भारत ने किया तेल का खेल

भारत ने किया तेल का खेल
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रूस पर नए अमेरिकी प्रतिबंधों से इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि भारत को रूसी तेल की बिक्री कम हो सकती है, जो समुद्र के द्वारा ट्रांसपोर्ट किए जाने वाले रूसी कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। पहले ऐसा डर जताया गया था कि रूसी टैंकर समूह पर लगे प्रतिबंध के कारण भारत को तेल आयात करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। पश्चिमी देशों की कोई भी टैंकर कम्पनी रूसी तेल को नहीं ढोएगी। वहीं, तीसरे देशों की कम्पनियां अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से रूसी तेल को ट्रांसपोर्ट नहीं करेंगी। अगर कोई कम्पनी तैयार भी हुई तो वह ज्यादा भाड़ा वसूल करेगी जिससे भारत को रूस से तेल की खरीद में ज्यादा मुनाफा नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो भारत को तेल की खरीद के लिए किसी और देश का रुख करना होगा। हालांकि, यह चिंता बेकार साबित हुई और भारत लगातार रूस से तेल का आयात कर रहा है।
अमेरिका ने यूक्रेन पर रूस के हमले की दूसरी वर्षगांठ मनाने और विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की मौत का बदला लेने के लिए फरवरी में प्रतिबंधों का ऐलान किया था। अमेरिकी प्रतिबंधों के निशाने पर रूस का प्रमुख टैंकर समूह सोवकॉम्फ्लोट था। अमेरिका ने इस रूसी टैंकर समूह पर रूसी तेल पर जी-7 की मूल्य सीमा का उल्लंघन करने में शामिल होने का आरोप लगाया था। सोवकॉम्फ्लोट के पास 14 कच्चे तेल टैंकर का बेड़ा है। अमेरिका को उम्मीद थी कि रूसी टैंकरों पर लगे प्रतिबंध से उसके तेल निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा लेकिन भारत ने न तो पहले अमेरिकी और उसके पिट्ठू देशों के प्रतिबंधों की परवाह की है और न ही नए प्रतिबंधों से डरा है। मार्च महीने में भारत का रूस से तेल आयात 6 प्रतिशत बढ़ गया है। तेल से भरे रूसी टैंकर भारतीय बंदरगाहों पर पहले की तरह पहुंच रहे हैं। इससे पहले भारतीय तेल कम्पनियों ने कहा था कि वे रूस से तेल के आयात में अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित कम्पनी के टैंकरों का इस्तेमाल नहीं करेंगे लेकिन अब भारतीय कम्पनियों ने अमेरिकी प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ा दी हैं। इससे साफ है ​िक भारत अपने ​िहतों की रक्षा अच्छी तरह से कर रहा है। फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस जंग शुरू होने पर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए तो यूरोपीय देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया।
अमेरिका ने भारत पर भी रूस पर अपनी निर्भरता कम करने के​ लिए बहुत दबाव बनाया। किसी दबाव में न आते हुए भारत ने कूटनीति से काम लिया। भारत ने दो टूक शब्दों में अपने हितों का हवाला देकर रूस से कच्चे तेल का आयात जारी रखने का फैसला किया। रूस ने भी भारत को सस्ता तेल देने की पेशकश की और भारत ने इसका पूरा लाभ उठाया। भारत को 60 डॉलर से भी कम मूल्य पर रूस से तेल हासिल हुआ। भारत पहले इराक से सबसे ज्यादा तेल खरीदता था लेकिन अब इराक को पछाड़ कर रूस सबसे बड़ा देश बन गया है। सस्ता तेल मिलने से भारतीय रिफाइनरियों को बहुत लाभ हुआ। भारतीय रिफाइनरियों ने यूरोपीय बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा कर ​ लिया। हुआ यूं कि जिस यूरोपीय कम्पनियों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे उन्हीं देशों को भारत ने तेल का निर्यात किया। पाकिस्तान ने भी भारत की तरह रूस से कच्चा तेल खरीदने की कोशिश की लेकिन अमेरिका के दबाव के आगे उसकी एक न चली। भारत की सफल कूटनीति के चलते कोरोना काल में और जंग से पहले घाटे में चल रही भारतीय तेल कम्पनियों की भरपाई हुई और भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई। जबकि दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था डांवाडोल चल रही है और वहां महंगाई से हा-हाकार मचा हुआ है।
भारत यह अच्छी तरह जानता है कि रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत की आर्थिक स्थिरता को खतरा है। भारत की घरेलू मुद्रास्फीति और पैट्रोल कीमतों का प्रबंधन नरेन्द्र मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दहलीज पर है। भारत के बढ़ते आर्थिक कद को रोकने में अमेरिका का निहित स्वार्थ है। अमेरिका की नीति एक दुश्मन को निशाना बनाना और अन्य देशों को उस दुश्मन के खिलाफ मिलकर काम करने के लिए उकसाना है। यूरोप में अमेरिका ने रूस को दुश्मन के रूप में चित्रित किया है तो पूर्वी एशिया में चीन को दुश्मन के रूप में चि​त्रित किया है। यूक्रेन अमेरिकी भूराजनीतिक हितों का एक उपकरण बन गया है। अमेरिका, रूस आैर चीन के खिलाफ भारतीय कंधों का इस्तेमाल कर बंदूक चलाना चाहता है लेकिन भारत ने अमेरिकी दबाव को दरकिनार कर अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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