जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है तब से ही वैश्विक शक्तियां भारत से उम्मीद भरी नजरों से देख रही हैं और उनका मानना है कि भारत का हस्ताक्षेप रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है। 23 फरवरी, 2022 की आधी रात को रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य अभियान की घोषणा कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। रूस के हमले में यूक्रेन के शहर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। युद्ध में हताहतों की संख्या 5 लाख तक पहुंच चुकी है। दुनियाभर के लोग इस युद्ध से तबाही का विश्लेषण कर रहे हैं क्योंकि यह 1945 के बाद से यूरोप में सबसे बड़ा युद्ध है। पूरी दुनिया इस जंग से प्रभावित हो रही है लेकिन रूस और यूक्रेन कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। यूक्रेन की एक छोटी सेना होने के बावजूद युद्ध में रूस की चार गुणा बड़ी सेना के सामने टिकी हुई है जिससे सभी भविष्य में होने वाले युद्धों के लिए बहुत कुछ सीख रहे हैं। रूस अभी तक यूक्रेन को निपटा पाने में विफल रहा है। यह युद्ध जमीन की बजाय साइबर और मानव रहित हथियारों से लड़ा जा रहा है। यूक्रेनी सेना ने बड़ी ही सूझबूझ से अमेरिकी सेना की मदद से रूसी सेना का मजबूती के साथ मुकाबला किया है। अब तक न किसी की जीत हुई है और न किसी की हार। अमेरिका समेत दुनिया के 31 देश यूक्रेन को घातक हथियार और मिसाइलें दे रहे हैं। जबकि ब्रिटेन, फ्रांस भी यूक्रेन के साथ खड़े हैं।
इस युद्ध ने घरेलू सप्लाई चेन की भी जरूरत को उजागर किया है। यूक्रेन को जब भी हथियारों की जरूरत पड़ती है तो वह पश्चिमी देशों और अपने सहयोगियों की ओर देखता है। वहीं रूस को जब हथियारों की जरूरत होती है तो वह अपना प्रोडक्शन बढ़ाता है। इसके अलावा यह भी देखा गया कि यूरोप हथियार बनाने में काफी पीछे रह जाता है। तोपखाने से जुड़े हथियार बनाने में रूस के मुकाबले में यूरोप काफी धीमा है। यूक्रेन फिलहाल अपना प्रोडक्शन बढ़ाने में लगा है लेकिन इसमें काफी समय लगेगा। रूस पर ग्रुप ऑफ सेवन (जी-7) देशों की ओर से प्रतिबंधों को लागू करने का कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा है। रूस की ऊर्जा, आवश्यक वस्तुओं और टेक्नोलॉजी तक पहुंच में कटौती के बावजूद इन प्रतिबंधों ने रूस की आक्रामकता को नहीं रोका है। न ही यह प्रतिबंध रूस की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर पाए हैं। रूस इनमें से कई प्रतिबंधों को दरकिनार करने और उनके प्रभावों को कम करने में सक्षम रहा है।
इस युद्ध के महत्वपूर्ण भूराजनीतिक निहितार्थ भी हैं। यूक्रेन नाटो और यूरोपीय संघ में शामिल होने के प्रयास कर रहा था। अब इसके समर्थन में कई देश खामोश हो चुके हैं। तुर्की नाटो का सदस्य है लेकिन इसके बावजूद उसने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल होने से इंकार कर दिया है और खुद को तटस्थ मध्यस्थ के रूप में स्थापित किया है। इस युद्ध ने बहुत कुछ बदला है। बड़े-बड़े देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं। रूस से पैट्रोलियम और गैस आयात कर रहे पश्चिमी देशों को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं। दुनियाभर में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ी हैं, क्योंकि रूस से गेहूं, उर्वरक और अन्य खाद्य उत्पादों की सप्लाई प्रभावित हुई है। इस युद्ध ने पश्चिम और रूस के बीच दीवारें खड़ी कर दी हैं। कई अन्तर्राष्ट्रीय ब्रांड ने रूस से कारोबार समेट लिया है। दो खेमे में बंटी दुनिया में रूस ने चीन, उत्तर कोरिया और ईरान से अपने संबंध मजबूत कर लिए हैं। अगर युद्ध जारी रहा तो बहुत घातक परिणाम हो सकते हैं।
अब सवाल यह है कि यह युुद्ध कैसे खत्म होगा। यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर खोजने की कोशिशें की जा रही हैं। यूक्रेन का कहना है कि केवल रूसी कब्जे से पूर्ण मुक्ति और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं पर वापसी से ही यह युद्ध खत्म होगा जबकि पांचवीं बार राष्ट्रपति बने पुतिन यूक्रेन के कब्जाए हुए क्षेत्र वापिस देने को तैयार नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की दोनों से ही फोन पर बातचीत की है और दोनों देशों से अपील की है कि वह युद्ध का समाधान कूटनीति से निकालें। यूरोपीय संघ और दक्षिण अफ्रीकी देश पहले ही भारत से युद्ध रोकने के लिए हस्तक्षेप का आग्रह कर चुके हैं। भारत अपनी पुरानी नीति के चलते अब तक इस युद्ध में तटस्थ रुख अपनाए हुए है। यूक्रेन में शांति के लिए भारत की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण है। भारत इस समय ग्लोबल साऊथ लीडर है। नरेन्द्र मोदी ही ऐसे नेता हैं जिन्होंने पुतिन को दो टूूक कहा था कि यह दौर युद्ध का नहीं है। सारे मसले बातचीत से ही हल किए जा सकते हैं। इस महीने के अंत तक यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कोलेवा भारत दौरे पर आने वाले हैं। वह भी भारत से युद्ध समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप की गुजारिश कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़े ही दोस्ताना लहजे में वैश्विक समुदाय की चिंता को अपने दोस्त रूस तक पहुंचाया है। अमेरिकी मीडिया पहले ही यह दावा कर चुका है कि प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन में चल रहे सैन्य संघर्ष के बीच परमाणु तनाव को टाल दिया था। मानवता को बचाने और वैश्विक उथल-पुथल कोे खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शांति दूत की भूमिका निभाएं और युद्ध समाप्त हो जाए तो यह बहुत बड़ी राहत की बात होगी।