चाहे वह 1988 में तख्ता पलट का प्रयास हो, 2004 में आई सुनामी की त्रासदी हो, 2014 में जल संकट हो या फिर 2020 के कोरोना महामारी संकट के दौरान वित्तीय मदद, दवाईयां और राशन पहुंचाने की बात हो, अलग-अलग संकटों में भारत ने हमेशा मालदीव का साथ दिया है। जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे तब मालदीव में तत्कालन राष्ट्रपति गयूम का तख्ता पलट प्रयास किया गया। तब गयूम ने भारत से मदद मांगी थी। भारतीय सेना रात 9 बजे पहुंची और उसने वहां जाकर तुरंत विद्रोहियों को काबू कर लिया। भारत के इस एक्शन को ऑपरेशन कैक्टस का नाम दिया गया था। बतौर एक लोकतांत्रिक देश मालदीव को भारत का धन्यवाद बोलना चाहिए लेकिन जब सत्ता बदलती है तो बहुत कुछ ऐसा होता है जिसकी उम्मीद नहीं की जाती। मालदीव से भारत के संबंध 1966 में ही कायम हो गए थे। भारत पहला देश था जिसने मालदीव की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी। ब्रिटिश शासन के दौरान भी मालदीव आवश्यक चीजों के लिए भारत पर निर्भर था। दोनों देशों में 1981 में व्यापार समझौता हुआ था जिसके चलते भारत मालदीव का दूसरा बड़ा ट्रेड पार्टनर बनकर उभरा था। मालदीव में मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनातनी चल रही थी। सत्ता संभालने के बाद उन्होंने भारत के सामने मालदीव में तैनात अपने सैन्य कर्मियों को वापिस बुलाने की मांग रख दी थी।
फरवरी में भारत अपने 80 सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने के लिए तैयार हो गया था। यह प्रक्रिया 10 मार्च से 10 मई के बीच हुई। खास बात है कि चीन समर्थक माने जाने वाले मुइज्जू ने मालदीव में 'इंडिया आउट' के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था। जीतने के कुछ समय बाद ही उन्होंने भारत के सामने सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने की मांग रख दी थी। इतना ही नहीं मालदीव ने 2019 के एक समझौते को भी रिन्यू करने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद मुइज्जू सरकार के तीन मंत्रियों की प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप यात्रा को लेकर की गई टिप्पणी ने खासा विवाद खड़ा कर दिया था। भारत में मालदीव पर्यटन के खिलाफ विरोध के सुर उठने लगे थे। दरअसल, मालदीव की पर्यटन हिस्सेदारी में भारतीयों की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है।
तीन महीने पहले मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू 9 जून को प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने भारत आए थे। अब खबर यह है कि राष्ट्रपति मुइज्जू जल्द ही भारत की यात्रा करेंगे। मालदीव ने यह घोषणा उस समय की है जब जनवरी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों के लिए निलंबित किए गए थे। दो मंत्रियों मरियम और मालशा शरीफ ने सरकार से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति मुइज्जू को चीन समर्थक माना जाता है और पद संभालने के बाद उन्होंने सबसे पहले चीन और तुर्की की यात्रा की थी। अब ऐसा लगता है कि भारत और मालदीव के रिश्ते सुधारने की कवायद शुरू हो चुकी है। भारत की कूटनीति का हर कोई लोहा मानता है। विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने पिछले महीने मालदीव का दौरा किया था और वहां द्विपक्षीय वार्ताएं भी की थी। इस दौरे के बाद मालदीव के रुख में अचानक परिवर्तन आया। चीन के जबड़े में फंसा यह देश जो भारत के खिलाफ नफरत की बात कर रहा था अब वह फिर से रिश्ते सुधारने की बात करने लगा है। मालदीव को समझ आ रहा है कि उसे भारत की जरूरत है। भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल के लिए मालदीव भारत पर काफी हद तक निर्भर है। ऐसे में मालदीव के लोगों को इस बात की चिंता हो रही है कि भारत से संबंध खराब होने पर कहीं उनके लिए संकट की स्थिति न पैदा हो जाए। जब भारत विरोधी टिप्पणियों को लेकर भारत की ट्रैवल एजैंसियों ने मालदीव का बायकाट करते हुए पर्यटकों की बुकिंग बंद कर दी थी तब मालदीव को काफी नुक्सान हुआ था। मालदीव नहीं चाहता कि भारत के पयर्टक उससे दूर रहे। मालदीव की सरकार को चीन की भी चिंता है। अगर उसकी अर्थव्यवस्था बिगड़ती है तो वह चीन के कर्ज की किश्त भी नहीं चुका पाएगा। दरअसल चीन ने मालदीव में भारी भरकम निवेश कर रखा है। मालदीव ने चीन को एक द्वीप भी लीज पर दिया हुआ है। चीन ने धीरे-धीरे मालदीव को कर्ज के जाल में उलझा दिया है। जैसा वो पाकिस्तान और श्रीलंका में पहले कर चुका है। भारत की चिंताएं उस समय बढ़ गई थी जब मालदीव ने 2017 में चीन के साथ मुफ्त व्यापार समझौता किया था। दरअसल चीन हिन्द महासागर क्षेत्र में अपना दबदबा स्थापित करके भारत को पीछे धकेलना चाहता है। चीन की विस्तारवादी नीतियों से मालदीव में लोकतंत्र को खतरा पैदा हो सकता है। मालदीव की अर्थव्यवस्था अपने पर्यटन सैक्टर पर सबसे अधिक निर्भर है। पर्यटन ही इसके विदेशी मुद्रा भंडार और राजस्व का मुख्य साधन है।
हर साल भारत से लाखों की संख्या में लोग घूमने-फिरने के लिए मालदीव जाते हैं। 2023 में भारत से 1.93 लाख पर्यटक मालदीव गए जो उसके यहां आए कुल पर्यटकों की संख्या में दूसरे नंबर पर है। पल-पल बदलती भू राजनीतिक स्थितियों के चलते आज सभी देश आपसी संबंधों में संतुलन बनाकर चल रहे हैं। यही कारण है कि राष्ट्रपति मुइज्जू की अपनी पार्टी और विपक्ष इस बात के पक्षधर हैं कि भारत और चीन से संबंधों में संतुलन बनाकर चला जाए। राष्ट्रपति मुइज्जू के भारत विरोधी रुख को लेकर उनके अपने ही देश में आलोचना हो रही है बल्कि उनकी लोकप्रियता में भी कमी आ रही है। मालदीव के लोग और राजनीतिज्ञ चीन की मदद की राह में धोखे का अहसास कर रहे हैं। मालदीव की अर्थव्यवस्था के लिए चीन कोई मदद नहीं कर रहा। मालदीव को इस बात का डर है कि कहीं उसकी संप्रभुता चीन के हाथों गिरवी न पड़ जाए। मालदीव को भरोसेमंद पड़ोसी अब भारत ही नजर आ रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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