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क्रोएशिया से जीवटता सीखे भारत

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फीफा वर्ल्ड कप फुुटबाल में क्रोएशिया को हराकर फ्रांस की टीम ने विजेता होने का गौरव हासिल कर लिया। फाइनल मुकाबले से एक दिन पहले पेरिस की सड़कों पर फ्रांस के लोगों का उत्साह देखने वाला था। एफिल टॉवर के पास 90 हजार से ज्यादा लोग फैन जोन में एकत्रित थे। जीत के बाद तो फ्रांस के लोगों की खुशी देखने वाली थी। फुटबाल के मैदान में मिली सफलता ने फ्रांस को आतंक की पीड़ा से उबारा है। इस जीत ने जहां लोगों की पीड़ा को कम किया वहीं देश में एकजुटता की भावना भी बढ़ी। फ्रांस की उच्च स्तरीय जीवनशैली के बावजूद परम्परागत रूप से खुश रहने की फ्रांस की परम्परा का अभाव देखा जा रहा था। लोग निराशा से जूझ रहे थे। बेरोजगारी की समस्याओं पर बहस हो रही थी। एक के बाद एक आतंकी हमलों से लोगों की मौतों के बाद दहशत का माहौल रहा।

अप्रवासियों काे लेकर अलग धारणा बन गई थी। फ्रांस की फुटबाल टीम में कई गैर-श्वेत खिलाड़ी रहे। पिछली बार 1998 में कप्तान जिनेदिन जिदान के नेतृत्व में टीम ने वर्ल्ड कप फुटबाल जीता था तब भी कई विदेशी मूल के खिलाड़ी टीम में शामिल थे। फाइनल में फ्रांस की टीम ने सर्वश्रेष्ठ खेल का प्रदर्शन किया। फ्रांस की तरफ से किए गए 4 गोलों में 19 वर्ष के फारवर्ड किलियान एमबापे का गोल भी शामिल था। उनके इस गोल से एक उपलब्धि भी एमबापे से जुड़ गई। वह फुटबाल विश्व कप के फाइनल में गोल करने वाले दूसरे टीनेजर बन गए हैं। उनसे पहले 1958 में विश्व कप फाइनल में पेले ने गोल किया था। उस समय पेले की उम्र 18 वर्ष की थी। फाइनल मैच काफी रोमांचक रहा, यद्यपि क्रोएशिया की टीम पराजित हुई। उसने कुछ गलतियां भी हैं, लेकिन क्रोएशिया की टीम का फाइनल में पहुंचना एक चौंकाने वाली घटना रही। हालांकि वर्ल्ड कप फुटबाल में कई चौंकाने वाली घटनाएं हुई हैं।

वर्ल्ड कप शुरू हुआ तो लोग ब्राजील, अर्जेंटीना, पुर्तगाल और जर्मनी पर दाव लगा रहे थे लेकिन इस खेल में सरप्राइज देने के मामले में क्रोएशिया किसी से कम नहीं है। पुराने नायक बाहर हो गए, नए नायक चमक गए। दूसरे सेमीफाइनल में इंग्लैंड को पटखनी देने वाले क्रोएशिया ने इतिहास रच डाला था। महज 40 लाख की आबादी वाले देश के लोगों को फुटबाल टीम की सफलता पर आश्चर्य हो रहा है। आजादी के बाद से अब तक खेले गए 6 में से 5 फुुटबाल विश्व कप में जगह बनाने और 1988 में वह सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रहा। फुटबाल के विशेषज्ञ बताते हैं कि पूर्ववर्ती युगोस्लाविया के एकेडमी सिस्टम का कमाल है कि इतने कम समय में क्रोएशिया ने इस खेल में इतना नाम कमाया है। 1987 में चिली में खेली गई वर्ल्ड अंडर-20 चैम्पियनशिप जीतकर उसने दुनिया में धमाका कर दिया था, जबकि स्वतंत्र देश के रूप में पहला मैच खेलने में उसे इसके बाद 7 वर्ष लगे। 1991 में बालकन युद्ध छिड़ जाने से सारी उम्मीदें टूट गईं। 7 वर्ष बाद 1998 में फ्रांस में खेले गए विश्व कप में लाल-सफेद चेक जर्सी पहने खिलाड़ियों ने दुनिया को बता दिया था कि उसके इरादे कितने बड़े हैं। क्रोएशिया 1991 तक युगोस्लाविया का हिस्सा रहा।

क्रोएशिया में लड़ाई 1991 में स्लावे​निया में जंग के बाद शुरू हुई। अतः क्रोएशिया ने 25 जून 1991 को आजादी की घोषणा की। युगोस्लाव पब्लिक आर्मी और सर्ब पैरामिलिट्री समूहों ने क्रोएशिया पर हमला बोल दिया। लाखों लोग मारे गए और बेघर हुए। 1995 में युद्ध खत्म हुआ तो साफ हुआ कि जीत क्रोएशिया की हुई है। विकास और संघर्ष की दिक्कतों के बीच क्रोएशिया फुटबाल काे हर बार अपने नए और पुराने जख्मों पर मरहम की तरह इस्तेमाल करता है। इस देश को स्थापित हुए 27 वर्ष ही हुए हैं लेकिन उसकी फुटबाल टीम ने फुटबाल के धुरंधरों को धूल चटा दी। यह सवाल जेहन में बार-बार उठता है कि हम सवा अरब की आबादी वाले देश में ऐसी फुटबाल टीम क्यों तैयार नहीं कर पाए जो विश्व कप के लिए क्वालीफाई करती और खेलती। हमारे देश में नीतियां तो हैं लेकिन नीतियों को लेकर नैतिकता का अभाव है। आेलिम्पिक में भी दुनिया के छोटे-छोटे देश हमसे ज्यादा पदक ले जाते हैं, इसका स्पष्ट कारण है कि हमारी खेल नीति बेहतर नहीं है। क्रिकेटर हरभजन सिंह ने ट्वीट कर ठीक ही कहा है कि क्रोएशिया फाइनल में खेला, हम अभी तक ‘हिन्दू-मुसलमान’ में ही खेल रहे हैं। क्रोएशिया की सरकार की नीति न केवल खेलों बल्कि समग्र विकास को बढ़ावा देती है।

स्कूलों में फुटबाल की इस कदर ट्रेनिंग दी जाती है कि बच्चे सम​िर्पत हो जाते हैं। क्या विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले भारत में ऐसा नहीं हो सकता? भारत को क्रोएशिया से लगनशीलता आैर जीवटता सीखने की जरूरत है। कोई भी देश अपनी आर्थिक सफलता, प्रौद्योगिकी आैर खिलाड़ियों से पहचाना जाता है। हमें सोचना होगा कि हम खेलों में शिखर पर कैसे पहुंच सकते हैं। जरूरत जीवटता और समर्पण की है न कि खेलों में सियासत की। यहां तो हर कोई अपना झंडा और एजैंडा लेकर चल रहा है। इन सबको देश का राष्ट्रध्वज लेकर चलना होगा तभी खेलों का उद्धार होगा।

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