तेल पर भारत की दो टूक

भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश जो तेल के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर हैं, वे प्रतिबंधात्मक व्यापार की वकालत नहीं कर सकते। भारत सरकार का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि वह अपनी जनता को तेल और ऊर्जा उपलब्ध कराए।
तेल पर भारत की दो टूक
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भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश जो तेल के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर हैं, वे प्रतिबंधात्मक व्यापार की वकालत नहीं कर सकते। भारत सरकार का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि वह अपनी जनता को तेल और ऊर्जा उपलब्ध कराए। केन्द्र सरकार ने एक बार फिर अमेरिका और उनके समर्थक देशों को दो टूक जवाब दे दिया है कि भारत जहां से भी तेल मिलेगा वह खरीदना जारी रखेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में कौन किससे गैस और तेल खरीदेगा इसको लेकर बहस जारी है। केन्द्रीय पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत के हितों को सर्वोपरि रखा जाएगा। साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी ने भी भारत को रूस से तेल खरीदने पर मना नहीं किया। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई रूक जाने से दुनियाभर में तेल का संकट गहराया हुआ है। तेल और ऊर्जा की कीमतें बढ़ रही हैं। यूरोप के कई देशों में महंगाई आसमान छूने लगी है और कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर काफी प्रभाव पड़ा है। आम जनता के साथ-साथ उद्योगों का खर्च भी काफी बढ़ चुका है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और उसके मित्र देश भारत पर रूस पर निर्भरता कम करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। भारत का स्पष्ट स्टैंड रहा कि वैध तरीके से ऊर्जा खरीदने का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। कच्चे तेल की जरूरत का लगभग 85 प्रतिशत (प्रतिदिन 5 मिलियन बैरल) आयात करना पड़ता है। अधिकांश आयात इराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और रूस से कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल का खेल लगातार जारी है। तेल लॉबी वैश्विक बाजार में कई बार दोहन करने का प्रयास भी करती रही है। फिर भी भारत को अपनी जरूरत के लिए तेल आयात करना पड़ता है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद कई नाटो देश भी रूस से तेल आयात कर रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने यह भी स्पष्ट कहा कि ''अगर आप अपनी नीति को लेकर साफ हैं, जिसका मतलब है कि आप वहां से खरीदोगे जिस स्रोत से आप ऊर्जा खरीद सकते हो।'' रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करते हुए रूस ने भारत काे सस्ते में तेल देने का ऑफर किया था। भारत ने इस पेशकश को बिना किसी दबाव में आए स्वीकार कर लिया। भारत की सरकारी और निजी रिफाइनिंग कम्पनियों ने मौके का फायदा उठाते हुए सस्ते में कच्चे तेल का आयात किया और उसे रिफाइन कर अंतिम उत्पाद बनाकर निर्यात किया। इससे इन कम्पनियों को जबरदस्त फायदा हुआ। युद्ध से पहले भारत रूस से कभी-कभार तेल की खरीददारी किया करता था लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय दामों के मुकाबले भारत और चीन को सस्ते में तेल दिया। जून महीने में भारत ने रूस से रिकार्ड मात्रा में कच्चा तेल खरीदा था। उसके बाद लगातार खरीददारी में कमी आई है। रूस से भारत के लिए 2 मिलियन टन कच्चे तेल की लैंडिंग की गई है जो अगस्त में 3.55 मिलियन टन तेल खरीदा। सितम्बर के आंकड़े अभी सामने आने बाकी हैं। कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले मध्य पूर्व देशों ने दामों में भी कटौती की है, जिससे रूस से आने वाले कच्चे तेल पर असर पड़ा है। रूस से भारत कच्चा तेल आने में जहां एक माह का समय लगता है वहीं खाड़ी के देशों से तेल आने में केवल एक सप्ताह का समय लगता है।
भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खप्त में बढ़ौतरी से तेल की मांग बढ़ रही है, जो वैश्विक औसत का एक-तिहाई है। जैसे-जैसे देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, उसके साथ-साथ ईंधन की मांग भी बढ़ रही है। आने वाले दशक में मांग में वैश्विक वृद्धि 25 प्रतिशत भारत से आएगा। भारत की अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है आैर ऊर्जा उस आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण ड्राइवर है। अगर भारत में तेल और गैस की कमी होगी तो उद्योग धंधे कैसे चलेंगे। इस समय भारत अपने  कुल तेल का 10 फीसदी तेल रूस से ले रहा है। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत रूस से अपनी जरूरत का कुल सिर्फ 0.2 फीसदी तेल खरीदता था। 
दूसरी तरफ दुनिया के तेल निर्यातक देशों के तेल समूह ओपेक प्लस ने अब एक ऐसा फैसला लिया है जिससे आने वाले दिनों में तेल के दाम बढ़ेंगे। आेपेक के 13 देशों और प्लस समूह के 10 देशों ने मिलकर रोजाना 20 लाख बैरल तेल का उत्पादन घटाने का फैसला किया है। ओपेक में प्लस देशों का नेतृत्व रूस करता है। इस फैसले से अमेरिका को बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन ने सऊदी अरब का दौरा भी किया था और वह उसको मनाने की कोशिशें कर रहे हैं कि वह  तेल का उत्पादन बढ़ाए। तेल को लेकर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और रूसी राष्ट्रपति पुतिन साथ-साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं और इसे अमेरिका की दादागिरी को सीधी चुनौती माना जा रहा है। अगर आेपेक देश तेल उत्पादन घटाते हैं तो इसका असर भारत समेत कई देशों पर पड़ेगा। अगर किसी भूराजनीतिक स्थिति को लेकर कोई समस्या है तो इस संबंध में भारत सरकार बातचीत कर सकती है। अगर तेल उत्पादक देश अपने उत्पादन को लेकर स्वतंत्र रूप से फैसला कर सकते हैं तो भारत भी तेल खरीदने के मामले में स्वतंत्र फैसला कर सकता है। जब भी पैट्रोल के दाम ऊंचे हो जाते हैं उससे भारत की समस्याएं बढ़ जाती है, लेकिन भारत पैट्रोिलयम के बढ़ते  दामों में भी खुद को सम्भालने में सक्षम रहा है। हमें यह देखना होगा कि जरूरत के मुताबिक कितना तेल खरीदना है और कितना मार्किट में देना है। दूसरी तरफ दुनिया के सबसे धनी देशों के समूह जी-7 रूसी तेल के दामों पर प्राइस कैम्प लगाने जा रहा है ताकि रूस तेल सस्ता न कर सके। इस स्थिति में भारत को सावधानी रखनी होगी। मई महीने में भारत को रूस से कच्चा तेल 16 डॉलर प्रति बैरल सस्ता तेल मिला था, वहीं जून में भारत को 14 डॉलर प्रति बैरल सस्ता  तेल मिला। वहीं अगस्त में 6 डॉलर प्रति बैरल सस्ता ​मिला। उधर रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। रूस ने यूक्रेन से परमाणु सिटी जैपरोजिया पर हमले करके  परमाणु हमले की आशंका को और बढ़ा दिया है। रूस ने क्रीमिया से रूस को जोड़ने वाले कर्च रेलवे ब्रिज को तबाह कर दिया है। हालांकि यूक्रेन ने जवाबी हमले में रूस के  कई सैनिकों को मारने का दावा किया है। आने वाले ​दिनों में परिस्थितियां क्या मोड़ लेंगी इस पर अभी कोई आकलन नहीं लगाया जा सकता। पूरी दुनिया इस समय भयानक ऊर्जा संकट से जूझ रही है। अगर यही स्थिति कुछ और महीने जारी रही तो भारत भी संकट से अछूता नहीं बचेगा। इसीलिए भारत सरकार ने तेल खरीद को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी है।

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