनी स्तर पर उत्पन्न विसंगतियों को दूर करने की कोई ईमानदार कोशिश चीन की तरफ से होती नजर नहीं आती। जब बातचीत की प्रक्रिया शुरू होती है तो उसका रवैया अड़ियल होता है। यहां तक कि दोनों देशों के सैन्य कमांडरों ने पिछले दो वर्षों में सोलह दौर की बातचीत की है। जिसके बावजूद कई विवादित स्थलों से चीनी सैनिकों की वापसी का मुद्दा उलझा हुआ है। इस बात का चीन को अहसास होना चाहिए कि भारत के साथ उनके संबंधों में भरोसे की कमी के चलते ही वाशिंगटन को नई दिल्ली के साथ रक्षा और सामरिक सहयोग को मजबूत बनाने का अवसर मिला है। आज अमेरिका भारत को इस क्षेत्र में एक मजबूत सहयोगी के रूप में देखता है, जो साम्राज्यवादी चीन के निरंकुश व्यवहार पर अंकुश लगाने में सहायक हो सकता है। वहीं चीन की मंशा है कि सीमा पर विवाद तो न सुलझे मगर उसका व्यापार-कारोबार भारत में खूब फलता-फूलता रहे। यही वजह है कि चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा लगभग 75 विलियन डॉलर का हो गया है।
चीन ने हमेशा भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश की है। पाकिस्तान से उसके संबंध भारत विरोधी ही साबित हुए हैं। उसने हमेशा पाकिस्तानी आतंकवादियों को खुलेआम प्रतिबंधों से बचाया है। पाक अधिकृत कश्मीर में उसकी परियोजनाएं भी भारत विरोधी हैं। नेपाल, भूटान और अन्य पड़ोसी देशों में भी उसके प्रोजैक्ट भारत की घेराबंदी करते नजर आते हैं। हालांकि उसकी साजिशें अभी तक कामयाब नहीं हो सकी हैं। ऐसी स्थिति में भारत न तो कमजोरी दिखा है और न ही तटस्थ रह सकता है। भारत कूटनीतिक प्रयासों से सीमा विवाद को खत्म करने के लिए चीन को विवश कर देने की नीति पर चल रहा है। भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। भारत न केवल विकसित देशों से बल्कि विकासशील देशों से भी संबंधों के पुल बना रहा है। भारत कवाड़ और अन्य संगठनों में भी सक्रिय भागीदारी निभा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है। लेकिन चीन ने जिस तरह से अपनी परमाणु शक्ति के साथ-साथ अपनी नौसेना और वायुसेना को सशक्त बनाया है, वह भारत के लिए सामरिक चुनौतियां पैदा कर रहा है। धोखेबाज चीन का इतिहास हर भारतीय को याद रखना चाहिए। भारत को भी सामरिक रूप से तेजी से आगे बढ़ना चाहिए। चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हमें उससे बड़ी लकीर खींचनी होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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