डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका की सत्ता में आने के बाद भारत-अमेरिका सम्बन्धों में महत्वपूर्ण मोड़ आ रहे हैं। यद्यपि भारत को प्रमुख रक्षा सांझेदार का दर्जा देने का फैसला पूर्ववर्ती बराक ओबामा प्रशासन ने किया था और इसे कांग्रेस ने औपचारिक मंजूरी प्रदान की थी। अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस तीन दिन के भारत दौरे पर हैं। स्पष्ट है कि जेम्स मैटिस का उद्देश्य भारत को ‘प्रमुख रक्षा सांझेदार’ के दर्जे को कार्यान्वित करना है। जेम्स मैटिस की यात्रा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दक्षिण एशियाई नीति को सार्वजनिक किए जाने के बाद हुई है। ट्रंप ने अपनी अफ-पाक नीति की घोषणा करते हुए इसमें भारत की बड़ी भूमिका का मार्ग प्रशस्त किया है, जिसे लेकर पाकिस्तान नाराजगी जाहिर कर चुका है। पाकिस्तान साफ कर चुका है कि वह अफगानिस्तान में भारत की किसी भी भूमिका के खिलाफ है। मैटिस ट्रंप के बेहद खासमखास रहे हैं और भारत-अमेरिका सम्बन्धों में नई दिल्ली की बड़ी भूमिका के पक्षधर माने जाते हैं। मैटिस भारत-अमेरिका सहयोग की गति तेज करने के इच्छुक हैं और इसे दक्षिण एशिया से लेकर भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाने के लक्ष्य को हासिल करने का प्रभावी उपकरण बनाना चाहते हैं।
यह सही है कि चीन और पाकिस्तान के बढ़ते खतरे के बीच भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों को तेज कर दिया है। जिस तरह से चीन भारत को समुद्री और सीमाई तौर पर घेरने की कोशिशों में लगा है, ऐसे में भारत को अपनी टोही क्षमता में इजाफा करने की जरूरत है। मैटिस की यात्रा के दौरान 22 मानवरहित टोही ड्रोन के सौदे की घोषणा हो सकती है। अमेरिका अपने उन्नत लड़ाकू विमान एफ-16 और एफ-18ए भारत को बेचना चाहता है। इतना ही नहीं अमेरिका इन विमानों को भारत में बनाने को तैयार है। भारत को भी लड़ाकू विमानों की जरूरत है। दूसरी ओर लड़ाकू विमानों के प्रोजैक्ट को हासिल करने के लिए दुनिया की 6 बड़ी कम्पनियां मैदान में हैं। इनमें से एक कम्पनी लॉकहीड मार्टिन अमेरिका की है जो अमेरिकी सेना के हाइटेक लड़ाकू विमान बनाती है। यह कम्पनी भारत को फाइटर-16 देना चाहती है। भारतीय वायुसेना को 100 सिंगल इंजन वाले लड़ाकू विमानों की जरूरत है। ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत कुछ अमेरिकी कम्पनियां इसमें शामिल होने की इच्छुक हैं। मैटिस के दौरे के दौरान सभी मुद्दों के सुलझ जाने की उम्मीद है।
सम्बन्धों की मजबूती के लिए देशों में समझौते भी होते आए हैं लेकिन हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है अमेरिका की दक्षिण एशियाई नीति। इस नीति में अमेरिका ने पाकिस्तान को ज्यादा महत्व नहीं दिया है। ऐसे में अमेरिका अफगानिस्तान में भारत की मदद चाहता है। डोनाल्ड ट्रंप भी अफगानिस्तान के मसले पर भारत के कार्यों की सराहना कर चुके हैं। ऐसा लग रहा है कि अमेरिका के मित्र के रूप में पाकिस्तान की जगह अब भारत ले रहा है। सवाल यह है कि क्या भारत अब दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफगानिस्तान में अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए अग्रिम दस्ते की तरह काम करेगा? क्या अमेरिका पाकिस्तान और चीन की भारत विरोधी मिलीभगत को काटने के लिए पूरी ताकत लगा देगा? अमेरिकी अपने हितों को हमेशा सर्वोच्च रखते हैं। अमेरिका बहुत शक्तिशाली मुल्क है। उसके एक इशारे पर दुनिया में शक्ति संतुलन बिगड़ता भी है और बनता भी है। उसके कई रंग हैं।
भारत यह भी जानता है कि पाकिस्तान जो भारत के लिए खतरा बना हुआ है, उसे खतरनाक भी अमेरिका ने ही बनाया हुआ है। पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र बनाने की सारी जिम्मेदारी अमेरिका और सऊदी अरब की है। पाकिस्तान पर अमेरिका ने करोड़ों-अरबों डॉलर बरसाए हैं। सऊदी अरब की फंडिंग भी काफी हुई है, जिसके बल पर पाकिस्तान ने आतंक की खेती की है। पहले मुजाहिदीन और तालिबान का समर्थन अमेरिका, सऊदी अरब और पाकिस्तान नहीं करते रहे? सीरिया और इराक में ‘दाएश’ के आतंकियों की पीठ सबसे पहले इन्हीं ने ठोकी थी।
यह भी सोचना होगा कि ट्रंप ने जलवायु समझौते से अलग होते समय भारत को निशाना बनाया था। ट्रंप सरकार की नई वीजा नीति से भारतीय भी प्रभावित हुए हैं। भारत को पाकिस्तान की तरह अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए इसलिए भारत सरकार को बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे। अमेरिका का मित्र होने के नाते हमें यह देखना होगा कि हिन्द महासागर से लेकर समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में कहीं हम उसका एजेंट बनकर तो नहीं रह जाएंगे? क्या अमेरिका अपने हितों को साधने के लिए अफगानिस्तान मामले में हमारे कंधे पर बंदूक तो नहीं रख रहा। हमें अपने फैसले स्वतंत्र होकर और सोच-विचार कर लेने होंगे।